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कैग के जरिए गडकरी पर निशाना!

नितिन गडकरी और गुजरात लॉबी यानी कि पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह के बीच कैसे संबंध हैं इससे हर कोई वाकिफ है। कहा जा रहा है कि गुजरात लॉबी ने गडकरी को साइडलाइन करना शुरू कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2024 चुनाव में अगर सीटें कम होती हैं तो गडकरी को पीएम उम्मीदवार बनाया जा सकता है क्योंकि उनके विभिन्न राजनीतिक दलों से अच्छे संबंध हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि गडकरी को कैग की रिपोर्ट के जरिए निशाने पर लिया जा रहा है। कैग के वर्तमान प्रमुख गिरीश चंद्र मुर्मु गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी रह चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी के बेहद करीबी अधिकारियों में शुमार रहे मुर्मु लंबे अर्से तक गुजरात में मोदी के सचिव भी रहे। खबर है कि कैग की रिपोर्ट के बाद गडकरी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने इस रिपोर्ट को पूरी तरह से गलत बताया है

चुनावी साल में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) एक बार फिर सुर्खियों में है। कैग की हालिया रिपोर्ट ने सरकार की आयुष्मान योजना, अयोध्या विकास परियोजना और द्वारका एक्सप्रेस-वे निर्माण में चल रही गड़बड़ियों को उजागर किया है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा द्वारका एक्सप्रेस- वे को लेकर हो रही है। कैग की रिपोर्ट आने के बाद विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की घेराबंदी कर शुरू कर दी है। दरअसल इस महीने की शुरुआत में सीएजी की रिपोर्ट आई थी। इसमें दावा किया गया कि भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बन रहे द्वारका एक्सप्रेस-वे में अनुमान से ज्यादा लागत लग रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, कैबिनेट कमेटी ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स ने 29 .06 किमी लंबे द्वारका एक्सप्रेस-वे को 18 .20 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर के बजट से बनाने की मंजूरी दी थी। परियोजना की कुल कीमत इस आधार पर 528 ़89 करोड़ बनती है।
लेकिन नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने इसका बजट बढ़ाकर 7287 .29 करोड़ रुपए कर दिया। इस हिसाब से प्रति किलोमीटर सड़क बनाने में 251 करोड़ रुपए खर्च होंगे। ऐसे में अपनी सरकार के बचाव में खुद नितिन गडकरी सामने आ गए हैं। उन्होंने साफ कह दिया है कि सीएजी की रिपोर्ट सही नहीं है। गडकरी ने कहा जो कहा जा रहा है वह बिल्कुल गलत है। द्वारका एक्सप्रेसवे पर 12 फीसदी पैसा बचाया गया है सीएजी का आकलन सही नहीं है।

इस बीच केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के भविष्य को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। गडकरी और गुजरात लॉबी यानी कि पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह के बीच कैसे संबंध हैं इससे हर कोई भली भांति वाकिफ है। कहा जा रहा है कि गुजरात लॉबी ने नितिन गडकरी को साइडलाइन करना शुरू कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2024 चुनाव में अगर सीटें कम होती हैं तो नितिन गडकरी को पीएम उम्मीदवार बनाया जा सकता है। क्योंकि उनके विभिन्न राजनीतिक दलों से अच्छे संबंध हैं। इसलिए गुजरात लॉबी का ये पूरा अभियान गडकरी को निपटाओ का चल रहा है। ये आरोप सोशल मीडिया में ट्रेंड हो रहे हैं।

खबर है कि कैग की रिपोर्ट के बाद गडकरी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कैग की रिपोर्ट को पूरी तरह से गलत बताया है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नितिन गडकरी को कैग की रिपोर्ट के जरिए निशाने पर लिया जा रहा है। दरअसल कैग के वर्तमान प्रमुख गिरीश चंद्र मुर्मु गुजरात कॉडर के आईएएस अधिकारी रह चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी के बेहद करीबी अधिकारियों में शुमार रहे मुर्मु लंबे अर्से तक गुजरात में मोदी के सचिव रह चुके हैं।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की परियोजना द्वारका एक्सप्रेसवे का काम अभी पूरा भी नहीं हुआ है लेकिन इसे लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि पिछले पांच सालों में इस परियोजना का खर्च कई गुना बढ़ गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में जब परियोजना को मंजूरी दी गई थी तब इसकी लागत 18 ़20 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर थी, लेकिन अब यह लागत बढ़ कर 251 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर हो गई है।

सीएजी ने कहा है कि द्वारका एक्सप्रेस-वे पहले हरियाणा सरकार की परियोजना थी, जिसके लिए उसने 150 मीटर चौड़ी सड़क बनाने के लिए जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया था। लेकिन जब राज्य सरकार की तरफ से परियोजना आगे नहीं बढ़ी तब आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने इसे केंद्र सरकार की भारतमाला परियोजना के तहत लाने को अनुमति दे दी। इसके बाद हरियाणा सरकार ने केंद्रीय सड़क यातायात और राजमार्ग मंत्रालय को इसके लिए 90 मीटर चौड़ी सड़क बनाने के लिए जमीन निःशुल्क भी दे दी। सीएजी के मुताबिक 14 लेनों का राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने के लिए सिर्फ 70-75 मीटर चौड़ी सड़क की जरूरत थी, लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने कुछ अलग ही काम कर दिया।

सीएजी का कहना है कि एनएचएआई ने बिना कोई कारण दर्ज किये परियोजना के हरियाणा वाले हिस्से में एलिवेटेड सड़क बनाने की योजना बना ली, जिससे कुल लागत 18 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर से बढ़ कर 250 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर हो गई। एनएचएआई को ऐसा नहीं करना चाहिए था। सीएजी एक संवैधानिक संस्था है जिसकी रिपोर्टें संसद में पेश की जाती है। उसके बाद संसद की पब्लिक एकाउंट्स कमिटी (पीएसी) इन रिपोर्टों का अध्ययन करती है और अपनी सिफारिशें सरकार को देती है। लेकिन द्वारका एक्सप्रेस-वे वाली रिपोर्ट के सामने आने के बाद राजमार्ग मंत्रालय के मंत्री और अधिकारी कई तरीकों से अपनी सफाई देने में लगे हैं। पहले तो बिना नाम लिए मंत्रालय के अधिकारियों के बयान मीडिया में छपे जिसमें उन्होंने दावा किया कि सीएजी की रिपोर्ट ही गलत है। यहां तक कि केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें द्वारका एक्सप्रेस-वे को इंजीनियरिंग का चमत्कार बताया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि इसके बनने के 100 साल बाद तक दिल्ली की जनता इसे याद करेगी।

सीएजी के मुताबिक परियोजना जिन चार परियोजनाओं में विभाजित है उन्हें नवंबर 2020 से लेकर सितंबर 2022 तक पूरा हो जाना चाहिए था। लेकिन हालात यह है कि परियोजना अभी तक पूरी नहीं हुई है। सीएजी के मुताबिक मार्च 2023 तक चारों परियोजनाओं में सिर्फ 60.50 से लेकर 99.25 प्रतिशत की तरक्की दर्ज की गई है। द्वारका एक्सप्रेस-वे के नाम पर दिल्ली के द्वारका और हरियाणा के गुरुग्राम के बीच हजारों फ्लैट वाली कई रिहायशी परियोजनाएं सालों पहले बना ली गईं है।

सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि 29 किलो मीटर की परियोजना के लिए लागत 18 .2 करोड़ रुपए प्रति किमी ़से बढ़कर 250.77 करोड़ रुपए प्रति किमी हो गई, जो लागत में भारी वृद्धि की तरह लगती है।
भारत के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने सीएजी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह तथ्यों की घोर गलत बयानी है। मंत्रालय के अनुसार द्वारका एक्सप्रेस-वे भारतमाला परियोजना की अन्य सड़कों से बहुत अलग है। यह 14 लेन की सड़क है, जिसमें से 8 लेन ऊंची हैं, जबकि बाकी 6 लेन जमीनी स्तर पर हैं। ऐसे में एक एलिवेटेड रोड की लागत स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक होगी, और कोई भी एलिवेटेड रोड 18 .2 करोड़ रुपए प्रति किमी ़ की लागत पर नहीं बनाई जा सकती है, जो कि ग्रेड- स्तरीय सड़कों के लिए एक औसत अनुमान था।

सीएजी ने आगे दावा किया कि एलिवेटेड रोड बनाने की कोई आवश्यकता नहीं थी, और 14-भूमि ग्रेड-स्तरीय सड़क बनाने के लिए पर्याप्त भूमि थी। कैग ने कहा कि लागत बढ़ गई है क्योंकि सरकार ने सड़क को एलिवेटेड रोड में बदलने का फैसला लिया है। सीएजी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि राजमार्ग मंत्रालय ने उसके प्रश्नों का उत्तर देते हुए बताया था कि एलिवेटेड रोड की आवश्यकता क्यों है। सड़क परिवहन मंत्रालय के अनुसार द्वारका एक्सप्रेस-वे को अंतरराज्यीय यातायात की सुचारू आवाजाही की अनुमति देने के लिए न्यूनतम प्रवेश-निकास व्यवस्था के साथ आठ-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था। भारतमाला परियोजना के चरण-1 के तहत पर्याप्त लंबाई के पुलों, वाया, नलिकाओं और सुरंगों सहित विशेष परियोजनाओं की औसत लागत लगभग 152 करोड़ रुपए प्रति किमी है, न कि 18 करोड़ रुपए प्रति किमी। यदि द्वारका एक्सप्रेस-वे को ग्रेड-स्तरीय सड़क के रूप में बनाया जाता है, तो इसमें अत्यधिक संख्या में ओवरपास और अंडरपास की आवश्यकता होगी क्योंकि पूरी सड़क महानगरीय क्षेत्रों से होकर गुजरती है और बड़ी संख्या में यातायात चौराहे हैं। परिणाम स्वरूप, लागत औसत 18 .2 करोड़ रुपए प्रति किमी लागत से कहीं अधिक होगी या 152 करोड़ रुपए प्रति किमी से भी अधिक हो सकती है।

