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सिंगापुर में वैध होंगे समलैंगिक संबंध ; जानें भारत में क्या है कानून

समलैंगिक संबंधों को लेकर सिंगापुर सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सीन लूंग ने एक रैली में घोषणा की कि वह समलैंगिक संबंधों को अपराध बनाने वाले कानून को निरस्त कर देंगे। इस अधिनियम के तहत पुरुषों के बीच सहमति से यौन संबंध बनाना अपराध था। यह निर्णय अब सिंगापुर में समलैंगिक संबंधों को अवैध नहीं बनाएगा। भारत में भी समलैंगिक संबंधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में बड़ा फैसला सुनाया था। हालांकि, भारत में समलैंगिक विवाहों के संबंध में स्पष्टता को लेकर वर्तमान में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मामला चल रहा है। आइए एक नजर डालते हैं भारत में समलैंगिक विवाह पर चल रही बहस पर।

कौन सी सुनवाई हो रही है?

दिल्ली उच्च न्यायालय हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह के रजिस्ट्रेशन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है। इससे पहले एक पीठ समलैंगिक, समलैंगिक, ट्रांसजेंडर और (एलजीबीटीक्यू प्लस) समुदाय के लोगों द्वारा दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

अंग्रेजों ने बनाया था कानून…

2018 तक भारत में समलैंगिक संबंधों को अवैध माना जाता था। भारत में समलैंगिक संबंधों के संबंध में कानून अंग्रेजों द्वारा तैयार किया गया था। अंग्रेजों ने इस अधिनियम को अनुच्छेद 377 के तहत उन देशों में लागू किया जहां उन्होंने शासन किया था। भारतीय दंड संहिता के अनुच्छेद 377 के अनुसार, “किसी भी महिला, पुरुष के साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध” (जिसमें समलैंगिक संबंध शामिल थे) अवैध और दंडनीय था। हालांकि, 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि समान-सेक्स संबंध रखने से संबंधित हिस्सा कानूनी कार्रवाई के तहत नहीं आएगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून के तहत समलैंगिक संबंध अपराध नहीं होंगे।

अनुच्छेद 377 में क्या है?

 

लॉर्ड मैकाले ने 1860 में भारतीय दंड संहिता तैयार की थी। बेशक, इस संहिता पर ब्रिटिश कानूनों की छाप थी। आईपीसी की धारा 377 के तहत ‘अप्राकृतिक संभोग’ एक अपराध था। इस धारा के तहत दोष सिद्ध होने पर 10 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।

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अप्राकृतिक सेक्स क्या है?

अप्राकृतिक वो संभोग है जिसके परिणामस्वरूप प्रजनन नहीं होता है। उस समय यह माना जाता था कि संभोग केवल प्रजनन के लिए किया जाना चाहिए। तो स्वाभाविक रूप से यह खंड समलैंगिकों, समलैंगिकों और ट्रांसजेंडरों पर लागू होता है। इतना ही नहीं इस धारा के तहत एक वयस्क विवाहित पुरुष और महिला के लिए ऐसा संबंध बनाना भी अपराध था, जिसमें सहमति न हो।

दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या दिया था फैसला?

2 जुलाई 2009 को दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। दिल्ली उच्च न्यायालय ने समान लिंग वाले वयस्कों के बीच सहमति से संबंधों को वैध बनाने के लिए सामाजिक सेवा संगठनों की याचिका को बरकरार रखा। याचिका 2001 में नाज़ फाउंडेशन द्वारा दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि सहमति से दो वयस्कों के बीच निजी सेक्स अपराध नहीं है।

कई संगठनों का विरोध

धार्मिक संगठनों ने कहा कि अगर समलैंगिक संबंधों को मंजूरी दी गई, तो समाज रसातल में चला जाएगा। अनुच्छेद 377 में संशोधन का कई धार्मिक संगठनों ने विरोध किया था। सतीश कौशल (ज्योतिषी), रजा अकादमी, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल और हिंदुत्व संगठनों ने अनुच्छेद 377 में बदलाव का विरोध किया।

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मौलिक अधिकार क्या हैं?

भारतीय संविधान ने अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं। लेकिन इसके इस्तेमाल से समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता। भारतीय संविधान के तहत आम कानून विवाह को मौलिक या कानूनी अधिकारों के तहत कोई स्पष्ट मान्यता नहीं है।

2018 में क्या हुआ था?

