लोकसभा चुनाव 2024 के लिए एक ओर जहां भाजपा में टिकट पाने के लिए मारामारी चल रही है और पार्टी कई दिग्गज नेताओं के भी टिकट काट रही है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस में हालात ऐसे हैं कि पार्टी आलाकमान सीनियर नेताओं को चुनाव लड़ाना चाहता है, जबकि नेता खुद ही इससे इनकार कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, राजस्थान में अशोक गहलोत, सचिन पायलट, उत्तराखण्ड में हरीश रावत, यशपाल आर्य, पंजाब से नवजोत सिंह सिद्धू समेत कई और बड़े नेताओं ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है तो दक्षिण में पी. चिदंबरम भी राज्यसभा के रास्ते ही सदन पहुंचना चाहते हैं। यहां तक कि खुद पार्टी के राष्ट्रीय अट्टयक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि इन बड़े नेताओं को हार का डर है या फिर उम्र का तकाजा?
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की चुनाव से बेरुखी का असर नतीजों पर भी दिखेगा। ये नेता चुनाव में उतरते तो एक माहौल बनता। खासतौर पर कठिन सीटों पर बड़े नेताओं के चुनाव लड़ने से पार्टी को माहौल बनाने में मदद मिलती। लेकिन नेताओं की बेरुखी अपनाने से पार्टी की चिंता बढ़ गई है। पार्टी के समक्ष मजबूत उम्मीदवारों को खड़ा करना भी एक चुनौती है। खासकर हिंदी पट्टी में बीजेपी और संघ का सामना करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन चुकी है। हर चुनाव के साथ पार्टी का कैडर वोट सिमटता ही जा रहा है।
कांग्रेस के लिए बीजेपी की आक्रामक चुनावी रणनीति का मुकाबला करना मुश्किल है। कमलनाथ, दिग्विजय, अशोक गहलोत, हरीश रावत जैसे नेताओं की उम्र 75 पार है। बीजेपी बूथ स्तर तक सभाएं और प्रचार करती है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक-एक दिन में कई चुनावी सभाएं करते हैं। इस स्तर की ऊर्जा और चुनाव में पसीना बहाने की क्षमता के लिए जरूरी संगठन का आधार कांग्रेस के हाथों से अब फिसल चुका है।
गौरतलब है कि कांग्रेस की गत् सप्ताह सम्पन्न चुनाव समिति की बैठक में असम, गुजरात, उत्तराखण्ड, राजस्थान, मट्टय प्रदेश की सीटों पर बात हुई। हरीश रावत को पार्टी ने हरिद्वार से ऑफर दिया है, जबकि नेता विपक्ष यशपाल आर्य को कुमाऊं की दो सीटें ऑफर की गईं लेकिन दोनों ही नेता चुनाव लड़ने का इरादा नहीं रखते।
हरीश रावत तो चाहते हैं कि उनकी जगह पर बेटे को टिकट दे दिया जाए। इसकी वजह यह है कि वह अब राजनीति से संन्यास के मूड में हैं और अपने बदले में बेटे को राजनीति में आगे बढ़ाना चाहते हैं। टिहरी सीट से सीनियर नेता और विधायक प्रीतम सिंह को ऑफर मिला था, लेकिन उन्होंने भी इनकार कर दिया। वरिष्ठ नेताओं के इस रुख से कांग्रेस में अंदरुनी कलह की भी स्थिति है। उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष करण माहरा ने पार्टी हाईकमान से कहा है कि सीनियर नेताओं को जिम्मेदारी लेते हुए चुनाव में उतरना चाहिए। कठिन समय में ऐसा करने से एक अच्छा संदेश जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी चुनाव नहीं लड़ना चाहते। उनके नाम पर कलबुर्गा सीट को लेकर आम सहमति है, लेकिन वह यह सीट अपने दामाद को देना चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि दामाद राधाकृष्णन डोड्डामणि को टिकट मिल जाए। हालांकि इस तरह वह कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्ताव का ही उल्लंघन करेंगे, जिसमें संकल्प लिया गया था कि किसी परिवार के एक ही सदस्य को लोकसभा या विधानसभा का टिकट मिलेगा।
पार्टी सूत्रों की मानें तो हिंदी पट्टी में बीजेपी की ताकत और संघ की संगठन क्षमता को देखते हुए कांग्रेस के सीनियर नेता डरे हुए हैं। चुनाव पूर्व के ओपिनियन पोल और आंतरिक सर्वे में भी बीजेपी ही मजबूत नजर आ रही है। ऐसे हालात में कांग्रेस के दिग्गज नेता हार की शर्मिंदगी और चुनाव की मेहनत दोनों से बचना चाहते हैं।