[gtranslate]
Country Uttarakhand

उत्तराखंड में आग की आपदा, 24 घंटे में 4 इंसान 7 जानवर खाक

 इस बार उत्तराखंड में समय से पहले ही आग आपदा के रूप में सामने आई है। इस बार की आग न केवल जंगलो में बल्कि शहरो की तरफ भी रुख कर रही है। वरुणावत पर्वत पर लगी आग ने अब उत्तरकाशी शहर की और रुख कर लिया है। इसके अलावा गढ़वाल के चौरासे की आग श्रीनगर पहुंच गई है। नैनीताल के 20 जंगल भी भयंकर आग की चपेट में हैं। उत्तराखंड में दिसंबर से जंगल धधक रहे हैं। जंगलों में लगी आग से पिछले 24 घंटों में 4 लोगों और 7 जानवरों की मौत हो चुकी है।  इसके बाद अलर्ट जारी किया गया है।  वन विभाग ने अब आग बुझाने के लिए हेलीकाप्टर मांगा है।

अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिले के नजदीक तोली की जंगलों में भीषण आग लगी है। कर्नाटकखोला और पपरशैली के जंगल, बागेश्वर में नदीगांव और दुगनाकुरी के जंगल, बेडीनाग के बुडेरा, गडेरा और मानीखेत तोक के जंगल आग की चपेट में हैं। नैनीताल में बीस से ज्यादा जंगलों में आग लगी है। टिहरी जिले में नरेंद्रनगर और पौड़ी जिले में भी कई जंगल आग की चपेट में आ गए हैं।

इसके चलते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट करके कहा है कि उत्‍तराखंड के जंगलों में आग के बारे में मैंने प्रदेश के मुख्‍यमंत्री से बात करके जानकारी ली। आग पर काबू पाने और जानमाल के नुकसान को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने तुरंत एनडीआरएफ की टीमें और हेलिकॉप्‍टर उत्‍तराखंड सरकार को उपलब्‍ध कराने के निर्देश दे दिए हैं।

उत्तराखंड के जंगलों में लगभग हर साल आग लगने की घटनाएं सामने आती रही हैं। इसके चलते साल 2019 में उत्तराखंड हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी,  जिसमें आग लगने की घटनाओं की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराने की भी मांग की गई थी।  याचिका में यह भी कहा गया था कि दो राष्ट्रीय उद्यानों – जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और राजाजी नेशनल पार्क जंगल की आग के कारण खतरे में हैं। साल 2016 में भी यहां के जंगलों में भीषण आग लगी थी जो कई दिनों तक नहीं बुझ सकी थी. साल 2016 में साढ़े चार हजार हेक्टेयर से ज्यादा जंगल आग की चपेट में आकर बर्बाद हो गया था।

बताया जाता है कि साल 2000 में उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से अब तक करीब पैंतालीस हजार हेक्टेयर जंगल आग में स्वाहा हो चुका है। पर्यावरणविद इस बात पर भी सवाल उठाते हैं कि जब सरकार को इस बात की जानकारी है कि गर्मी के मौसम में आग लगने की घटनाएं होती हैं तो उन्हें पहले से ही रोकने की कोशिश क्यों नहीं की जाती? यदि वन विभाग पहले से तैयारियां किए रहे तो आग लगने की घटनाओं को रोका भले ना जा सके। लेकिन आग लगने पर तत्काल बुझाने के इंतजाम तो किए ही जा सकते हैं।

बताया जाता है कि बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं। ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है। कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कोई भी कैम्प पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है।

वन विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले साल उत्तराखंड के लगभग 235 जंगलों में आग की घटनाएं देखी गईं, जिनमें राज्य में 5,600 से भी ज्यादा पेड़ जलकर खाक हो गए।  वहीं इन पर काबू पाने में भी सरकारी खजाने को 9.71 लाख रुपयों का नुकसान हुआ। इन घटनाओं में पिछले साल राज्य के अलग-अलग हिस्सों- पौड़ी में 115.6 हेक्टेयर, उत्तरकाशी में 38.8 हेक्टेयर, अल्मोड़ा में 61.5 हेक्टेयर, रुद्रप्रयाग में 8.5 हेक्टेयर, बागेश्वर में 47.27 हेक्टेयर और पिथौरागढ़ में 22.6 हेक्टेयर के जंगल झुलस चुके हैं।

इस साल की बात करे तो उत्तराखंड में इस साल जनवरी से 27 मार्च तक जंगलों में आग की 787 घटनाएं हुई हैं। जबकि 27 मार्च के बाद आग की घटनाएं लगातार बढ़ी इजाफा हो गया और अभी तक लगभग 1299 हेक्टेयर वन भूमि आग की चपेट में आ चुकी है।फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया के अनुसार, उत्तराखंड में इस नवंबर से जनवरी के बीच जंगल में आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों में नवंबर से जनवरी तक जंगल में आग लगने की 2984 घटनाएं हुई, जिनमें सर्वाधिक 470 उत्तराखंड में हैं। जबकि पिछली सर्दी में महज 39 घटनाएं हुई थीं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD