वैश्विक बहुआयामी गरीबी पर संयुक्त राष्ट्र (WHO) की ओर से एक नया अध्ययन जारी किया गया है। अध्ययन में कहा गया है कि हर छह बहुआयामी गरीब व्यक्तियों में भारत में पांच लोग निचली जनजातियों या जातियों से होते हैं। 7 अक्टूबर, गुरुवार को जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी इंडेक्स (एमपीआई) नामक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड गरीबी एवं मानव विकास पहल ने गरीबी पर यह नई रिपोर्ट मिलकर तैयार की है।
रिपोर्ट के मुताबिक छह बहुआयामी गरीबों में से पांच निचली जनजातियों या जातियों से होते हैं। देश की आबादी की 9.4 फीसदी अनुसूचित जनजाति समूह की हिस्सेदारी है। यह सबसे निर्धन समूह के अंतर्गत आता है। इस समूह की 12 करोड़ 90 लाख की आबादी में से लगभग 65 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में जीवनयापन कर रहे हैं। इसके बाद अनुसूचित जनजाति समूह आता है। इस समूह के 33.3 फीसदी लोग बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं।
रिपोर्ट में ओबीसी में बहुआयामी गरीबों की संख्या 27.2 फीसदी बताई गई है। अन्य पिछड़ा वर्ग के 58 करोड़ 80 लाख लोगों में से 16 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी में अपना जीवन काट रहे हैं ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उप सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में 83 करोड़ 60 लाख ऐसे लोग हैं। ऐसे लोगों की संख्या सात देशों में 50 करोड़ से भी ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के (22 करोड़ 70 लाख), पाकिस्तान के सात करोड़ 10 लाख, इथियोपिया के पांच करोड़ 90 लाख, नाइजीरिया के पांच करोड़ 40 लाख, चीन के तीन करोड़ 20 लाख, बांग्लादेश के तीन करोड़ और डेमोक्रोटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो के दो करोड़ 70 लाख लोग शामिल हैं।