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उत्तर प्रदेश का अमेठी गांधी परिवार का राजनीतिक घर कहा जाता है। देश के बड़ी-बड़ी सियासी आंधी यहां आकर दम तोड़ देती थी। खासकर गांधी परिवार के सामने। कुछ राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कहते हैं ‘अमेठी की सियासी मिट्टी ऐसी है, जो सिर्फ एक बीज को पहचानती है। वह बीज है, गांधी परिवार।’ चुनाव के मौसम में जब भी गांधी परिवार का बीज डाला जाता है तो आस- पास विपक्षी दलों की सारी फसलें नष्ट हो जाती। सियासी मिट्टी भी ऐसी कि सिर्फ गांधी परिवार का बीज (चुनाव में नामांकन) डालना होता है। उसे चुनाव बाद सिर्फ जीत की फसल काटने आना होता है। इस बीच आने की कोई जरूरत नहीं पड़ती। गांधी परिवार के सदस्य यहां रिकॉर्ड मतों से जीतकर संसद में पहुंचते रहे हैं। लेकिन इस बार की सियासी आंधी ऐसी थी कि गांधी परिवार भी इसमें उड़ गया। वह भी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के खाद-पानी डालने के बावजूद।

इसके पहले 2014 में भी देश में मोदी की लहर थी। लेकिन उस समय भी मोदी लहर अमेठी की सीमा पर आकर खत्म हो गई थी। यहां गांधी परिवार की जड़ें काफी मजबूत हैं। तभी तो 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा कमल खिलाने से यहां महरूम रह गई। हालांकि पिछले चुनाव में राहुल गांधी के सामने भाजपा ने स्मृति ईरानी और आप ने कुमार विश्वास को मैदान में उतारा था, लेकिन कांग्रेस को मात नहीं दे सके। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी में भाजपा की स्मृति ईरानी घेरने की कवायद पिछले पांच साल से लगातार करती रही हैं। राहुल गांधी अमेठी से लगातार तीसरी बार सांसद रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को 408,651 वोट मिले थे। जबकि भाजपा की उम्मीदवार स्मृति ईरानी को 300,74 वोट मिले थे। इस तरह जीत का अंतर 1,07,000 वोटों का ही रह गया था। जबकि 2009 में यहीं से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल की जीत का अंतर 3,50,000 से भी ज्यादा का रहा था।

अमेठी लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें अमेठी जिले की तिलोई, जगदीशपुर, अमेठी और गौरीगंज सीटें शामिल हैं, जबिक रायबरेली जिले की सलोन विधानसभा सीट आती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटों में से 4 सीटों पर भाजपा और महज एक सीट पर एसपी को जीत मिली थी। हालांकि सपा-कांग्रेस गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी थी, फिर भी जीत नहीं सकी थी। सपा ने तो गौरीगंज सीट जीत ली, लेकिन कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली।

आजादी के बार 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तो अमेठी संसदीय सीट वजूद में ही नहीं थी। पहले ये इलाका सुल्तानपुर दक्षिण लोकसभा सीट में आता था। यहां से कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर जीते थे। इसके बाद 1957 में मुसाफिरखाना सीट अस्तित्व में आई, जो फिलहाल अमेठी जिले की तहसील है। केशकर यहां से जीतने में भी सफल रहे। 1962 के लोकसभा चुनाव में राजा रणंजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने। रणंजय सिंह वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह के पिता थे। अमेठी लोकसभा सीट 1967 में परिसीमन के बाद वजूद में आई। अमेठी से पहली बार कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सासंद बने। इसके बाद 1971 में भी उन्होंने जीत हासिल की। 1977 में कांग्रेस ने संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह जीत नहीं सके। इसके बाद 1980 में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी चुनावी मैदान में उतरे। इस चुनाव के बाद से अमेठी सीट गांधी परिवार का राजनीतिक घर बन गई। यह क्षेत्र गांधी परिवार की सीट में तब्दील हो गई। हालांकि 1980 में ही संजय का विमान दुर्घटना में निधन हो गया। इसके बाद 1981 में हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी अमेठी से सांसद चुने गए।

साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी एक बार फिर अमेठी से चुनाव में उतरे तो उनके सामने संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें महज 50 हजार वोट मिल सके, जबकि राजीव गांधी 3 लाख वोटों से जीते। इसके बाद राजीव गांधी ने 1989 और 1991 में चुनाव जीते। लेकिन 1991 के नतीजे आने से पहले उनकी हत्या कर दी गई, जिसके बाद कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़े और जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1996 में शर्मा ने जीत हासिल की, लेकिन 1998 में भाजपा के संजय सिंह के हाथों हार गए।

सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने 1999 में अमेठी को ही अपनी कर्मभूमि बनाया। वह इस सीट से जीतकर पहली बार सांसद चुनी गईं। 2004 के चुनाव में उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए ये सीट छोड़ दी। इसके बाद से राहुल ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की। चौथी बार राहुल यहां से जीत का चौका नहीं लगा पाए। भाजपा की स्मृति ईरानी ने इस चुनाव में राहुल गांधी को करीब 55 हजार वोट के अंतर से हराया। अमेठी लोकसभा सीट का रिकॉर्ड रहा है कि गांधी परिवार का कोई भी नेता यहां से हारा नहीं था। मगर इस बार यह रिकॉर्ड टूट गया। अमेठी का कांग्रेसी गढ़ उखड़ने के बाद पार्टी उत्तर प्रदेश में महज एक सीट पर आकर सिमट गई। रायबरेली एक मात्र सीट है, जहां से सोनिया गांधी जीत हासिल करने में सफल रही हैं। हालांकि उनकी जीत का अंतर भी पिछले आम चुनावों के मुकाबले कम हुआ है।

अमेठी का इतिहास

राहुल गांधी ने अमेठी सीट पर परिणाम घोषित होने से पहले ही पराजय स्वीकार कर ली। परिणाम आने के पहले ही राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्मृति ईरानी को जीत की बधाई दे दी थी। 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी सीट पर यह तीसरा मौका है, जब कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। इस हार में एक दिलचस्प आकड़ा 21 नंबर का भी है। हर 21 साल बाद कांग्रेस का यहां से हारने का इतिहास रहा है। यह बात इस बार राहुल गांधी की हार में भी कायम रही है। हालांकि इस हार में कभी गांधी परिवार की हार नहीं हुई थी। पहली बार 1977 में इंदिरा गांधी की ओर से आपातकाल लगाए जाने के विरोध में देश भर में कांग्रेस विरोध लहर के दौरान संजय गांधी इस सीट से परास्त हुए थे। यह पहला मौका था, जब अमेठी सीट कांग्रेस के हाथ से छिनी थी। उन्हें जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह ने परास्त किया था।

इसके ठीक 21 साल बाद 1998 में कैप्टन सतीश शर्मा को पराजय झेलनी पड़ी थी। उन्हें भाजपा कैंडिडेट संजय सिंह ने परास्त किया था। 1998 के बाद अब फिर 21 साल पूरे हुए हैं और कांग्रेस के लिए नतीजा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की हार के तौर पर सामने आया है। उन्हें स्मृति ईरानी ने चुनावी मात दी। इससे पहले 2014 में भी स्मृति ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन वह दूसरे स्थान पर रही थीं। बताया जाता है कि पिछले चुनाव में पराजय के बाद भी स्मृति लगातार 5 सालों तक अमेठी में एक्टिव रहीं। उस सक्रियता का अब अमेठी की जनता ने उन्हें जीत के तौर पर आशीर्वाद दिया है।

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