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भारत के द्वार विदेशी सरकार

  •   वृंदा यादव

खाद्य संकट को लेकर भारत को इंडोनेशिया, बांग्लादेश, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और यमन से गेहूं के निर्यात के लिए अनुरोट्टा प्राप्त हुए हैं। सरकार गेहूं की उनकी जरूरतों और घरेलू बाजार में इसकी उपलब्ट्टाता का मूल्यांकन कर रही है

पिछले चार महीनों से जारी रूस-यूक्रेन के चलते दुनियाभर में खाद्य संकट बढ़ता जा रहा है। खाद्य संकट के चलते कई देशों में भुखमरी की नौबत आ गई है। इस संकट के बीच अब गेहूं की आपूर्ति को लेकर विदेशी सरकारें भारत के द्वार पर पहुंच रही हैं। दरअसल पिछले महीने भारत के गेहूं निर्यात पर सरकारी प्रतिबंध लगने के बाद दुनिया के सबसे बड़े अनाज आयातकों में से इंडोनेशिया और बांग्लादेश सहित पांच इस्लामिक देशों ने गेहूं की आपूर्ति के लिए भारत से अनुरोध किया है। खास बात यह है कि ये ऐसे देश हैं जहां पैगंबर विवाद के बाद प्रदर्शन हुए थे। खबरों के मुताबिक भारत को इंडोनेशिया, बांग्लादेश, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात और यमन से गेहूं के निर्यात के लिए अनुरोध प्राप्त हुए हैं। सरकार गेहूं की उनकी जरूरतों और घरेलू बाजार में इसकी उपलब्धता का मूल्यांकन कर रही है। इसके बाद इन देशों को गेहूं निर्यात किया जाएगा।

गौरतलब है कि बीते 13 मई को भारत ने निर्यात पर रोक लगाते हुए कहा था कि वह अपने पड़ोसियों और जरूरतमंद देशों को गेहूं का निर्यात करता रहेगा। हाल ही में भारत ने इंडोनेशिया और बांग्लादेश समेत कुछ देशों को 5 लाख टन गेहूं का निर्यात करने की मंजूरी दी थी। इसके साथ ही केंद्र सरकार 12 लाख टन गेहूं का निर्यात करने की मंजूरी देने की तैयारी में है। वाणिज्य मंत्रालय के बयान के मुताबिक, 2022-23 के लिए भारत में गेहूं का अनुमानित उत्पादन लगभग 105 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) है। देश की 130 करोड़ आबादी की जरूरतों के लिए 30 मिलियन मीट्रिक टन की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र की फूड एजेंसी, फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) ने अनुमान जताया है कि भारत 2022-23 में 70 लाख टन गेहूं निर्यात करेगा।

रूस और यूक्रेन के बीच महीनों से छिड़ी जंग ने दुनियाभर में खाद्य संकट पैदा कर दिया है। दोनों देश गेहूं के सबसे बड़े निर्यातकों में शामिल हैं। युद्ध की वजह से दोनों देशों से होने वाले गेहूं का निर्यात बाधित हुआ है। इससे उन देशों को गेहूं की कमी महसूस हो रही है, जो रूस और यूक्रेन से गेहूं का आयात करते थे। आईएमएफ के मुताबिक यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से लगभग 30 देशों ने खाद्यान्न और ईंधन सहित अन्य जरूरी वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए हैं।

भारतीय गेहूं दूसरे देशों से सस्ता
भारतीय गेहूं की मांग के पीछे एक बड़ा कारण इसकी कम कीमत है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार, कीमतें बढ़ने के बाद भी भारतीय गेहूं अंतरराष्ट्रीय भाव की तुलना में 40 फीसदी सस्ते में उपलब्ध है। यही प्रमुख कारण है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पूरी दुनिया की निगाह भारत के गेहूं पर टिकी है।

बांग्लादेश-इंडोनेशिया बड़े आयातक
डीजीसीआईएस के अनुसार, भारत ने 2021-22 में बांग्लादेश को लगभग एक अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का गेहूं निर्यात किया था। भारत ने 2021-22 में दक्षिण पूर्व एशिया को लगभग 10.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर मूल्य के गेहूं का निर्यात किया। इसके अलावा 2020 में यमन ने रूस से और यूक्रेन से जबकि यूएई ने रूस से काफी मात्रा में गेहूं आयात किया। गौरतलब है कि भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है लेकिन वर्तमान में विश्व की जो स्थिति है उसे देख अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत विश्व के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देशों में शामिल हो सकता है। विश्व में इतनी तेजी से भारतीय गेंहू की मांग के बढ़ने का कारण इसकी कम कीमतें भी हैं। जहां भारत मात्र 43 रुपए प्रति किलो गेंहू बेच रहा हैं वहीं अन्य देश 450 से 580 डॉलर प्रति टन की दर से गेंहू बेच रहे हैं।

