16 सितम्बर की रात को राजस्थान में बसपा के सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। 200 में अब कांग्रेस के विधायकों की संख्या 106 हो गई है। इससे अशोक गहलोत की सरकार तो मजबूत होगी, लेकिन ज्यादा असर कांग्रेस संगठन पर पड़ेगा। हो सकता है कि अब डिप्टी सीएम सचिन पायलट से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पद वापस ले लिया जाए।
बसपा के 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाने में प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से पायलट की कोई भूमिका नहीं रही। राजनीतिक दृष्टि से यह बड़ी घटना है, लेकिन इसमें प्रदेशाध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होने से साफ जाहिर है कि राजस्थान में सत्ता और संगठन एक पटरी पर नहीं है। पायलट पहले ही अपनी सरकार के कामकाज को लेकर प्रतिकूल टिप्पणी कर चुके हैं।
सूत्रों की माने तो राजस्थान में सता और संगठन में जो कुछ भी हो रहा है उसकी जानकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को है। सोनिया गांधी चाहती हैं कि जानवरी में होने वाले पंचायती राज चुनाव में कांग्रेस को सफलता मिले। लेकिन यह तभी संभव है, जब उम्मीदवारों का चयन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सहमति से हो। पायलट प्रदेशाध्यक्ष के पद पर रहते ऐसा संभव नहीं है।
असल में मौजूदा परिस्थितियों में पायलट को हटाना जोखिम भरा था, इसलिए पहले सरकार की मजबूती सुनिश्चित की गई। अब जब सरकार पूर्ण रूप से मजबूत हो गई है तो पायलट को हटाने वाला बड़ा फैसला भी किया जा सकता है।
12 निर्दलीय विधायकों का समर्थन गहलोत के पास है। ऐसे में गहलोत को 200 में से 118 विधायकों का समर्थन है। आरएलडी के सुभाष गर्ग पहले से ही गहलोत के साथ हैं। यानि अब अशोक गहलोत संगठन में कोई भी जोखिम ले सकते हैं।
जागरुक पाठकों को याद होगा कि विधानसभा चुनाव के अवसर पर गहलोत ने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव की हैसियत से बयान दिया था कि राजस्थान में सहयोगी दलों के साथ गठबंधन किया जा सकता है, तब गहलोत ने बसपा की ओर इशारा भी किया था, लेकिन तब प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से पायलट ने गठबंधन को नकार दिया।
गहलोत के समर्थक माने जाने वाले सुभाष गर्ग का टिकट भी भरतपुर से काट दिया गया था, लेकिन गहलोत ने गर्ग को आरएलडी का उम्मीदवार बनवा दिया। सूत्रों के अनुसार आने वाले दिनों में कांग्रेस संगठन में खलबली मचाएंगे। देखना होगा कि इन सब हालातों पर पायलट की क्या प्रतिक्रिया होती है।