[gtranslate]
Country

बिहार के आगाज से औवेसी ने बढाई राष्ट्रीय दलों की बैचेनी

बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल की पांच सीटें जीतने के बाद एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन औवेसी ने साबित कर दिया है कि वह केवल हैदराबाद तक ही सीमित नहीं है। सीमांचल सीटों पर पहले कांग्रेस, आरजेडी और जदयू के ही प्रत्य़ाशी जीतते थे। लेकिन इस बार सीमांचल के मुस्लमानों ने अपना नेता औवेसी को चुना। औवेसी ने सबसे पहले बिहार के मुस्लमानों का विश्वास जीतने के लिए यूपी के उपचुनाव में बुलंदशहर से अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारा। ताकि वह उत्तर भारत के मुस्लमानों में अपना में यह सदेंश देने में कामयाब हो जाए कि उनकी पार्टी अब हैदराबाद में ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीति में  आगाज कर रही है। उन्होंने सीमांचल की सीटों को जीतने के लिए पूरी प्लानिंग के तहत रणनीति बनाई। क्योंकि सीमांचल के मुसलमान जदयू, आरजेडी और जदयू में बंटे हुए थे। सबसे पहले औवेसी ने  हैदराबाद के पूर्व मेयर को सीमांचल की 24 सीटों पर सर्वे के लिए भेजा, सर्वे के बाद पूर्व मेयर ने उन मुस्लमान नेताओं को चुना जिनका सीमांचल में अच्छा दबदबा था। इसका नतीजा भी अच्छा निकला। औवेसी ने पांच सीट जीतकर दिखा दिया कि वह केवल हैदराबाद तक ही सीमित नहीं है, औवेसी ने पांच सीटें जीतने के बाद कांग्रेस आरजेड़ी और जदयू के लिए चुनौती भी खड़ी कर दी है। हालांकि जब औवेसी ने चुनाव मैदान में अपने प्रत्याशी उतारें, तब कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने उन पर बीजेपी की बी टीम कहकर कीचड़ फेंका। इतना ही नहीं बंगाल से कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने औवेसी को वोटकटवा तक कह दिया था। लेकिन चुनाव में पांच सीट जीतकर औवेसी ने अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाली पार्टियो को करारा जवाब दिया है। तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद की सीढ़ियों के बीच ही रोक दिया। औवेसी ने महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी। लेकिन कांग्रेस और आरजेडी को नहीं पता था कि हैदराबाद की पार्टी कैसे उनके ही गढ़ में सेंध कर सकती है।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में औवेसी की पार्टी को केवल 0.5 फीसद ही वोट मिले थे। लेकिन इस बार उन्होंने पिछली बार के मुकाबले काफी अच्छा वोट प्रसेंट हासिल किया। औवेसी की पांच सीटें आने के पीछे एक कारण यह भी रहा है कि उन्होंने सीएए और एनआरसी पर देश के मुसलमानों को एकजुट किया। मुसलमानों को भी औवेसी में अपना नया दिखने लगा था। इससे पहले पूरे देश के मुसलमान कांग्रेस या अन्य क्षेत्रियों पार्टियों के साथ बढ़े हुए थे। हालांकि कांग्रेस ने भी सीएए और एनआरसी पर बीजेपी को खूब कोसा था। लेकिन इस मुद्दें का असली फायदा औवेसी को मिल रहा है। बिहार चुनाव में पांच सीट जीतकर यह मुसलमानों ने दिखा दिया है। अब कांग्रेस के अलावा भी उनके पास कई और विकल्प है। बिहार में मुसलमान वोटरों की संख्या 16.5 फीसद है। किशनगंज ईलाके में मुस्लिमों की संख्या सबसे ज्यादा है। वहीं से उन्होंने बिहार चुनाव में अपनी ताकत दिखानी शुरु की और मुसलमानों के नए रहनुमा बनकर ऊभरें। हालांकि चुनाव में बीजेपी को सीमांचल सीटों फायदा तो नहीं हुआ क्योंकि बीजेपी की रणनीति चली नहीं। बीजेपी का अनुमान था कि औवेसी मुसलमान वोटों को काटेंगे। ताकि हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो और सीमांचल में उनका वर्चस्व बढ़े। बिहार चुनाव से एक सदेंश यह भी गया है कि पूरे देश का मुसलमान अब औवेसी को अपना नेता चुनने की राह पर है। बिहार के बाद बंगाल चुनाव आ रहा है, औवेसी की पार्टी ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह यूपी और बंगाल के विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारेंगे। इससे कई राष्ट्रीय दलों की बैचेनी बढ़ गई है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD