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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। स्वच्छ छवि के योगी ने सत्तरा संभालने के साथ ही अपराध और भ्रष्टाचार पर अपने कड़े रूख से राज्य की नौकरशाही को चेता दिया था लेकिन नौकरशाह अपनी चाल-ढाल को बदलने का नाम नहीं ले रहे। इसका ताजा उदाहरण है उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम जहां भ्रष्टाचार के आरोप की जद में आए अफसर को कार्यवाही के बजाए प्रमोशन से नवाजा गया है।

उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड के जिम्मेदार तत्कालीन मुख्य अभियंता (परिचालन एवं अनुरक्षण) जी.एस. सिन्हा, तत्कालीन अधीक्षण अभियंता प्रदीप गुप्ता और तत्कालीन अधिशासी अभियंता प्रदीप बंसल ने राजकीय भूमि को नियमों की परवाह किए बगैर निजी हाथों में सौंप दिया। सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के एवज में होना तो यही चाहिए था कि जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के साथ ही विधि सम्मत कानूनी कार्रवाई की जाती लेकिन हुआ ठीक उल्टा। इस अनियमितता में शामिल प्रदीप बंसल को प्रोन्नत कर अधीक्षण अभियंता के पद पर बिठा दिया गया। श्री बंसल वर्तमान समय में उप्र. जल विद्युत निगम (शक्ति भवन, लखनऊ) में तैनात हैं। जिसे अनियमित तरीके से जमीन सौंपी गयी उसने भी शपथ-पत्र में दर्शायी गयी शर्तों की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध निर्माण करवा लिया। करार के दौरान दिए गए शपथ पत्र में मेसर्स बीपी शर्मा एण्ड कम्पनी (डीलर भारत पेट्रोलियम कम्पनी) ने स्पष्ट तौर पर लिखकर दिया था कि भारत पेट्रोलियम के माध्यम से निगम द्वारा आवंटित की गयी भूमि पर उसका कोई स्वामित्व नहीं होगा। उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड या उसके द्वारा अधिकृत व्यक्तियों अथवा संस्था को जब भी आवश्यकता होगी, कम्पनी बिना किसी हीला-हवाली के तुरन्त खाली कर देगी। याद दिला दें कि जब-जब भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड ने जमीन वापस मांगी मेसर्स बीपी शर्मा एण्ड कम्पनी ने शर्तों और शपथ पत्र में उल्लेख किए गए समझौते की परवाह किए बगैर जमीन वापस करने से मना कर दिया।
सम्बन्धित अधिकारियों की मिलीभगत के चलते करोड़ों की सरकारी सम्पत्ति निजी कम्पनी के हाथों सिपुर्द किए जाने से सम्बन्धित प्रकरण कुछ इस प्रकार है। सोनभद्र जनपद की रिहन्द परियोजना क्षेत्र पिपरी में उप्र. जल विद्युत निगम लिमिटेड के स्वामित्व में जलाशय के क्षेत्र में आने वाली भूमि और पिपरी क्षेत्र में आवासीय और वाणिज्य प्रयोग के लिए जमीन उपलब्ध है। दोनों प्रकार की भूमि को आवासीय और वाणिज्य प्रयोग के लिए इस्तेमाल करने का अधिकार उप्र. जल विद्युत निगम के पास सुरक्षित है। इन जमीनों से निगम को राजस्व की प्राप्ति भी होती है।
अधिकारियों की लूट-खसोट से जुड़ा यह मामला प्रचुर मात्रा में खनिज सम्पदा वाले इलाके सोनभद्र जनपद से सम्बन्धित है। इस इलाके की 7150 वर्ग फीट निगम की जमीन का लगभग 48 वर्ष पूर्व 27 मई 1959 में मेसर्स बर्मा सेल आॅयल स्टोरेज एण्ड डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनी आॅफ इंडिया लिमिटेड के साथ एक अनुबंध हुआ था। इसके बाद प्रत्येक वर्ष सिंचाई विभाग उस जमीन का लीज अनुबन्ध कराता रहा। इसके बाद मेसर्स बर्मा आॅयल स्टोरेज एण्ड डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनी आॅफ इंडिया ने 29 मार्च 1972 को मेसर्स बी.पी. शर्मा एण्ड कम्पनी (तुर्रा, सोनभद्र) के साथ डिस्पेंसिंग पम्प एवं सेलिंग के लिए अनुबंध किया। अनुबंध के ठीक चार वर्ष बाद 1976 में भारत सरकार ने मेसर्स बर्मा शैल आॅयल स्टोरेज एण्ड डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनी आॅफ इण्डिया लिमिटेड को अधिग्रहीत कर बर्मा शैल रिफाइनरी लिमिटेड में समाहित कर दिया गया, जिसका नाम परिवर्तित करके पहले भारत रिफाइनरीज लिमिटेड और बाद में भारत पेटेªालियम कार्पोरेशन लिमिटेड कर दिया गया।
वर्ष 1957 से लेकर वर्तमान समय तक उक्त भूमि की लीज दर में परिवर्तन किया जाता रहा। शुरुआती दो वर्षों में उक्त भूमि की लीज दर 25 रुपए प्रतिमाह थी उसके दो वर्ष बाद लीज दर में बढ़ोत्तरी करते हुए 1963-64 में 71.50 पैसे प्रतिमाह कर दिया गया। इसी तरह से 1970 में 107.27 पैसे किया गया, जिसका भुगतान समय-समय पर भारत पेट्रोलियम करता रहा।
