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देश में लड़कों के मुकाबले पांच गुना अधिक लापता हो रही हैं लड़कियां

कहा जाता है कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं। अक्सर बोले और लिखे जाने वाले इस शब्द को देशभर में शायद ही कोई गंभीरता से लेता हो। हमारी शासन व्यवस्था तो निश्चित रूप लेती नजर नहीं दिख रही है। यही वजह है कि बीते कुछ वर्षों से बच्चों के लापता होने के लगातार बढ़ते मामलों की हकीकत एक बार नहीं , कई बार सामने आने के बावजूद हमारी सरकारों ने इसे कभी भी गंभीरता से अपने सरोकारों का मामला नहीं माना ।बच्चों के अधिकारों पर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बच्चों के लापता होने के मामले में काफी वृद्धि हुई है। 2021 में मध्य प्रदेश और राजस्थान में लापता लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में पांच गुना अधिक है। घरेलू हिंसा, दुर्व्यवहार और उपेक्षा के कारण लड़कियां खुद भाग जाती हैं। इनमें से अधिकतर लड़कियां घरेलू नौकर या फिर व्यवसायिक यौन शोषण के धंधे में लगा दी जाती हैं। 

 

कई गैरसरकारी संगठनों और खुद सरकार के स्तर पर कराए अध्ययनों में भी यह मामला उजागर हो चुका है कि लापता होने वाले बच्चों की तादाद हर साल लगातार बढ़ती जा रही है । अदालतें भी इससे निपटने का निर्देश कई बार सरकारों को दे चुकी हैं , लेकिन इस त्रासदी की भयावहता है कि बढ़ती ही जा रही है । एक तरफ देश में कानून – व्यवस्था और सुरक्षा के मद में अकूत धनराशि खर्च की जाती है और इस मसले पर कोई समझौता न करने की बात कही जाती है , वहीं हर साल एक लाख से ज्यादा बच्चे गायब हो जाते हैं और उनका कभी पता नहीं चल पाता । पिछले साल गृह मंत्रालय द्वारा संसद में पेश आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि इस मामले में भारत पड़ोसी देशों को भी मात दे रहा है । देश में इन दिनों बच्चों के लापता होने को लेकर एक बार फिर सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर इन बच्चों को कौन सी व्यवस्था निगल जाती है। 

दरअसल,गैर सरकारी संगठन  चाइल्ड राइट्स एंड यू की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि भारत के चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बच्चों के लापता होने के मामले सबसे ज्यादा देखने को मिलते है। वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश और राजस्थान में लापता लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में पांच गुना अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में घरेलू हिंसा, दुर्व्यवहार और उपेक्षा के कारण लड़कियां खुद भाग जाती हैं। इनमें से अधिकतर लड़कियां घरेलू नौकर या फिर व्यवसायिक यौन शोषण के धंधे में लगा दी जाती हैं।

‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ नाम के इस संगठन की ‘स्टेटस रिपोर्ट ऑन मिसिंग चिल्ड्रेन’ में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के 58 जिलों में प्रतिदिन लगभग 8 बच्चे– 6 लड़कियां और 2 लड़के-लापता हुए हैं। वहीं दिल्ली में वर्ष 2021 में कुल 1 हजार 641 बच्चे लापता हुए यानी रोजाना औसतन 5 बच्चे लापता हुए। दिल्ली में लापता हुए बच्चों में से करीब 85 प्रतिशत बच्चे 12-18 वर्ष की आयु के थे। वहीं मध्य प्रदेश से प्रतिदिन औसतन 24 लड़कियां और 5 लड़कों समेत 29 बच्चे लापता हुए हैं। जबकि राजस्थान में सबसे ज्यादा 5 हजार 354 बच्चे लापता हुए हैं जिनमें 4 हजार 468 लड़कियां और 886 लड़के लापता हुए। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में हर दिन औसतन 12 लड़कियों और दो लड़कों समेत 14 बच्चे लापता हुए हैं ।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो  के 2020 के आंकड़ों के अनुसार , मध्य प्रदेश में लापता बच्चों के 8,751 और राजस्थान में 3,179 मामले दर्ज किए गए। ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ के साझेदार संगठनों की ओर से डाली आरटीआई के जबाव में सरकार ने बताया कि वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश में बच्चों के गुम होने के 10 हजार 648 और राजस्थान में 5 हजार 354 मामले दर्ज किए गए हैं। ये आंकड़े वर्ष 2020 की तुलना में मध्य प्रदेश में लापता बच्चों के मामलों से  लगभग 26 प्रतिशत की वृद्धि और राजस्थान में 41 फीसदी की बढ़ोतरी का संकेत देते हैं।

