हाल ही में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट के मुताबिक विश्व की जनसंख्या 8 बिलियन तक पहुंच गई है वहीं अगले साल तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पछाड़ दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। बढ़ती जनसंख्या के साथ ही गरीबी, असमानता, लिंग भेद और जलवायु परिवर्तन जैसे विषय भी चिंता का कारण हैं। यह बेहद आवश्यक हो गया है कि बढ़ती जनसंख्या और इससे जुड़े अन्य विषयों पर भी ध्यान दिया जाए। बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए देश में एक जनसंख्या नियंत्रण कानून को लागू करने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन भारत में आबादी की समस्या आज नहीं बल्कि आजादी के समय से ही थी।
आजादी मिलते ही तत्कालीन नेहरू सरकार ने परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया। इसके लिए भारत में कंडोम लॉन्च करने पर सहमति बनी थी। समस्या थी कि नाम क्या दिया जाए?
सरकार इस प्रोडक्ट का नाम भारतीय पौराणिक कहानियों में कामदेव का छदम नाम कामराज रखना चाहती थी। लेकिन भारत में काम से ज्यादा नाम पर राजनीति ज्यादा होती है जिसकी वजह से कंडोम का नाम कामराज होते-होते रह गया। लेकिन क्या आप कंडोम का इतिहास जानते हैं कि कंडोम कैसे आया, कहां से आया और पहले यह किस चीज से बनाया जाता था? कंडोम से जुड़ी ऐसी दिलचस्प जानकारी बहुत कम लोगों के पास है। इसलिए, आज कंडोम के इतिहास के बारे में जानना बेहद जरूरी हो जाता है।
आज के दौर में कंडोम कई तरह के फ्लेवर्स के साथ मार्केट में उपलब्ध है। लेकिन शुरुआती दौर में ऐसा नहीं होता था। शुरुआती दौर में कंडोम काफी छोटे साइज में आते थे। बहुत महंगे भी थे। इसका इतिहास काफी पुराना है। पिछले हजारों वर्षों से कई रूप में कंडोम का इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर इतिहास में झांका जाए तो 1220-1350 ईसा पूर्व मिश्रवासियों द्वारा लिनन कंडोम के प्रयोग की बातें सामने आई हैं। माना जाता है कि सेक्सुअल बीमारियों की रोकथाम और उनसे बचाव के लिए मिश्रवासियों द्वारा कंडोम का इस्तेमाल शुरू किया गया था। 100-200 ईस्वी में दक्षिणी फ्रांस की लेस कॉम्बेरेल्स गुफाओं में दीवारों पर मिली पौराणिक पेंटिंग्स में भी कंडोम के चित्र मिले थे। 1640 ईसवीं में इंग्लैंड के सैनिक भेड़-बकरी की आंत का इस्तेमाल कंडोम के रूप में करते थे। अंग्रेज कर्नल कोलोनल कंडम ने इसको विकसित किया। धीरे-धीरे लोग इसे कर्नल कंडम के नाम से जानने लगे। यूरोप में सैकड़ों वर्षों तक यही शब्द चलता रहा। धीरे-धीरे इसका नाम कर्नल कंडम से हटकर सिर्फ कंडोम रह गया।
वर्ष 1860 में अमेरिकी रसायन वैज्ञानिक चार्ल्स गुडइयर काफी समय से रबर की प्रगति पर रिसर्च कर रहे थे। उन्होंने इस रिसर्च में पाया कि रबर ठंडा होने पर बहुत सख्त होता है और गर्म होने पर बहुत नरम होता है। वह इस रबर से इलास्टिक बनाने की कोशिश कर रहे थे। 1860 में चार्ल्स गुडइयर को बड़ी सफलता मिली। इनको इलास्टिक बनाने का फॉर्मूला मिल गया। अब इस रबर से कंडोम बनाए जाने लगे। रबर से बने कंडोम जानवरों के अंगों से बने कंडोम की तुलना में सुविधाजनक थे। ये लचीला के साथ टिकाऊ भी था, जो आसानी से नहीं फटता था। उस समय मर्दों को सलाह दी जाती थी कि वे प्राकृतिक रबर से बने कंडोम को धोकर तब तक इस्तेमाल कर सकते हैं जब तक वह फट न जाए। यह यौन रोगों के बचाव में भी काफी हद तक कारगार रहा जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल बढ़ता रहा। वर्ष 1861 में तो अमेरिकी समाचार पत्र ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में पहली बार कंडोम के प्रचार-प्रसार के लिए एक विज्ञापन भी प्रकाशित किया गया था।
वर्ष 1920 में लेटेक्स की हुई खोज
पहले सभी कंडोम हाथ से तैयार किए जाते थे, इसलिए उसकी गुणवत्ता में कई तरह की खामियां पाई गई। वर्ष 1919 में फ्रैडेरिक किलिआन ने ओहियो में पहला नेचुरल रबर लेटेक्स तैयार किया। वर्ष 1957 में ब्रिटेन में ड्यूरेक्स कंपनी द्वारा पहला लुब्रिकेटेड कंडोम तैयार किया गया। इसका प्रोडेक्शन बड़े पैमाने पर होने लगा। नई तकनीक की मशीनें आईं। पहले के मुकाबले दाम भी कम हुए। बड़े घरों से मीडिल क्लास तक पहुंचने लगी।