उक्त भूमि पर कथित रूप से कब्जे की पटकथा वर्ष 2010 में लिखनी शुरु हुई। 2 जुलाई 2010 को भारत पेट्रोलिय के लाइसेंसी विक्रेता (पेट्रोल पम्प संचालनकर्ता) मेसर्स बी.पी. शर्मा एण्ड कम्पनी ने भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड के साथ पहले से लीज पर अनुबंधित भूमि को मूल कम्पनी मेसर्स भारत पेट्रोलियम से अपने नाम नई लीज करने के लिए एक आवेदन तत्कालीन मुख्य अभियंता (परिचालन एवं अनुरक्षण) जी.एस. सिन्हा के पास भेजा। नियमतः लीज ट्रांसफर नहीं की जा सकती थी लेकिन मुख्य अभियंता के निर्देश पर अधिशासी अभियंता (रिहन्द कालोनी, सिविल अनुरक्षण खण्ड पिपरी) ने लीज अनुबंध करने के लिए अपनी सहमति दे दी। तत्पश्चात 30 वर्ष की अवधि के लिए लीज दर प्रतिवर्ष 42 हजार 528 (प्रतिमाह 3544 रुपए) तय कर दी।
इसे चाहें गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कहें या फिर सरकारी धन की लूट-खसोट की योजना। होना तो यही चाहिए था कि 42 हजार 528 रुपए प्रतिवर्ष के हिसाब से 10 वर्षों की लीज के लिए लगभग 4 लाख 20 हजार अर्थात 3544 रुपए प्रतिमाह वसूले जाते लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने राजकोष को चूना लगाने और शायद स्वयं की जेबे भरने की नीयत से अपने ही स्तर से लीज दर में कमी करते हुए लीज दर 3544 रुपए प्रतिमाह के स्थान पर 1100 रुपए प्रतिमाह की दर से 10 वर्षों के लिए नयी लीज अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। तत्कालीन मुख्य अभियंता के अनुमोदन पर 25 नवम्बर 2010 को बाकायदा तत्कालीन अधिशासी अभियंता (सिविल, पिपरी, सोनभद्र) ने भी हस्ताक्षर कर दिए। होना तो यह चाहिए था कि नये लीज प्रपत्र पर अनुमोदन के पश्चात हस्ताक्षर करने से पूर्व भारत सरकार के उपक्रम भारत पेट्रोलियम से अनुबंध किया जाना चाहिए था लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने ऐसा करने से पहले ही और बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र के निजी संस्था से अनुमोदन कर लिया। याद दिला दें के जिस वक्त उक्त जमीन भारत पेट्रोलियम को लीज पर दी गयी थी उस वक्त शर्तों में स्पष्ट लिखा गया था कि उक्त भूमि सिर्फ पेट्रोल पम्प संचालन के लिए ही दी जा सकती है लेकिन मेसर्स बी.पी. शर्मा ने अधिकारियों से मिलीभगत कर उक्त जमीन पर भवन निर्माण करके व्यापारिक उपयोग शुरु कर दिया। यह कार्य वर्तमान समय में भी जारी है और विभाग के जिम्मेदार अधिकारी खुली आंखों से जिंदा मक्खी निगल रहे हैं। शिकायतकर्ता ने दस्तावेजों के आधार पर आरोप लगाया है कि तत्कालीन अधिशासी अभियंता (रिहन्द कालोनी) ने निगम को लाखों रुपयों की क्षति पहुंचायी।
उपरोक्त धोखाधड़ी को मेसर्स भारत पेट्रोलियम ने भी अपने शिकायती पत्र के माध्यम से पुख्ता किया है। धोखाधड़ी की शिकायत से सम्बन्धित यह पत्र 6 दिसम्बर 2014 में उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम को भेजा गया था। पत्र में अनुरोध किया गया था कि मेसर्स बी.पी. शर्मा एण्ड कम्पनी के नाम धोखाधड़ी से जिस जमीन का नवीनीकरण किया गया है उसकी लीज निरस्त करके भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड के नाम से पुनः लीज में दर्ज की जाए। इस धोखाधड़ी पर सच्चाई की मुहर लगायी विभाग के ही तत्कालीन अधीक्षण अभियंता (वाणिज्य) एस.सी. बुनकर ने। श्री बुनकर ने स्पष्ट लिखा है कि उपरोक्त धोखाधड़ी (निगम को वित्तीय क्षति पहुंचाए जाने के सन्दर्भ में) एवं लीज अनुबन्ध की शर्तों के विरुद्ध अनियमितताओं में तत्कालीन निगमीय कार्मिकों की संलिप्तता के सन्दर्भ में जांच समिति गठित कर उनके विरुद्ध जांच, तत्पश्चात अनुशासनात्मक कार्रवाई किया जाना अपेक्षित है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि भारत सरकार के उपक्रम मेसर्स भारत पेट्रोलियम कारर्पोरेशन लिमिटेड की अनापत्ति प्राप्त किए बगैर किसी विशेष अथवा निजी संस्था के नाम से राजकीय भूमि का लीज अनुबन्ध किया जाना माननीय राज्यपाल एवं मेसर्स भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड के साथ ही सरकार के साथ धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है लिहाजा इस मामले में सम्बन्धित अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी की धारा 420 के तहत मुकदमा पंजीकृत करके कार्रवाई की जानी चाहिए थी लेकिन जिनके हाथों में कार्रवाई की कमान है वे ही तथाकथित दोषी अधिकारियों की ढाल बने हुए हैं।
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