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संकट में गडकरी, स्वीडन मीडिया ने लगाया आरोप

आपको याद होगा बोफोर्स कांड, जब एक स्वीडिश कंपनी के खुलासे ने भारत की राजनीति में बवंडर ला दिया था। वो तारीख थी 24 मार्च, 1986, ये वहीं दिन था जब भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था। अब एक बार फिर देश की राजनीति में स्वीडन की एक कंपनी को लेकर खलबली मची हुई है। स्वीडिश कंपनी स्कैनिया ने एक ऐसा दावा किया है कि सियासत में भूचाल आना लगभग तय माना जा रहा है। ट्रक और बस निर्माता कंपनी स्कैनिया उसी देश की कंपनी है जिसके एक खुलासे ने भारत की सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था।

सियासत में मचा दी थी खलबली

24 मार्च, वर्ष 1986 को भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था। इस सौदे के तहत भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप की सप्लाई होनी थी। उस वक्त किसी को मालूम नहीं था कि सेना के साहस का परिचायक बनने वाली ये बोफोर्स डील भ्रष्टाचार की चाशनी में इस कदर डूबी हुई है कि तत्कालीन सत्ता को भी ले डूबेगी।

वर्ष 1987 में बड़ा खुलासा

इस बोफोर्स कांड का पर्दाफाश स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रोम ने ही किया था। उन्होंने पहली बार वर्ष 2012 में स्टेन लिंडस्ट्रोम ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1987 में भारत से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ की पत्रकार चित्रा सुब्रमण्यम को इससे जुड़े कई अहम दस्तावेज दिए थे। इसके बाद इस भ्रष्ट डील का खुलासा हुआ और राजनीति में हंगामा मच गया। 16 अप्रैल, 1987 का वह दिन भारतीय राजनीति खासतौर पर कांग्रेस के लिए किसी काले दिन से कम नहीं था। एक स्वीडिश रेडियो की ओर से खुलासा किया गया कि कंपनी द्वारा इस सौदे के लिए भारत के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों और रक्षा विभाग के अधिकारी को रिश्वत दी गई है। कंपनी ने दावा किया कि उन्होंने भारत को करीबन 60 करोड़ रुपये घूस दी।

गिर गई थी कांग्रेस सरकार

हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सभी आरोपों से इंकार कर दिया था। लेकिन उस वक्त तक आधे से ज्यादा आबादी जो राजनीति में दिलचस्पी रखती थी, उनकी जुबान पर ये मामला रट गया था। सब हैरान थे कि सत्ता के गलियारों से भ्रष्टाचार तो सुना था पर सेना के सामान में भी भ्रष्टाचार हो गया ये पहली बार था। फिर वहीं एक जांच कमेटी बनाई गई। ये जांच कमेटी स्वीडन गई और फिर वहां से रिपोर्ट आई। इस रिपोर्ट आने के बाद देश में नवंबर 1989 को आम चुनाव संपन्न हुए और कांग्रेस सब कुछ हार गई। राजीव गांधी प्रधानमंत्री नहीं रहे। बोफोर्स पर 26 दिसंबर, 1989 तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी.सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने पाबंदी लगा दी।

दशकों तक चला मामला

22 जनवरी, 1990: सीबीआई ने आपराधिक षड्यंत्र, धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज किया। एबी बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन आर्डबो कथित बिचौलिए विन चड्ढा और हिंदुजा बंधुओं के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। स्विट्जरलैंड के सुप्रीम कोर्ट ने ओतावियो क्वात्रोची और मामले के अन्य आरोपियों की अपील खारिज कर दी। क्वात्रोची एक इतालवी व्यापारी था, जो बोफोर्स घाटले में दलाली के जरिए रिश्वत देने का आरोपी था। उसी महीने में, वह भारत से भाग गया और फिर कभी नहीं आया। इसके बाद 2013 में उनकी मृत्यु हो गई।

फिर स्वीडन ने किया एक नया खुलासा

ट्रक और बस निर्माता, स्कैनिया ने कथित तौर पर 2013 और 2016 के बीच सात भारतीय राज्यों में अनुबंध प्राप्त करने के लिए रिश्वत का भुगतान किया है। यह दावा स्वीडिश न्यूज चैनल SVT और दो अन्य मीडिया आउटलेट्स की रिपोर्ट पर आधारित है। एसवीटी, जर्मन प्रसारक जेडडीएफ और भारतीय मीडिया के अनुसार, एक भारतीय मंत्री को भी रिश्वत दी गई थी।

मंत्री का नाम जारी नहीं किया गया है। रॉयटर्स ने बताया कि भारत सरकार के अधिकारियों ने कार्यालय के बाहर टिप्पणी करने से मना कर दिया। कंपनी के प्रवक्ता के अनुसार, जांच 2017 में शुरू की गई थी। यह पाया गया कि वरिष्ठ प्रबंधन के साथ-साथ कर्मचारियों की भी गलती थी। स्कैनिया वोक्सवैगन एजी की कमर्शन वीइकल आर्म Traton SE इकाई है। यह यूनिट 2007 में शुरू की गई थी। 2011 में उत्पादन शुरू हुआ। कंपनी के प्रवक्ता के मुताबिक, इसमें रिश्वतखोरी के आरोप शामिल थे, जिसमें कारोबारी साझेदार के जरिए रिश्वतखोरी भी शामिल थी। इसके बाद स्कैनिया ने भारतीय बाजार में बसें बेचना बंद कर दिया और कारखाने को भी बंद कर दिया।

सीईओ हेनरिकसेन ने कहा, “हम भारत में बड़ी सफलता पाना चाहते थे।” हालांकि, हम इसमें शामिल जोखिम का आकलन करने में सक्षम नहीं। भारत के कुछ लोगों ने गलती की। इन लोगों ने बाद में कंपनी भी छोड़ दी। इसके अलावा, जिन व्यापारिक साझेदारों के साथ समझौता किया गया था, उन्हें रद्द कर दिया गया है।

लाइसेंस प्लेट बदलकर बेचने का इरादा

रिपोर्टों के अनुसार, स्कैनिया ने ट्रक के मॉडल में घोटाला किया। उसने लाइसेंस प्लेट बदलकर भारतीय खनन कंपनियों को ट्रक बेचने की कोशिश की। यह सौदा 1.18 बिलियन का था। इस बात के प्रमाण हैं कि स्कैनिया ने व्यावसायिक नियमों का उल्लंघन किया है। हालांकि, कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि इस बात के कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं कि कंपनी कठोर कार्रवाई कर सकती है।

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