सीएजी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि लागत में वृद्धि ग्रेड- स्तरीय सड़क को एलिवेटेड रोड में परिवर्तित करने के कारण हुआ है, और रिपोर्ट में किसी भी घोटाले का संकेत या आरोप नहीं लगाया गया है। दरअसल, सरकारी ऑडिटर ने एलिवेटेड रोड की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसी उद्देश्य को बहुत कम लागत पर ग्रेड-स्तरीय सड़क द्वारा पूरा किया जा सकता था। उल्लेखनीय है कि दिल्ली और गुरुग्राम के बीच एनएच -48 पर भीड़भाड़ कम करने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा 2006 में द्वारका एक्सप्रेस-वे की योजना बनाई गई थी। क्योंकि पूरा क्षेत्र भारी आबादी वाला है, इसलिए अलग से सड़क बनाने का कोई विकल्प नहीं था और एकमात्र विकल्प एचएच-48 को चौड़ा करना था। प्रारंभ में, इसे 8-लेन सड़क के रूप में योजनाबद्ध किया गया था, और राज्य सरकार इसे बनाने जा रही थी। लेकिन भूमि अधिग्रहण समेत विभिन्न कारणों से यह परियोजना शुरू नहीं हो सकी। परिणामस्वरूप, इस परियोजना को 2016 में केंद्र सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया और हरियाणा सरकार ने 2018 में जमीन एनएचएआई को सौंप दी।

परियोजना को अपने हाथ में लेने के बाद, एनएचएआई ने परियोजना के लिए दोनों विकल्पों, ग्राउंड लेवल रोड और एलिवेटेड रोड पर विचार किया। उन पर स्थायी लागत समिति, परियोजना मूल्यांकन समिति और एनएचएआई बोर्ड द्वारा विस्तार से चर्चा की गई और विचार-विमर्श के बाद एलिवेटेड रोड विकल्प का चयन किया गया। यह पाया गया कि फ्लाईओवर और अंडरपास वाली जमीनी स्तर की सड़क क्षेत्र में यातायात की भीड़ की समस्या का समाधान नहीं करेगी। क्योंकि मौजूदा एनएच-48 पर पहले से ही बड़ी संख्या में ऐसी संरचनाएं हैं जिनमें एकाधिक प्रवेश और निकास है, लेकिन ट्रैफिक जाम जारी है। चूंकि क्षेत्र में सड़क के पूरे हिस्से में निरंतर विकास हो रहा है, इसलिए नियमित अंतराल पर नए फ्लाईओवर और अंडरपास आवश्यक हो जाते हैं। 14 लेन की जमीनी स्तर की सड़क केवल एक्सप्रेस-वे के हरियाणा खंड में ही संभव है, दिल्ली खंड में यह संभव नहीं है। सरकार के मुताबिक, इससे करीब 1200 करोड़ रुपए की बचत होगी। लेकिन इसके लिए बड़ी संख्या में फ्लाईओवर और अंडरपास की आवश्यकता होगी, भविष्य में और अधिक जोड़ने की आवश्यकता के साथ, एलिवेटेड रोड का विकल्प चुना गया था।

8-भूमि एलिवेटेड रोड और 6-लेन ग्राउंड लेवल वाला एक्सप्रेस-वे स्थानीय यातायात को अंतरराज्यीय यातायात से प्रभावी ढंग से अलग करेगा, और दिल्ली और गुरुग्राम के बीच एक निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। यह देखा जा सकता है कि सीएजी ने भारतमाला परियोजना के तहत केवल सड़कों की औसत लागत की द्वारका एक्सप्रेसवे परियोजना के साथ गलत तुलना की। परियोजना के तहत पर्याप्त लंबाई वाले फ्लाईओवर वाली सड़क की औसत लागत 150 करोड़ रुपए से अधिक है, न कि 18 करोड़ रुपए। लेकिन अगर एक्सप्रेस-वे जमीनी स्तर पर बनाया जाता तो यह एक रोलर कोस्टर बन जाता क्योंकि इसके लिए बड़ी संख्या में फ्लाईओवर की जरूरत होगी। इसलिए एलिवेटेड रोड ही बेहतर विकल्प था।

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