इसे सर्वोच्च न्यायालय के जजों की दूरदर्शिता ही कहेंगे कि उसने अपने फैसले में एक बार फिर से देश की सियासी ताकतों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का यह क्रम बीते कई वर्षों से ऐसा ही बना हुआ है लेकिन मौजूदा समय में देश की परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निश्चित तौर पर सराहनीय कहा जा सकता है। आज सुप्रीम कोर्ट में आयोध्या स्थिति विवादित परिसर को लेकर सुनवाई की जानी थी, सुनवाई हुई कि ‘ये न केवल विवादित सम्पत्ति का मामला है बल्कि देश की एक बड़ी आबादी के विश्वास और भावनाओं से जुड़ा मामला है लिहाजा अच्छा यही होगा कि भूमि विवाद को सभी पक्ष आपसी समझौते से ही हल करें।’ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़ी इस लाइन में काफी कुछ कह दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में आज के इस फैसले से मुस्लिम पक्ष सुकून महसूस कर रहा है तो दूसरी ओर हिन्दू संगठनों में रोष व्याप्त है। वह नहीं चाहता है कि भाजपा की भांति हिन्दू संगठनों पर से भी देश की एक बड़ी आबादी का विश्वास टूटे। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के बाद से हिन्दू संगठनों की त्योरियां चढ़ी हुई हैं।
एक बार फिर से बताते चलें कि मामला अयोध्या स्थित विवादित भूमि पर कोर्ट के फैसले को लेकर है। हिन्दु संगठन समस्त विवादित परिसर पर कब्जे की बात कर रहा है और कह रहा है कि मुसलमानोें को यदि मस्जिद के लिए स्थान चाहिए तो वह कहीं और दे सकता है लेकिन मुस्लिम पक्ष भी एक इंच पीछे हटने को तैयार नहीं। हालांकि देखा जाए तो इस मामले में अब कुछ भी शेष नहीं रह गया है और सभी पक्ष चाह लें तो इस मामले को चंद घंटों में सुलझाया जा सकता है। ऐसा इसलिए कि विगत दिनों जब कुछ मुस्लिम नेताओं से हमारी बात हुई तो उन्होंने इस मुद्दे पर छूटते ही कहा, कुरान में स्पष्ट दर्शाया गया है कि विवादित स्थल पर नमाज पढ़ना कतई उचित नहीं है। यह बात मुसलमानों की राजनीति करने और धर्म के कथित धंधेबाज भी अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन इस विवाद को कोई हल करना नहीं चाहता। सभी चाहते हैं कि यह मुद्दा यूं ही वर्षों तक जीवित रहे ताकि इस मुद्दे की आड़ में अपना मकसद हल किया जा सके।
फिलहाल कोर्ट में पेंच फंसा हुआ है और कोर्ट की तरफ सभी पक्ष आशा भरी नजरों से निहार रहे हैं।
चर्चा यह भी है कि यदि कोर्ट चाह ले तो एक दिन में फैसला सुनाया जा सकता है क्योंकि दोनों पक्षों की तरफ से दावों के सापेक्ष दस्तावेज कोर्ट के पास हैं और यह मामला इतने अधिक समय से कोर्ट मं चल रहा है कि इसकी एक-एक बारीकी से सम्बन्धित न्यायधीश परिचित होंगे।
अब प्रश्न यह उठता है कि जिस मामले को एक दिन में निपटाया जा सकता है तो उसे इतना लम्बा क्यों खींचा जा रहा? उत्तर सपाट और स्पष्ट है। यह मामला अब धार्मिक नहीं बल्कि सियासी जामा पहन चुका है। विवादित परिसर अब आस्था नहीं बल्कि मुद्दा बन चुका है। जिस दिन कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया, निश्चित तौर पर यह मुद्दा राजनीतिक दलों के तरकस से गायब हो जायेगा। कहना गलत नहीं होगा कि खासतौर से यूपी की राजनीति में विवादित परिसर का मुद्दा आज भी दम-खम रखता है। भले ही शहरी क्षेत्रों में इस मुद्दे की धार कुंद हो चुकी हो लेकिन ग्रामीण अंचलों में आज भी इस मुद्दे के बल पर भीड़ आसानी से जुट जाती है।
मुद्दे को जीवित रखने की होड़ में सुप्रीम कोर्ट की सहभागिता से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि तय तो यही हुआ था कि अयोध्या मामले की सुनवाई रोज होगी। जिस वक्त तय हुआ था उस वक्त सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी किसी प्रकार की आपत्ति दर्ज नहीं की गयी थी लेकिन आज जब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के पश्चात यह कहा कि इस मुद्दे को लेकर कोर्ट की सुनवाई एक सप्ताह बाद यानी 14 मार्च को होगी और इस पर पक्ष-विपक्ष ने भी किसी प्रकार की आपत्ति दर्ज नहीं की तो यह स्पष्ट हो चला था कि देश के इस सियासी खेल में कहीं न कहीं सुप्रीम कोर्ट भी अपनी भूमिका निभा रहा है।
स्थिति यह है कि रामजन्मभूमि/बाबरी मस्जिद से सम्बन्धित विवादित परिसर अब सियासी कुश्ती का ऐसा अखाड़ा बन चुका है जिसमें भाग तो सब लेना चाहते हैं लेकिन हारने-जीतने की इच्छा किसी में नहीं है।
बताते चलंे कि हाईकोर्ट ने अयोध्या स्थित विवादित परिसर बंटवारे के बारे में पूर्व में जो फैसला दिया था, उसमें सुन्नी सेण्ट्रल वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच ही जमीन का बंटवारा किया गया था, जिसे बाद में तीनों पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। विवाद में मुख्य मुस्लिम पक्षकार उत्तर प्रदेश सुन्नी सेण्ट्रल वक्फ बोर्ड सहित सभी प्रमुख मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन, राजू राम चन्द्रन, शकील अहमद, दुष्यंत दबे आदि ने विगत दिनों 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में इस बाबत हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता में आपसी बातचीत से विवाद को हल करने पर सभी ने अपनी सहमति दे दी थी लेकिन प्रमुख हिन्दू पक्षकार रामलला विराजमान ने विवाद को बातचीत से हल करने की पहल पर सहमति नहीं दी। यही वजह थी कि कोर्ट को सुनवाई के लिए नयी तारीख देनी पड़ी। ज्ञात हो चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि यदि विवाद का सहमति के आधार पर समाधान खोजने की एक प्रतिशत भी संभावना हो तो संबंधित पक्षकारों को मध्यस्थता का रास्ता अपनाना चाहिए।
आपसी सहमति से विवाद को हल करने में रोड़ा अटकाने वाले हिन्दू महासभा का कहना है कि यदि आपसी बातचीत का रास्ता अपनाया गया तो निश्चित तौर पर विवादित परिसर में से कुछ भाग मुसलमानों को भी मस्जिद निर्माण के लिए देना होगा जिसके लिए न तो हिन्दू महासभा तैयार है और न ही देश की बड़ी आबादी।
कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले ने जहां एक ओर देश की उस जनता को निराश किया है जो इस मसले पर टकटकी लगाए देख रही थी वहीं दूसरी ओर यह कहना भी गलत नहीं होगा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भाजपा को भी राहत मिली होगी। राहत इस बात की कि चुनाव प्रचार के दौरान जनता के समक्ष राम मन्दिर मुद्दे को लेकर जवाब उसके पास है।