भारत में कंडोम की शुरुआत
जहां दुनिया-भर में कंडोम को वर्ष 1860 में ही स्वीकार्यता मिल गई थी। वहीं भारत में इसको आजादी के बाद वर्ष 1960 में स्वीकार्यता मिली। भारत की जनसंख्या वृद्धि सरकार के लिए एक चिंता का कारण रही थी। 1950 में भारत की आबादी
37. 6 करोड़ थी, नए भारत के लिए इतनी बड़ी आबादी का पेट भरना तत्कालीन सरकार के लिए मुश्किल हो रहा था। इसलिए भारत ने संविधान लागू होने के तुरंत बाद 1952 में ही राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया गया।
राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत सरकार ने यह भी तय किया कि देश में बड़े पैमाने पर कंडोम को मुफ्त बांटा जाए। सरकार ने इसके लिए सोशल मार्केटिंग का सहारा लिया। सरकार की योजना थी कि जनता धीरे-धीरे परिवार नियोजन के इस मुफ्त साधन को अपनाएगी। इससे लोगों को यौन रोगों से राहत के साथ ही जनसंख्या नियंत्रण में भी मदद मिलेगी। हालांकि भारत में कंडोम 1940 से ही बिक रहा था। लेकिन इसकी पहुंच अंग्रेजों और चंद अमीर लोगों तक ही सीमित थी।
भारत में कंडोम का नया नाम
वर्ष 1963-1964 में इस योजना को शुरू होना था लेकिन तब तक कंडोम को न तो भारतीय नाम दिया गया था, न ही इसकी
ब्रांडिंग हुई थी। भारत सरकार इसका नाम भारतीय पौराणिक कहानियों में काम यानी सेक्स के देवता के नाम पर चर्चित रहे कामदेव के नाम पर रखना चाहती थी और अंतिम नाम कामराज तय हुआ लेकिन कंडोम जैसे प्रोडक्ट के लिए इस नाम को रखने और परखने में नेता और नौकरशाही दोनों को डर था। यह वह दौर था जब आजादी के बाद कांग्रेस लगातार देश की सत्ता पर काबिज थी और 1964 में के . कामराज कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे। तब कामराज भारतीय राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में थे। वर्ष 1963 में बेहद चर्चित कामराज प्लान को अमल में लाकर कामराज नेहरू की गुड बुक्स में टॉप पर पहुंच चुके थे। इस प्लान के तहत खुद कामराज समेत छह राज्यों के मु्ख्यमंत्रियों और उतने ही केंद्रीय मंत्रियों ने इस्तीफा दिया और पार्टी को मजबूत करने में जुट गए थे।
नेहरू को ऐसे ही नेता की जरूरत थी, उन्होंने इस राजनेता को 1964 में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। कुछ दिनों बाद ही नेहरू की म्रत्यू हो गयी , तब कामराज ने किंगमेकर का रोल निभाया और लाल बहादुर शास्त्री को देश का पीएम बनवाया। ऐसे शख्सियत के नाम पर कंडोम का नाम रखना उस समय के नेता और नौकरशाही को नागवार गुजरा। कुछ दबे स्वर में विरोध कर रहे थे। कुछ संकेतों की भाषा में। फिर वैकल्पिक नाम की तलाश शुरू हुई। कई नाम सुझाए गए और काटे गए, ऐसे में एक संस्थान आईआईएम के एक छात्र ने नाम सुझाया जो सरकार को भी पसंद आया। वह नाम था ‘निरोध’। इसका हिंदी अर्थ होता है सुरक्षा। इस नाम को आसानी से हरी झंडी मिल गई।
देश की पहली कंडोम कंपनी
भारत ने अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, फोर्ड फाउंडेशन और आईआईएम कोलकाता की मदद से निरोध को लेकर व्यापक अभियान शुरू किया गया। लेकिन योजना सफल नहीं हो पा रही थी। इसका कारण था निरोध की कीमत एक चवन्नी यानी कि 25 पैसे थी। जो कि अमेरिकी करेंसी के लगभग बराबर थी। अब आईआईएम कोलकाता को निरोध की सफलता के लिए उपाय बनाने को कहा गया तो आईआईएम ने कहा देश में कंडोम का पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पा रहा है। इसलिए बड़ी संख्या में विदेश से आयात किया जा रहा है। जिससे इसकी कीमत भी ज्यादा है। अगर कीमत को कम कर दिया जाए तो आम आदमी तक इसको पहुंचाना आसान हो जाएगा। फिर क्या सरकार ने अमेरिका के साथ-साथ जापान और कोरिया से 40 करोड़ कंडोम का आयात किया और भारतीय बाजार में एक पैकेट की कीमत रखी 5 पैसे। जिसमें 3 कंडोम आते थे। सभी जगह इसका प्रचार भी किया गया। देश की पहली कंडोम बनाने वाली सरकारी कंपनी एचएलएल लाइफकेयर यानी ‘हिंदुस्तान लेटेक्स’ थी। यह कंपनी अब अपने ‘निरोध’ ब्रांड से आगे बढ़ चुकी है और ल्यूब्रिकैंट से लेकर जैल और वाइब्रेटिंग रिंग तक बना रही है।