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देश में मंकिपॉक्स का पहला संदिग्ध मामला

मंकिपॉक्स को लेकर दुनिया भर के देशों में चिंता बढ़ती जा रही है। एक संदिग्ध मामला मिलने बाद केंद्र सरकार द्वारा एडवाइसरी जारी की गई है। इस एडवाइसरी से पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन मंकी पॉक्स को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है। अबतक इस बीमारी से सैड़कों मौते हो चुकी हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी की गई एडवाइसरी में वायरल इंफेक्शन की स्क्रीनिंग में तेजी और हालातों पर नजर रखने की बात कही गई है। इस बीमारी से निपटने को लेकर अधिकारीयों का कहना है कि यात्रा संबंधी आइसोलेशन मामलों से निपटने के लिए देश पूरी तरह से तैयार है। 8 सितंबर को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संदिग्ध मामले को लेकर जानकारी दी गई थी। यह शख्स विदेश से भारत लौटा था। सरकार के मुताबिक मरीज को आइसलोशेन में रखा गया है और उसकी हालत स्थिर है।

 

स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि मामले को स्थापित प्रोटोकॉल के अनुसार प्रबंधित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त संभावित स्त्रोतों की पहचान करने और देश के भीतर इस बीमारी के प्रभाव का आकलन करने के लिए सम्पर्क में आने वाले लोगों का पता लगाना जारी है। सरकार ने कहा है कि यह राष्ट्रिय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी ) किए गए पहले जोखिम मूल्यांकन के अनुरूप हैं और किसी भी अनावश्यक चिंता का कोई कारण नहीं है।गौरतलब है कि मंकिपॉक्स अफ्रीका के कई हिस्सों में फैल चुका है। डब्लूएचओ के अनुसार साल 2022 से लेकर अबतक 116 देशों में 99,176 मामले दर्ज किए गए थे । वहीं इस बीमारी से 208 मौते चुकी हैं । मरीजों की संख्या पिछले साल से काफी बढ़ गई है। पिछले महीने ही दूसरी बार मंकिपॉक्स को चिंता के सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल पीएचआईसी के रूप में घोषित किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस बीमारी पीएचआईसी घोषित किए जाने के बाद भारत में इस बीमारी से संबंधित तीस मामले सामने आए हैं। मंकीपॉक्स से संक्रमित आखिरी मामला इस साल मार्च महीने में आया था।

कैसे फैलता है यह संक्रमण

 

मंकिपॉक्स एक वायरल संक्रमण है। जो संक्रमित वस्तुएं, किसी संक्रमित व्यक्ति की निकट आने से , और शरीर के तरल पदार्थों से फैल सकता है। इसलिए संक्रमित व्यक्ति द्वारा उपयोग की गई वस्तुएं जैसे चादर, तौलिए, कपड़े,आदि के इस्तेमाल से बचें। मंत्रालय के मुताबिक कुछ स्थितियों में संक्रमण का असर दो-चार सप्ताह तक रह सकता है। लेकिन मरीजों को अगर समय पर सहायक उपचार मिल जाए तो उनके ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।

 

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