देश में जब से नए कृषि कानून पारित हुए हैं तब से लगातार इन कानून के खिलाफ और समर्थन में विरोध-प्रदर्शन जारी है ।इस समय देश में कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन और तेज हो गया है। अगले दो – तीन महीनों में पश्चिम बंगाल ,असम , केरल ,तमिलनाडु और पुड्डुचेरी सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं,ऐसे में अब पश्चिम बंगाल के चुनावी दंगल में राजनीतिक पार्टियों के साथ ही किसान संगठन भी कूदने को तैयार हैं। केंद्र के लाए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों का अगला लक्ष्य बंगाल चुनाव है। किसान नेताओं ने ऐलान किया है कि वे चुनावी राज्य पश्चिम बंगाल में भी महापंचायतें करेंगे। किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि हम पूरे देश का दौरा करेंगे और पश्चिम बंगाल भी जाएंगे। वहीं एक किसान नेता ने संकेत दिया कि वे जनता से ऐसे लोगों को वोट नहीं देने को कहेंगे जो किसानों की आजीविका छीन रहे हैं। किसान नेताओं ने यह भी कहा कि अगर पश्चिम बंगाल में बीजेपी के लोग हार जाते हैं तभी उनका आंदोलन सफल होगा।
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) नेता राकेश टिकैत कहा, ‘हम पूरे देश का दौरा करेंगे, हम पश्चिम बंगाल भी जाएंगे। पश्चिम बंगाल में भी किसान समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उन्हें अपनी फसलों के लिए अच्छी कीमतें नहीं मिल रही हैं।’
टिकैत ने महापंचायत को संबोधित करते हुए कहा, ‘हम देश भर में पंचायतों का आयोजन करेंगे। गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य स्थानों पर जाएंगे। पश्चिम बंगाल के किसान राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र के साथ कुछ समस्याओं का सामना कर रहा है। हम वहां भी एक पंचायत आयोजित करेंगे।
हालांकि, हरियाणा बीकेयू के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने महापंचायत को संबोधित करते हुए लोगों से अपील की कि वे पंचायत से संसद तक के चुनाव में ऐसे किसी व्यक्ति को वोट नहीं दें जो प्रदर्शनकारी किसानों की मदद नहीं करते हैं और उनके आंदोलन को समर्थन नहीं देते।
बाद में टिकैत और कुछ अन्य किसान नेताओं के साथ पत्रकारों से बातचीत करते हुए चढूनी ने कहा, ‘जहां तक पश्चिम बंगाल का संबंध है, अगर भाजपा के लोग हार जाते हैं, तभी हमारा आंदोलन सफल होगा। पश्चिम बंगाल में भी लोग कृषि पर निर्भर हैं।
टिकैत ने कहा कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे 40 नेता पूरे देश का दौरा करेंगे ताकि आंदोलन को समर्थन मिले। चढूनी ने कहा कि सरकारें लोगों से ऊपर नहीं हैं और उन्हें आंदोलन कर रहे किसानों की मांगों को स्वीकार करना होगा। ‘हमें तब तक लड़ना है जब तक हमें अपने अधिकार नहीं मिल जाते, भले ही इसका मतलब अंतिम सांस तक लड़ना हो।