पिछले महीने भारत सरकार ने एक आदेश जारी कर कहा था कि भारत मे आई गेहूं उत्पादन में कमी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं की बढ़ती कीमतों के कारण गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। निर्यात पर लगे प्रतिबंध के कारण विश्व पर इसका प्रभाव पड़ने का अनुमान पहले ही लगाया जा चुका था लेकिन इससे भारत में घरेलू स्तर पर गेहूं की कीमतों को बढ़ने से रोका जा सकता था। इस आदेश में भारत ने विकासशील और जरूरतमंद देशों को ध्यान में रखते हुए कहा था कि अगर किसी विकासशील देश या पड़ोसी देश को खाद्य संकट के दौरान गेहूं की आवश्यकता होगी तो उसकी सहायता भारत द्वारा की जाएगी। लेकिन विश्व के खाद्य संकट को देखते हुए अमेरिका, यूरोप, जी-7 से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य वैश्विक संस्थानों ने भारत से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा जिससे गेहूं की आपूर्ति की जा सके लेकिन भारत ने ये प्रतिबंध हटाने से इंकार कर दिया क्योंकि इसका सीधा असर भारतीय घरेलू स्तर पर पड़ेगा और इससे कालाबाजारी करने वालों को भी लाभ मिलेगा।

तुर्की ने लौटाया भारतीय गेंहू
गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाते समय भारत सरकार ने कहा था की जिन देशों को ये प्रतिबंध लगाने से पहले भारत गेहूं निर्यात की मंजूरी दे चुका है वह उसे गेहूं निर्यात करेगा। जिसके चलते भारत ने तुर्की को 55 हजार टन गेहूं निर्यात किया। लेकिन एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स की रिपोर्ट में तुर्की भेजे गए भारतीय गेंहू को सड़ा हुआ बताते हुऐ उसमे रुबेला वायरस के होने का दावा किया। जिसके कारण तुर्की सरकार ने भारत द्वारा भेजे गए गेहूं को वापस लौटा दिया।
तुर्की और मिस्र ने लौटाया भारत का गेहूं एक ओर जहां पूरी दुनिया में गेहूं की कमी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। तो वहीं दूसरी ओर एक चौंकाने वाली खबर आती है कि तुर्की ने भारत के 56 हजार टन से ज्यादा गेहूं को घटिया बताकर लौटा दिया। फिर मिस्र ने भी बिना किसी जांच के उसे खरीदने से मना कर दिया। हालांकि भारत का गेहूं अब इजरायल पहुंच चुका है। लेकिन इस पूरे प्रकरण ने भारत के गेहूं की इमेज को खराब करने के बड़े अंतरराष्ट्रीय साजिश के संकेत मिल रहे हैं।
गेहूं उत्पादन में आई कमी का कारण गेहूं निर्यात पर लगी रोक का सबसे बड़ा कारण गेहूं के उत्पादन में आई कमी है। कृषि मंत्रालय के अनुसार 2019-20 में लगभग 107.86 और 2020-21 में लगभग 109.59 मिलियन टन गेहूं पैदा हुआ था, वहीं इस वर्ष जहा 110 मिलियन टन गेहूं का लक्ष्य रखा गया था तो केवल 106.41 मिलियन टन का अनुमान है। इस वर्ष पश्चिमोत्तर भारत में मार्च के महीने से ही गर्मी की लहर चलने लग गई जिसके कारण गेहूं के दाने सही ढंग से पक नहीं पाए और सूख गएं।

गेहूं पैदावार में कमी का कारण
गेहूं के निर्यात पर रोक की बड़ी वजह पैदावार रही है। इस बार गेहूं की पैदावार में कमी का सबसे बड़ा कारण मौसम भी है। मार्च से ही हीटवेव चालू हो गया। जबकि गेहूं के लिए 30 डिग्री से ज्यादा टेम्परेचर नहीं होना चाहिए। मार्च में कई बार तापमान 40 डिग्री को पार कर गया। इससे गेहूं के दाने समय से पहले ही पक गए और हल्के भी हो गए। जिसकी वजह से गेहू्ं की पैदावार 25 प्रतिशत तक कम गई।

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