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उत्तराखण्ड में भाजपा ने जिस तरह मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष बदले हैं, उससे साफ है कि पार्टी को भीतर ही भीतर कोई बड़ा डर सता रहा है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी आलाकमान को अहसास हो चुका है कि 2022 की राह बेहद चुनौतीपूर्ण है। प्रदेश की जनता बड़ा उलटफेर कर सकती है। ऐसे में पार्टी समीकरणों को साट्टाने के प्रयोग करती जा रही है

 

उत्तराखण्ड को लेकर भाजपा में अफरा-तफरी का माहौल साफतौर पर दिखाई दे रहा है। पार्टी ने 2022 के चुनाव को मद्देनजर रखते हुए प्रदेश में जिस तरह मुख्यमंत्री बदले उसका यही संदेश गया है कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बेहद डरी हुई है। कुछ अर्सा पहले ही प्रदेश अध्यक्ष पर मैदानी मूल के नेता मदन कौशिक को बैठाने वाली भाजपा को अब गढ़वाल क्षेत्र की नाराजगी का भय सताने लगा है। सूत्रों की मानें तो जल्द ही कौशिक के स्थान पर किसी गढ़वाली मूल के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है।

राज्य में त्रिवेंद्र सिंह रावत को बदलना पार्टी अलाकमान के लिए मजबूरी हो गई थी। त्रिवेंद्र के सलाहकारों और ओएएडियों पर भूमि खरीद के आरोप लग रहे थे। उन पर सरकारी खजाने से बहुत बड़ा खर्चा किये जाने की बातें हो रही थी। फिर 2020 में कोरोना महामारी के चलते त्रिवेंद्र रावत सरकार पर लापवही बरतने के गंभीर आरोप भी लगे। कुंभ की तैयारियों में त्रिवेंद्र सरकार बेहद लचर साबित हुई। राज्य में जनता सरकार के प्रति भारी नाराज थी। माना जा रहा है कि भाजपा और संघ ने इस पर दो-तीन बार गोपनीय सर्वे करवाए जिसमें त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में चुनाव में हार होने की आशंकाएं जताई गई।

प्रधानमंत्री मोदी संग त्रिवेंद्र

 

आखिरकार भाजपा को फिर से अपने पुराने राजनीतिक प्रयोग के लिए मजबूर होना पड़ा और त्रिवेंद्र रावत जो कि अपनी सरकार के चार वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रदेश भर में भव्य कार्यक्रम करवाने वाले थे, उन्हें मुख्यमंत्री पद से ही चलता करके पौड़ी के सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री के पद पर बैठा दिया। भाजपा के रणनीतिकार मुख्यमंत्री बदलने को इस कदर बेचैन थे कि गैरसंैण में चल रहे सत्र के समापन से पहले ही भाजपा ने मुख्यमंत्री को बदल डाला, जबकि इससे पूर्व भाजपा ने अजय भट्ट को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर बंशीधर भगत को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी।

सौ दिनों के बाद तीरथ सिंह रावत को भी मुख्यमंत्री पद से हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया। तीरथ रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के लिए भाजपा ने तर्क दिए कि निर्वाचन आयोग की गाइड लाइन के अनुसार एक वर्ष से कम समय वाली विधानसभा में उपचुनाव नहीं हो सकते इसलिए संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता था जिस कारण तीरथ सिंह रावत को त्यागपत्र देना पड़ा। हालांकि भाजपा का यह तर्क कुछ हद तक सही भी माना जा सकता है, लेकिन इसके पीछे अति उत्साहित और प्रचंड बहुमत से गर्वोक्त भाजपा के रणनीतिकारों की ही नाकामी रही है। तीरथ सिंह रावत जब मुख्यमंत्री बने थे तो सल्ट उपचुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी थी। कांगे्रस और भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की अधिकृत घोषणा भी नहीं की थी। अगर भाजपा के रणनीतिकार चाहते तो आसानी से तीरथ सिंह रावत को सल्ट सीट से विधानसभा का उपचुनाव लड़वा सकते थे। लेकिन भाजपा अति उत्साह में ही रही और आखिरकार इस देरी की गाज तीरथ सिंह रावत के सिर पड़ी और वे राज्य के सबसे कम कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री बने।

पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने से भाजपा के क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण गड़बड़ाने लगे तो भाजपा ने फिर से अपने प्रयोग दोहराते हुए बंशीधर भगत से प्रदेश अध्यक्ष की कमान हटाकर पहली बार मैदानी क्षेत्र के ब्राह्मण चेहरे मदन कौशिक को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी। यह भाजपा का पहला ऐसा राजनीतिक प्रयोग है जिसमें किसी मैदानी मूल के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। राज्य बनने से पूर्व और राज्य बनने के बाद पर्वतीय मूल के ही नेता का प्रदेश भाजपा में वर्चस्व रहा है।

