पिछले साल कोरोना काल में सबसे ज्यादा राजनीति का केंद्र राजस्थान रहा था । राजस्थान में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मुखर हो गए थे । मामला तब फोन टैपिंग विवाद का था । जो आगे जाकर दोनों के बीच दूरी पैदा करने का कारण बना था । यहां तक की राजस्थान की विधानसभा में पायलट समर्थक विधायकों के सरकार को घेरने की भी कोशिशें की गई थी।
तब पायलट और गहलोत गुट के लोग राजस्थान में कांग्रेस की आपसी तकरार को सड़कों पर ले आए थे । उस समय लगने लगा था कि अब बगावती रूप धारण कर चुके सचिन पायलट कांग्रेस में नही टिक पाएंगे।
इसके मद्देनजर ही यह भी चर्चा चली गई पायलट अब सिंधिया की तरह भाजपा का रुख कर सकते हैं । हालांकि उसके बाद केंद्रीय आलाकमान के हस्तक्षेप से पायलट भाजपा में तो नहीं गए, लेकिन उनसे दो महत्वपूर्ण पद छीन लिए गए । मुख्यमंत्री गहलोत से लड़ाई का नतीजा यह निकला सचिन कि बेपद हो गए।
इसके बाद सचिन पायलट अपने राजनीतिक वजूद को बढ़ाने के लिए लगातार जनता के बीच जा रहे थे । पिछले दिनों उन्होंने कई किसान रैली आयोजित की। जिसमें वह एकला चलो की नीति पर चल रहे थे । लेकिन इसी दौरान राजस्थान के तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव आ गए। जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को सचिन पायलट के साथ की जरूरत महसूस हुई।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बखूबी जानते हैं कि सचिन पायलट के साथ के बिना वह यह उप चुनाव नहीं जीत पाएंगे। इसके मद्देनजर पिछली 27 फरवरी को मुख्यमंत्री गहलोत सचिन पायलट को अपने साथ पहली बार हेलीकॉप्टर में बिठाकर ले गए। कोरोना काल में हुई आपसी लड़ाई के बाद यह पहला मौका था जब सचिन पायलट और अशोक गहलोत ना केवल इतने करीब से मिले थे, बल्कि उपचुनाव में चुनाव प्रचार को निकले थे ।
आज एक बार फिर गहलोत पायलट को साथ लेकर अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के नामांकन कराएंगे । करीब 1 साल बाद पायलट और गहलोत आज जनसभाओं में मंच शेयर करेंगे। राजस्थान में तीनों विधानसभाओं के चुनाव 17 अप्रैल को है। यह विधानसभा में सुजानगढ़, सहाड़ा और राजसमंद । जिसमें गहलोत की प्रतिष्ठा गांव पर है ।
गहलोत बखूबी जानते हैं कि उनके कार्यकाल में अगर रहे वह यह सीट नहीं जीत पाए तो पार्टी हाईकमान की नजर में वह कमजोर सीएम साबित होंगे। गहलोत ऐसा हरगिज़ नहीं होने देना चाहते हैं। ऐसे में वह सचिन पायलट को साथ लेकर यह विधानसभा उप चुनाव जीतना चाहते हैं। हालांकि गहलोत और पायलट की रिश्तो की इस पटकथा का अंत बहुत ही दिलचस्प होगा ।जिसमें देखना यह होगा कि कांग्रेस इन विधानसभा उपचुनाव को जीत पाती है या नहीं।
क्योंकि भाजपा ने भी इस चुनाव में अपने मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। भाजपा ने सहाड़ा में रतनलाल जाट, सुजानगढ़ में खेमाराम मेघवाल व राजसमंद में दीप्ति महेश्वरी को अपना उम्मीदवार बनाया है। डॉ. रतनलाल जाट बीजेपी के पुराने नेता हैं और राज्य में मंत्री रह चुके हैं। वहीं, खेमाराम मेघवाल सुजानगढ़ सीट से ही विधायक व राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं और उनकी पत्नी मनभरी देवी पिछले साल हुए चुनाव में पंचायत समिति प्रधान चुनी गईं। इस तरह से आजादी के बाद सुजानगढ़ में पहली बार भाजपा का प्रधान बना।