ओडिशा के कालाहांडी जिला से मानवता पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाला मामला आया है। यहां 32 आदिवासी परिवारों के घरों को वन विभाग के लोगों ने तोड़ दिया है। यह घटना 24 अप्रैल की है। इन 32 परिवारों में 90 से ज्यादा लोग हैं। इनके घर तोड़े जाने के बाद ये सभी पेड़ों के नीचे रहने को विवश हैं और महुआ खाकर पेट भर रहे हैं।
द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये घटना जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर सागड़ा पंचायत के नेहला गांव में 24 अप्रैल को घटी। यह गांव खांडुल माली फॉरेस्ट एरिया के पास है और दक्षिण ओडिशा के इस क्षेत्र में कई बॉक्साइट खदानें हैं। ग्रीन नोबेल पुरस्कार विजेता और लोकशक्ति अभियान संस्था के अध्यक्ष प्रफुल सामांत्रा जो कि लंबे समय से ओडिशा में आदिवासी मुद्दों को उठाते रहे हैं, उनका कहना है कि वन विभाग वाले इन आदिवासियों को पिछले छह महीने से वहां से हटाने की कोशिश करते रहे रहे हैं। ये आदिवासी इससे पहले 15 किलोमीटर दूर पहाड़ों में स्थित माखागुड़ा में रहते थे। लेकिन 2017 में भूस्खलन की वजह से उनके घर टूट गए। उसके बाद वे यहां आकर बस गए थे।
आदिवासियों को साजिशन हटाने का आरोप
प्रफुल ने कहा, “जब पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है, हमारे प्रधानमंत्री लोगों से घरों में रहने की अपील करते हैं, इधर 90 से ज्यादा लोगों को बेघर कर दिया गया। ये सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करेंगे, इनके सामने तो अब जिंदा बने रहने की ही चुनौती होगी। जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा इनकी दिक्कतें बढ़ेगी।”
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि लॉकडाउन के बीच ओडिशा में वन विभाग ने 32 आदिवासियों के घर तोड़ेहै। क्योंकि ये इलाका हाथी संरक्षण क्षेत्र में आता है। देशभर में लॉकडाउन है तो यहां कोई आ-जा भी नहीं पाएगा और विभाग जो चाहता है वह हो जाएगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा। प्रफुल्ल ने आगे कहा, “घटना को दो दिन हो गए वन विभाग की इस अमानवीय व्यवहार का मीडिया में कोई खबर नहीं है। कुछ लोग वहां जाने का प्रयास कर रहे थे जिन्हें फॉरेस्ट विभाग के लोगों ने जाने नहीं दिया।”
𝐒𝐡𝐨𝐜𝐤𝐢𝐧𝐠 | भयानक News: 𝐓𝐚𝐤𝐞 𝐈𝐦𝐦𝐞𝐝𝐢𝐚𝐭𝐞 𝐀𝐜𝐭𝐢𝐨𝐧
Amidst lockdown, 32 houses of adivasis razed by forest officials in village Sagada, Khandualmali forest area, Kalahandi Dist on 24th April.
32 आदिवासियों के तालाबंदी के बाद आदिवासियों के घरों को तोड़ दिया है. pic.twitter.com/T5qNxt5FHP— MadhuSudan || ମଧୁସୁଦନ (@MadhuOdisha7) April 26, 2020
तस्वीरें फॉरेस्ट विभाग ने डिलीट कराई
कालाहांडी जिला अदालत में वकील और सुप्रीम कोर्ट में आदिवासी मामलों के याचिकाकर्ता सिद्धार्थ नायक का कहना है कि प्रशासन बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर संरक्षित क्षेत्र को कम करना चाहता है। वन विभाग नहीं चाहता कि आदिवासी यहां रहें और उनके पास कानूनी अधिकार हो। सिद्धार्थ नायक ने कहा, “घटना के बाद मैं वहां कुछ टीवी पत्रकारों के साथ गया था लेकिन मुझे वहां जाने नहीं दिया गया। हमने कुछ तस्वीरें ली थीं जिसे फॉरेस्ट विभाग के अफसरों ने डिलीट करा दिए।”
उन्होंने आगे कहा, “यहां से कुछ ही दूरी पर वेदांता की बाक्साइट खनन परियोजना है इसलिए प्रशासन लगातार खनन क्षेत्र को बढ़ाने के लिए संरक्षित इलाके को कम करने का प्रयास कर रहा है।” वहीं जनजागरण अभियान के सभापति मधुसूदन सेठी ने कहा, “कोरोना वायरस के दौरान सरकार को ऐसा अमानवीय और गैरकानूनी काम क्यों करना पड़ा, जिसके कारण आदिवासियों को खुले के आसमान के नीचे छोड़ दिया गया। सवाल यह भी उठता है डीएफओ कालाहांडी पिछले दो महीने से क्या कर रहे थे और जब वे लोग आए तब उन्होंने क्यों नहीं रोका। पिछले तीन साल से मालिकाना हक मांग रहे लोगों को उनका मालिकाना हक नहीं दिए जाने पर भी सवाल खड़े होते हैं?”
आदिवासियों को लॉकडाउन के बारे में समझाया
इस पर कालाहांडी साउथ के डीएफओ टी अशोक कुमार का कहना है कि ये आदिवासी लॉकडाउन के बाद वहां आए थे। उनका गांव घटना स्थल से 12-13 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। फिर भी इन आदिवासियों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन दिया गया और एक हजार-हजार रुपये भी दिए गए थे। उन्होंने कहा कि हम इन आदिवासियों को लगातार समझा रहे थे कि अभी लॉकडाउन का समय है, आप लोग अपने गांवों में रहिए, लेकिन वे लोग यहीं रहने की जिद्द करने लगे। ऐसे में हमें उन पर कार्रवाई करनी पड़ी। जहां ये आदिवासी रह रहे थे वह जगह सागड़ा रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन है, ऐसे में उन्हें कैसे रहने देते।