उल्टा पड़ सकता है सीएम और अध्यक्ष बदलने का दांव

अब फिर से भाजपा के भीतर क्षेत्रीय समीकरण गडबड़ाने लगे हैं। गढ़वाल क्षेत्र की उपेक्षा के आरोप स्वयं भाजपा के ही नेता लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री मैदानी क्षेत्र से और प्रदेश अध्यक्ष भी मैदानी क्षेत्र से होने के चलते गढ़वाल क्षेत्र के नेताओं में भारी
निराशा है। उनमें अपनी उपेक्षा किए जाने का माहौल बन चुका है। अब चर्चाएं यह उठ रही हैं कि भाजपा फिर से नया राजनीतिक प्रयोग करने जा रही है और एक बार फिर से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर बदलाव कर सकती है। सवा चार साल में तीन मुख्यमंत्री देने वाले प्रदेश भाजपा में अब प्रदेश अध्यक्ष को बदले जाने की आहटें सुनाई देने लगी हंै। महज एक माह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बने मदन कौशिक को क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरणों को साधने के लिए हटाए जाने की चर्चाएं बड़ी तेजी से प्रदेश में होने लगी हैं। इस बार भाजपा फिर से गढ़वाल क्षेत्र की उपेक्षा को लेकर उठते आरोपों से बचने के लिए गढ़वाल से किसी बड़े चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है।

दरअसल, मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से भाजपा ने एक साथ कई समीकरणांे को साधने का प्रयास किया था। पहली बार प्रदेश भाजपा की कमान किसी मैदानी मूल के नेता के हाथांे में दी है। इसके पीछे राज्य में बदलते राजनीतिक हालात को माना गया है। आम आदमी पार्टी के उत्तराखण्ड में मजबूती के साथ दखल देने से भाजपा के राजनीतिक समीकरण गड़बडाने लगे हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी को भाजपा नेता चुनौती तो नहीं मान रहे हैं, लेकिन जिस तरह से भाजपा का पूरा ध्यान मैदानी क्षेत्र के मतदाताओं पर देखने को मिल रहा है उससे कहीं न कहीं भाजपा भी 2022 के चुनाव को लेकर आशंकित हो चली है।

राजनीतिक जानकारांे की मानें तो मैदानी क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी मजबूती के साथ अपने पैर रख रही है जिसका असर चुनाव में पड़ना निश्चित है, जबकि पूर्व में बसपा ही मैदानी क्षेत्र में भाजपा के लिए चुनौती देने वाली एक मात्र पार्टी रही है। अब आप के आ जाने से भाजपा के क्षेत्रीय राजनीतिक समीकरणों के बदलने की आशंका पैदा हो चली है जिसके कारण मदन कोैशिक को प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर मजबूर होना पड़ा। एक समीकरण को साधने के लिए दूसरे समीकरण के गड़बड़ाने से भाजपा फिर से नए सिरे से रणनीति बनाने में लगी हुई है। माना जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बदलाव किया जा सकता है।

राजनीतिक सूत्रों की मानें तो भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह रावत को बनाया जा सकता है। इसके पीछे यह माना जा रहा हेै कि जिस तरह से त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया उससे उनके समर्थकों में भारी नाराजगी बनी हुई है। विधानसभा सत्र के समापन से पहले ही त्रिवेंद्र रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से भाजपा के भीतर तमाम तरह की नाराजगी के स्वर उठने लगे थे। इसके बाद तीरथ सिंह रावत को भी मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद भाजपा के कार्यकर्ता और वरिष्ठ नेताओं में पार्टी के रणनीतिकार और नीति-नियंताओं के खिलाफ नाराजगी के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं।

त्रिवेंद्र रावत के डोईवाला से चुनाव न लड़ने की चर्चाएं भी भाजपा के ही भीतर से उठ रही हैं। हैरानी इस बात की है कि इसको लेकर तकरीबन पूरी भाजपा आश्वस्त है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत डोईवाला से चुनाव नहीं लड़ने वाले, जबकि त्रिवेंद्र रावत का स्वयं कहना है कि वे चुनाव लड़ेंगे। बावजूद इसके ऐसी चर्चाएं स्वयं भाजपा के बड़े नेता कर रहे हैं और ऐसे कयासों को हवा भी दे रहे हैं। जिस तरह से कांग्रेस ने उत्तराखण्ड में नया राजनीतिक प्रयोग किया और प्रदेश अध्यक्ष के साथ चार नए कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सभी विरोधियों को शांत किया। इसे कांग्रेस के जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों को साधने का मजबूत प्रयास बताया जा रहा हेै, उसी तरह से अब भाजपा भी गढ़वाल से किसी एक बड़े चेहरे को नया प्रदेश अध्यक्ष और दो कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना सकती है।

माना जा रहा हेै कि त्रिवेंद्र रावत को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है तो गढ़वाल की उपेक्षा का आरोप कम हो सकता है। साथ ही किसी ब्राह्मण चेहरे को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। सूत्रांे की मानें तो कार्यकारी अध्यक्ष किसी महिला को बनाया जा सकता है। राजनीतिक जानकार भी इसे भाजपा के लिए बेहतर कदम मान रहे हैं। भाजपा में अभी तक कोई महिला प्रदेश अध्यक्ष के पद पर नहीं पहुंची है और चुनाव में इसका असर भाजपा पर पड़ सकता है। त्रिवेंद्र रावत के प्रदेश अध्यक्ष बनने से उनके समर्थकों की नाराजगी दूर होने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। यह भी चर्चा है कि मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने पर मैदानी क्षेत्र के किसी नेता को कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर नवाजा जा सकता है जिससे भाजपा के पहाड़ी-मैदानी और कुमाऊं-गढ़वाल के साथ-साथ ठाकुर-ब्राह्मण के राजनीतिक समीकरणों को एक साथ साधा जा सकता है।

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