क्या है पूरा मामला



भारत में हर वर्ष लापता बच्चों की संख्या कम होने के बजाए बढ़ती  ही जा रही  है। देश में लापता बच्चों को लेकर लंबे समय से चिंता भी जताई जा रही है लेकिन हर वर्ष ये चिंता गायब हुए बच्चों के आंकड़े के साथ ही सामने आती है और फिर कुछ समय बाद ठंड़े बस्ते में चली जाती है। अलग -अलग आरटीआई के जबाव में बताया गया है कि   मध्य प्रदेश में लापता बच्चों की संख्या के मामले में शीर्ष पांच जिलों में इंदौर, भोपाल, धार, जबलपुर और रीवा शामिल हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में लापता बच्चों की संख्या के मामले में शीर्ष पांच जिलों में लखनऊ, मुरादाबाद, कानपुर , मेरठ और महराजगंज शामिल हैं।

अगर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के की बात करें तो यहां 2021 में सबसे ज्यादा बच्चे उत्तर पूर्वी जिले में गुम हुए है, जबकि दक्षिण पूर्व जिले में सबसे कम लापता हुए।यहां ध्यान देने वाली बात यह  है कि उत्तर प्रदेश ने  केवल 58 जिलों के आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। इसी तरह, दिल्ली में सभी जिलों ने आंकड़े मुहैया नहीं कराए गए। वहीं, हरियाणा ने आरटीआई का जवाब नहीं दिया है ।

 रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देशभर में लापता बच्चों की कुल संख्या में बालिकाओं का अनुपात 2016 में लगभग 65 प्रतिशत था, जो बढ़कर 2020 में 77 प्रतिशत हो गया। मध्य प्रदेश और राजस्थान दो ऐसे राज्य हैं, जहां लापता बच्चों की कुल संख्या में बालिकाओं का अनुपात सबसे अधिक है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में, 2021 में लापता हुए बच्चों में 83 प्रतिशत से अधिक लड़कियां थीं।
‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा का कहना है कि,यह गंभीर चिंता का विषय है कि पिछले पांच वर्षों से लापता बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में 2021 में लापता हुए बच्चों में 83 फीसदी से ज्यादा लड़कियां थीं। मध्य प्रदेश में पिछले साल 8 हजार 876  और राजस्थान में 4 हजार 468 लड़कियों के लापता होने के मामले दर्ज किए गए थे।

मोइत्रा ने कहा, ‘इस रिपोर्ट में किए गए एनसीआरबी डेटा के गहन विश्लेषण से यह  पता चलता है कि अखिल भारतीय स्तर पर लापता बच्चों की कुल संख्या में बालिकाओं का अनुपात 2016 में लगभग 65 फीसद था, जो बढ़कर 2020 में 77 प्रतिशत हो गया है। सभी चार राज्यों में यही चलन रहा है, सभी लापता बच्चों में मध्य प्रदेश और राजस्थान में लड़कियों का अनुपात सबसे अधिक है।’

मोइत्रा के अनुसार लापता लड़कों की संख्या भी गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान असंगठित क्षेत्र में सस्ते श्रम की कमी के कारण बाल श्रम की मांग बढ़ गई है, जिस कारण अधिकतर बच्चे बंधुआ मजदूरी की ओर धकेले जा रहे हैं।

 लापता बच्चों पर जानकारों का कहना है कि लापता बच्चों में से ज़्यादातर मामलों को तो पुलिस मानती ही नहीं, उनके मामले दर्ज करना और उनकी जांच करना तो दूर की बात है। बावजूद इसके कि  इस मामले में कई बार सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रशासन को फटकारा हैं। लेकिन फटकार का भी असर दिखता नहीं है। जबकि 10 मई 2013 को बचपन बचाओ आंदोलन संगठन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि हर बच्चे की  गुमशुदा होने पर एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए और हर थाने में एक विशेष जुवेनाइल पुलिस अधिकारी होना भी जरूरी है लेकिन आज भी इस आदेश का पूर्णत: पालन होते नहीं दे रहा है।

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