2018 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने आपराधिक अपराधों की सूची से अनुच्छेद 377 को हटाने का फैसला किया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता दी गई थी। समलैंगिक विवाह वैध है या नहीं यह अलग बात है। इस संबंध में कोर्ट में मामला चल रहा है।

कोर्ट में क्या चल रहा है?

दिल्ली हाई कोर्ट में समलैंगिक जोड़ों को शादी की इजाजत देने का मामला चल रहा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसमें अपनी भूमिका स्पष्ट करने का भी निर्देश दिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बताया था कि भारत में शादियों को मान्यता देने के क्या मापदंड होंगे। सरकार ने तर्क दिया है कि विवाह को कानूनी रूप से मान्यता दी जाती है जब एक सक्षम ‘पुरुष’ और एक ‘महिला’ जो प्रजनन करने में सक्षम हैं, विवाहित हैं। इस स्थिति से केंद्र सरकार कह रही है कि समलैंगिक विवाह अवैध है।

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समलैंगिकता को दुनिया के कई हिस्सों में अवैध माना जाता है और कुछ जगहों पर इसमें मौत की सजा दी जाती है।

अफ्रीका

अफ्रीका के लगभग 30 देशों में समलैंगिकता पर बैन है। वहीं पूरे दक्षिण अफ्रीका में समलैंगिक शादी को अनुमति मिली हुई है। मिडिल ईस्ट और संयुक्त अरब अमीरात के देशों में तो समलैंगिक संबंधों को लेकर मौत की सजा तक दी जाती है। समलैंगिक अधिकारों को केवल इजरायल मान्यता देता है।

एशिया

समलैंगिकों को लेकर एशिया का अधिकतर हिस्सा नरमी बरतता है। एशिया में सबसे पहला क्षेत्र ताइवान है यहां साल 2017 में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिल गई थी। 2015 में वियतनाम ने भी समलैंगिक विवाह समारोहों से बैन हटाया था। बावजूद इसके समलैंगिक संगठनों को पूरी तरह से कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। थाइलैंड में इसी वर्ष जून में सांसदों की ओर से समलैंगिक यूनियनों को वैध बनाने की प्रारंभिक मंजूरी दी गई थी। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में समलैंगिक विवाह की क़ानूनी मंजूरी प्राप्त है।

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यूरोप

दुनिया में सबसे पहले नीदरलैंड ने समलैंगिक जोड़ों के विवाह को मान्यता दी थी। जिसके बाद से यूरोप के 17 देश समलैंगिक विवाह को वैध कर चुके हैं।  जहां समलैंगिक विवाह मान्य है वो देश हैं ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, फांस, जर्मनी, आइसलैंड, आयरलैंड, लक्जमबर्ग, माल्टा, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्पेन, स्वीडन, स्

लोवेनिया और स्विटजरलैंड।  कुछ देश केवल समलैंगिक नागरिक भागीदारी को मान्यता देते हैं उनमें चेक गणराज्य, क्रोशिया, साइप्रस, एस्टोनिया, ग्रीस, हंग्री और इटली शामिल हैं।

1993 तक रूस में समलैंगिकता को अपराध माना जाता था और उसके बाद 1999 तक इसे मानसिक बीमारी करार दिया गया लेकिन मौजूदा समय में वहां अब समलैंगिकता वैध है।

अमेरिका

कनाडा पहला अमेरिकी देश है जिसने 2005 में समलैंगिक विवाह और समलैंगिक गोद लेने की अनुमति दी थी। 10 साल बाद यूएसए ने समलैंगिक विवाह को देश भर में वैध कर दिया। वहीं लैटिन अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्राजील, कोलंबिया, इक्वाडोर, कोस्टा रिका, चिली और उरुग्वे में समलैंगिक विवाह की अनुमति है।

मेक्सिको की संघीय राजधानी मेक्सिको सिटी में समान-लिंग संघों को 2007 में मान्यता दी गई थी और 2009 में समान-लिंग विवाह को वैध कर दिया गया था। इसके बाद 32 में से लगभग आधे राज्य इसका पालन करते हैं। क्यूबा में अगले महीने यानी सितंबर में एक नया पारिवारिक कानून अपनाने के लिए जनमत संग्रह होना है, जिसमें समलैंगिक विवाह को वैध बनाना भी शामिल है।

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