बच्चों के खिलाफ यौन शोषण और दुष्कर्म के मामलों में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट जैसे सख्त कानून और फास्ट ट्रैक कोर्ट का प्रावधान किए जाने के बावजूद इसमें कोई कमी नहीं आ रही है। रिपोर्ट के अनुसार बीते 10 साल में बच्चों से दुष्कर्म मामलों में 290 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इनमें से 64 फीसदी पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिला है। बच्चों से संबंधित एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (सीआरवाई) की एक स्टडी के मुताबिक हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन शोषण का सामना करता है
देशभर में आए दिन बाल यौन शोषण के बारे में देखते सुनते है लेकिन सख्त कानून के बावजूद बाल यौन शोषण के अपराध थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। आज बच्चों का यौन शोषण एक सामुदायिक चिंता का विषय हो गया है और इसके लिए कई विधायी और व्यावसायिक पहलों पर सबका ध्यान केंद्रित किया है। अगर भारत की कुल जनसंख्या की बात करें तो लगभग 37 फीसदी हिस्सा बच्चों का है और वहीं विश्व की कुल जनसंख्या में 20 प्रतिशत हिस्सा बच्चों का बताया जाता है।
इसी क्रम में वर्षों से बाल यौन शोषण पर ध्यान आकर्षित करने और इसके आस-पास की चुप्पी की साजिश को तोड़ने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। इसी का परिणाम यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012, (पोक्सो) अधिनियम, एक ऐतिहासिक कानून बनाया गया। लेकिन बावजूद इसके बीते 10 वर्षों में बच्चों से दुष्कर्म मामलों में 290 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इनमें से 64 फीसदी पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिल पाया है। इसका खुलासा प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन की रिपोर्ट में हुआ है, जिसे इसी हफ्ते जारी किया गया है।
दरअसल प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (पोक्सो अधिनियम) के 10 वर्ष पूरे होने पर इस कानून के तहत 2012 से अब तक दर्ज घटनाओं की समीक्षा के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2012 में बच्चों से दुष्कर्म के 8 हजार 541 मामले दर्ज हुए थे, जबकि 2021 में इनकी संख्या 83 हजार 348 हो गई। गौरतलब है कि बच्चों के खिलाफ यौन शोषण और दुष्कर्म के मामलों में पोक्सो अधिनियम जैसे सख्त कानून और फास्ट ट्रैक कोर्ट का प्रावधान किए जाने के बावजूद इसमें कोई कमी नहीं आ रही है। पोस्को अधिनियम के 10 वर्ष पूरे होने पर प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन की 2012 से अब तक दर्ज घटनाओं की समीक्षा के बाद तैयार एक रिपोर्ट के अनुसार बीते 10 साल में बच्चों से दुष्कर्म मामलों में 290 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इनमें से 64 फीसदी पीड़ितों को अब तक न्याय नहीं मिला है। बच्चों से संबंधित एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (सीआरवाई) की एक स्टडी के मुताबिक हर 15 मिनट में एक बच्चा यौन शोषण का सामना करता है।
99 फीसदी घटनाओं में पीड़ित बच्चियां
‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम’ नाम से जारी इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 से अब तक बच्चों के खिलाफ यौन शोषण के 1 लाख 26 हजार 767 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें 1 लाख 25 हजार 560 यानी 99 प्रतिशत घटनाओं में पीड़ित मासूम बच्चियां हैं। फाउंडेशन की सोनल कपूर का कहना है कि वर्ष 2012 में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए पोस्को अधिनियम अस्तित्व में आया था। इस कानून को अब 10 वर्ष पूरे हो गए हैं। लेकिन क्या इससे अब तक भी देश की हालत बदली है इसी को जानने के लिए कानूनी आंकड़ों की समीक्षा के बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है। साल 2020 में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट के तहत 47 हजार से ज्यादा केस दर्ज किए गए थे। इन मामलों में अगर सजा की बात की जाए तो 40 प्रतिशत से कम मामलों में ही दोषियों को सजा हो पाई है।
क्या है पोक्सो एक्ट
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए पोक्सो जिसका पूरा नाम है प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट। इस अधिनियम को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने साल 2012 पोक्सो एक्ट-2012 के नाम से बनाया था। इस कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस कानून के अंतर्गत अलग- अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने साक्षी केस (1999) 6 एससीसी 591) में बाल यौन शोषण से निपटने के लिए आईपीसी की अपर्याप्तता पर प्रकाश डाला था। जब महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों के खिलाफ अपराध विधेयक का मसौदा परिचालित किया (2009) तब शुरू हुई कानून बनाने की प्रक्रिया जो अंत में वर्ष 2012 पोस्को अधिनियम बन गई। इस कानून के दायरे में 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्सुअल हैरेसमेंट आता है। यह कानून लड़का हो या लड़की दोनों को समान रूप से सुरक्षा देता है। एक्ट के तहत बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से सुरक्षा प्रदान की गई है। वर्ष 2012 में बने इस कानून में अलग-अलग अपराध के लिए अलग- अलग सजा तय किए गए हैं। पोस्को कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता-पिता या जिन लोगों पर बच्चा विश्वास करता है, उनकी मौजूदगी में करने का प्रावधान है।
यदि कोई व्यक्ति बच्चे के शरीर के किसी अंग में प्राइवेट पार्ट डालता है तो यह धारा-3 के तहत अपराध है। इसके लिए धारा-4 में सजा तय की गई है। यदि अपराधी ने ऐसा अपराध किया है, जो किशोर अपराध अधिनियम के अलावा किसी अन्य कानून में अपराध है, तो अपराधी के लिए सजा उस कानून के तहत होगी जो सबसे सख्त है। यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के प्राइवेट पार्ट को छूता है या अपने प्राइवेट पार्ट को टच करवाता है तो धारा-8 के तहत सजा होगी।
यदि कोई व्यक्ति गलत नीयत से बच्चों के सामने यौन क्रिया करता है, या उनसे ऐसा करने के लिए कहता है, अश्लीलता दिखाता है, तो 3 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। इस अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि यदि किसी व्यक्ति को पता चलता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो वह इसकी सूचना नजदीकी पुलिस थाने में दें, यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसे छह माह के कारावास की सजा दी जाएगी। अधिनियम में यह भी कहा गया है कि घटना की तारीख से एक वर्ष के भीतर एक बच्चे के यौन शोषण के मामले का निपटारा किया जाना चाहिए।
कहां पर लागू होता है पोस्को एक्ट
यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है, पोक्सो कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में होती है।
पोस्को एक्ट में संशोधन
मोदी सरकार की कैबिनेट बैठक में 10 जुलाई 2019 को यह फैसला लिया गया था कि दोषियों को मौत की सजा दी जाएगी। बैठक में पोस्को एक्ट में बदलाव की बात कही गई और इसके अंतर्गत 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के दोषी को मौत की सजा पर कैबिनेट के मुहर लगाने का प्रस्ताव रखा गया, जिसको बाद में कैबिनेट ने अपनी मुहर लगा दी। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सरकार द्वारा बच्चों के यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम में बदलाव किया गया और आरोपी को फांसी की सजा पर एक अध्यादेश जारी किया। अब कानून में बदलाव होने के बाद कोई भी 12 साल तक की बच्ची के साथ दुष्कर्म के दोषी को मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। पोस्को के पहले के प्रावधानों की बात की जाए तो इसके मुताबिक दोषियों के लिए अधिकतम सजा उम्रकैद और न्यूनतम सजा 7 साल जेल थी। इस कानून के दायरे में 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार शामिल है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लड़की-लड़का दोनों यानी बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के पोस्को 2012 में संशोधन को मंजूरी दी है। इस संशोधित कानून में 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है। इसके अलावा बाल यौन उत्पीड़न के अन्य अपराधों की सजा कड़ी करने का प्रस्ताव भी रखा गया है।
पोक्सो एक्ट में मेडिकल जांच की प्रक्रिया
रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस की यह जवाब देही है कि पीड़ित का मामला 24 घंटों के अंदर बाल कल्याण समिति के सामने लाया जाए, जिससे पीड़ित की सुरक्षा के लिए जरुरी कदम उठाये जा सके, इसके साथ ही बच्चे की मेडिकल जांच करवाना भी अनिवार्य है। ये मेडिकल परीक्षण बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाएगा जिस पर बच्चे का विश्वास हो और पीड़ित अगर लड़की है तो उसकी मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।