देश की जनता मानती है कि संसद में सख्त कानून बन जाना ही काफी नहीं है। बलात्कार के मामले तभी रुक सकते हैं जब कानून पर अमल करवाने के लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति हो। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2012 में निर्भया कांड के वक्त देश में हर दिन 69 बलात्कार होते थे। लेकिन इसके बाद कठोर कानून बनने के बावजूद 2017 में यह आंकड़ा 90 तक जा पहुंचा
देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इन दिनों सड़क से लेकर संसद तक राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। हर राजनीतिक पार्टी के नुमाइंदे अपने-अपने हिसाब से महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुझाव दे रहे हैं। कठोर कानून भी बने हैं, लेकिन इसमें देखने वाली अहम बात यह है कि महिलाओं पर अत्याचार रुकने के बजाए दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। सोचने का गंभीर विषय है कि हैवानियत को अंजाम देने वालों में कठोर कानून का खौफ क्यों नहीं है। हाल ही में तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक महिला वेटरनिटी डॉक्टर की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई। आरोपी उनके शव को ट्रक में डालकर घूमते रहे। फिर सुनसान जगह देखकर शव को आग के हवाले भी कर दिया। इसी तरह झारखंड की राजधानी रांची में एक छात्रा को अगवा कर आरोपियों ने पहले फोन कर अपने अन्य दोस्तों को बुलाया, फिर उसका बारी-बारी से गैंगरेप किया। बाद में उसे वहीं छोड़ गए जहां से किडनैप किया था।
हैदराबाद और रांची ही नहीं, बल्कि देश की राजधानी दिल्ली जहां कि लोग हैवानियत का विरोध सड़कों पर कर रहे हैं और संसद में चिंताएं व्यक्त हो रही हैं, वहां भी इसी बीच बदमाशों ने एक नामी अस्पताल की नर्स का अपहरण कर लिया और डेढ़ घंटे तक उसे सड़कों पर घुमाते रहे। उससे दुष्कर्म की कोशिश भी की गई। जान बचाने के लिए नर्स को ऑटो से छलांग लगानी पड़ी। अब यूपी के उन्नाव जिले में हैदराबाद रेप कांड जैसी घटना सामने आई है। जिसमे गैंगरेप पीड़िता को आरोपियों ने पांच लोगों संग मिलकर जिंदा जलाने का प्रयास किया। वारदात को उस समय अंजाम दिया गया जब पीड़िता मुकदमे की तारीख पर रायबरेली के लिए ट्रेन पकड़ने जा रही थी।
इन घटनाओं से स्पष्ट है कि हैवानों को कानून का कोई डर नहीं है। साथ ही महिला सुरक्षा के इंतजाम एकदम लचर हैं। पिछले कुछ साल के दौरान भारत में रेप की ऐसी घटनाएं भी हुईं, जिनसे भारत को दुनिया भर में शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। जम्मू- कश्मीर के कठुआ रेप केस के बाद तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की तत्कालीन अध्यक्ष क्रिस्टिन लैगार्डे को कहना पड़ा था कि भारत सरकार दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में अगस्त 2019 में पोस्ट आफिस कर्मी ने एक छात्रा से दो बार रेप करने के बाद सिर कुचलकर हत्या कर दी थी। हाल में उसे कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है।
बिहार क्षेत्र के हिंदूनगर भाटनखेडा गांव के रहने वाले शिवम त्रिवेदी और शुभम त्रिवेदी ने 12 दिसंबर 2018 को इलाके की एक युवती को अगवा करके रायबरेली जिले के लालगंज थाना क्षेत्र में गैंगरेप किया था। जिसका मुकदमा रायबरेली जिले के थाना लालगंज में पंजीकृत है और रायबरेली कोर्ट में मामले की सुनवाई चल रही है। पांच दिसंबर को पीड़िता रायबरेली जाने के लिए ट्रेन पकडने बैसवारा स्टेशन के लिए निकली थी।
खौफनाक यह भी है कि गैंगरेप के बाद दरिंदे पीड़िता को जलाकर मार देने जैसी घिनौनी ज्यादतियों से बाज नहीं आ रहे हैं। बिहार, यूपी, दक्षिण भारत समेत अन्य कई राज्यों से भी ऐसी खबरें आ रही हैं, जिनमें पीड़िताओं के साथ ज्यादती की हद की गई और सबूत मिटाने की कोशिश के तहत उनकी नृशंस हत्याएं की गई हैं।
चिंताजनक है कि बलात्कार के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2012 के निर्भया कांड के समय देश में हर दिन 69 बलात्कार होते थे। हाल में जारी एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार (वर्ष 2017) में हर दिन 90 बलात्कार हो रहे थे। आज 2019 की स्थिति तो और भी अधिक भयावह होगी। लेकिन दुर्भाग्य कि जिस रफ्तार से बलात्कार की घटनाओं का ग्राफ ऊपर चढ़ता जा रहा है उस दृष्टि से राजनीतिक लोगों में संवेदनशीलता नहीं दिखाई देती। कई बार तो उनके बयानों से जनभावनाएं तक आहत हुई हैं।
हैदराबाद की घटना पर तेलंगाना के गृह मंत्री मोहम्मद महमूद अली ने कहा, ‘अफसोस की बात है कि वो डाक्टर पढ़ी-लिखी होने के बाद भी उसने अपनी बहन को फोन किया, अगर वो 100 नंबर पर कॉल करती तो बच जाती।’ कहीं न कहीं मृतक चिकित्सक को पढ़ी-लिखी नासमझ ठहराते गृहमंत्री के इन शब्दों पर उनकी चौतरफा आलोचना हुई। अतीत में भी राजनीतिक जमात बलात्कार की घटनाओं पर संवेदनहीन बयान दे चुकी है। राजनीतिक संवेदनहीनता का जिक्र इसलिए जरूरी हो जाता है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि ही नीति निर्माण का कार्य करते हैं, कानून बनाते हैं। अगर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध पर उनकी ही सोच दूषित होगी, तो समाज किससे सुरक्षा और न्याय की आस लगाएगा? वर्ष 2012 में जब निर्भया अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही थी तो तब भाजपा के वर्तमान महासचिव कैलाश विजयवर्गीय फरमा रहे थे कि ‘सीता लक्ष्मण रेखा लांघेगी तो रावण उसका अपहरण करेगा ही। केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के सांसद अभिजीत मुखर्जी (पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे) निर्भया को न्याय दिलाने की मांग करने वाली प्रदर्शनकारी महिलाओं पर यह टिप्पणी कर रहे थे, ‘हाथ में मोमबत्ती जलाकर सड़कों पर आना फैशन हो गया है, ये सजी- संवरी महिलाएं पहले डिस्को थेक में गईं और फिर इस गैंगरेप के खिलाफ विरोध दिखाने इंडिया गेट पर पहुंचीं।
समाजवादी पार्टी के पूर्व प्रमुख उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव भी पीछे नहीं रहे। मुंबई के शक्ति मिल्स रेप केस के मामले में वे कहते नजर आए, ‘बच्चे हैं, गलती हो जाती है। इसका मतलब क्या फांसी चढ़ा दोगे? उन तीन बेचारे लड़कों को फांसी दे दी गई। बताइए रेप के लिए भी फांसी होगी क्या? हम ऐसे कानून बदलने की कोशिश करेंगे।’ मुलायम सिंह बलात्कार को लेकर कैसी सोच रखते हैं, इसकी बानगी एक बार फिर वर्ष भर बाद तब देखने को मिली जब वे गैंगरेप के बचाव में दलील देते नजर आए, ‘चार लोग एक महिला के साथ बलात्कार कर ही नहीं सकते। एक व्यक्ति बलात्कार करता है, चार लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी जाती है। तब उत्तर प्रदेश में उनके बेटे अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। सरकार के बचाव में मुलायम यहां तक कह गए, ‘राजनीतिक दुश्मनी के चलते सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। उनकी ही पार्टी के सांसद आजम खान ने 2016 के चर्चित बुलंदशहर गैंगरेप को उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार को बदनाम करने की साजिश ठहरा दिया था। समाजवादी पार्टी के तत्कालीन राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल (वर्तमान में भाजपा में हैं) ने रेप की घटना को एक तरह से खारिज करते हुए कहा था, ‘आप एक बछिया को भी घसीटकर नहीं ले जा सकते।
वर्ष 2018 में जब जम्मू-कश्मीर में आठ साल की मासूम के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या को लेकर देश में हंगामा मचा हुआ था, तब बलिया के भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा था, ‘नाबालिग लड़कियों का खुलेआम घूमना ठीक नहीं। उन्हें मोबाइल फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।’ हैदराबाद कांड के दो ही दिन बाद 30 नवंबर को राजस्थान के टोंक जिले के खेड़ली गांव में एक छह वर्षीय मासूस से बलात्कार करके उसका गला इस बर्बरता से दबाया गया कि उसकी आंखें ही बाहर निकल आई। ऐसे में वे राजनेता भला क्या कुतर्क देंगे जो यह सोच रखते हैं कि लड़कियों को मोबाइल नहीं रखना चाहिए। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने भी एक बार बयान दिया था, ‘विदेश में महिलाएं जींस-टी शर्ट पहनती हैं, पराए मर्दों के साथ डांस करती हैं, शराब भी पीती हैं, पर ये उनकी संस्कृति है। ये उनके लिए ठीक है, भारत के लिए नहीं।’ यह बात गौर ने राज्य के गृहमंत्री रहते कही थी।
भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह जब मुंबई के पुलिस कमिश्नर थे तब उन्होंने कहा था, ‘सेक्स एजुकेशन जिन देशों में है, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं। सेक्स एजुकेशन को लेकर हमें सोच-समझकर आगे बढ़ने की जरूरत है। अमेरिका के सिलेब्स में सेक्स एजुकेशन शामिल है, पर स्टूडेंट्स को सिर्फ सेक्सुअल रिलेशन बनाना सिखाया जा रहा है। आज वे सांसद हैं और देश की संसद में बैठकर महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून बनाने की प्रक्रिया में शामिल हैं। यौन उत्पीड़न और बलात्कार के दोषी स्वयंभू संत गुरमीत राम रहीम के बचाव में भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने कहा था, ‘एक व्यक्ति ने राम रहीम पर दुष्कर्म का आरोप लगाते हुए शिकायत दी। वहीं, करोड़ों लोग उन्हें भगवान मानते हैं। ऐसे में आप किसे सही समझते हैं? यह भारतीय संस्कृति को बदनाम करने की साजिश है।
ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने अपनी सोच के अनुसार बलात्कार के पैमाने और परिभाषाएं भी गढ़ रखी हैं। त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस जब छत्तीसगढ़ की रायपुर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद थे, तब बलात्कार के मामले में उनकी सोच यह थी, ‘बड़ी लड़कियों और महिलाओं से बलात्कार तो समझ आता है लेकिन अगर कोई बच्ची के साथ रेप करे तो यह घिनौना अपराध है। कैराना से भाजपा सांसद रहे हुकुम सिंह मानते थे, ‘बलात्कार मुस्लिम लड़के करते हैं। आज तक किसी हिंदू ने लड़की के साथ बलात्कार नहीं किया।
बलात्कार के मामले में पीड़ित महिलाओं के चरित्र पर सवाल उठाना बेहद आम है और देश के नेता इससे अछूते नहीं हैं। वर्ष 2018 के जालंधर के चर्चित नन रेप मामले, जहां एक के बाद एक कई ननों ने बिशप पर रेप के आरोप लगाए, वहीं केरल के निर्दलीय विधायक पीसी जार्ज ने इस बारे में खुलासा करने वाली नन को ही वेश्या बता दिया था। 2014 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने निर्भया कांड के संदर्भ में कहा था, ‘दिल्ली में एक छोटी सी दुष्कर्म की घटना को दुनियाभर में इतना प्रचारित किया गया कि वैश्विक पर्यटन के क्षेत्र में देश को अरबों डालर का नुकसान उठाना पड़ा। कश्मीर के चर्चित कठुआ गैंगरेप और हत्या मामले पर राज्य के उपमुख्यमंत्री रहे कविंदर गुप्ता ने घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि ‘यह एक छोटी-सी बात है। हमें इसे इतना ज्यादा भाव नहीं देना चाहिए।’ 2018 में ही केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने कहा था, ‘इतने बड़े देश में एक-दो घटनाएं हो जाएं तो बात का बतंगड़ नहीं बनाना चाहिए। बलात्कार को लेकर ऐसी ही बेतुकी सोच का परिचय कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री रहे केएस ईश्वरप्पा भी दे चुके हैं।
आश्चर्यजनक है कि बलात्कार के इस संबंध में महिला नेताओं के बयान भी संवेदनहीन और विवादस्पद नजर आए हैं। कठुआ कांड पर भाजपा सांसद और पार्टी प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी यह कहती नजर आईं, ‘केंद्र पर आरोप लगाने की यह कांग्रेस की योजना है। इसी घटना को वर्तमान भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने बलात्कार मानने से ही इनकार कर दिया था।
खास बात यह है कि बलात्कार पर राजनेताओं ने न सिर्फ विवादास्पद बयान दिये, बल्कि इस देश की राजनीतिक पार्टियां बलात्कार के आरोपी नेताओं को टिकट भी देती रही हैं। एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान लोकसभा में 19 सांसद महिलाओं पर अत्याचार के आरोपी हैं। तीन सांसदों पर बलात्कार से जुड़े मामले दर्ज हैं। हालांकि राजनीतिक दल तर्क दे सकते हैं कि जिन लोगों को टिकट देकर संसद भेजा गया। उन पर आरोप साबित नहीं हुए हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि आज जब वे सांसद हैं तो क्या अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके आरोप साबित होने देंगे? उन्नाव गैंगरेप जिसमें कुलदीप सेंगर आरोपी हैं, उसमें दिख ही चुका है कि किस तरह ‘प्रभाव का इस्तेमाल’ किया जाता है। राजनीतिक पार्टियां द्वारा आरोपी लोगों को संसद भेजने और निर्भया कांड के बाद कठोर कानून बनने बावजूद समाज में बलात्कार की घटनाएं बढ़ने से साफ है कि कानून बन जाना ही पर्याप्त नहीं है, इस पर अमल करने की कोई ठोस प्रक्रिया नहीं है और न ही कोई दृढ राजनीतिक इच्छा शक्ति, नतीजतन बलात्कार की घटनाओं की पुनरावृत्ति जारी है। हैवान बेखौफ अपनी हरकतों को अंजाम दे रहे हैं। मेरठ के रहने वाले एक जल्लाद पवन की इस बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता है कि ‘अगर निर्भया के हत्यारों को सरकार फांसी पर लटका चुकी होती तो वेटननरी डॉक्टर बेमौत मरने से बच जाती।’