आगामी लोकसभा चुनाव से पहले पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों ने दिल्ली की तर्ज पर आंदोलन शुरू कर दिया है। दोनों राज्यों के हजारों प्रदर्शनकारी किसानों ने अपनी मांगों को लेकर तीन दिवसीय विरोध-प्रदर्शन के तहत चंडीगढ़ के बाहरी इलाके में इकट्ठा हुए। उन्होंने चेतावनी दी है कि वे लंबी यात्रा के लिए तैयार होकर आए हैं। उनमें से कई लोग अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर सब्जियां, आटे और दाल की बोरियां और खाना पकाने का तेल साथ लाए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के तहत किसान यूनियनों ने उनके ऐतिहासिक ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन की तीसरी वर्षगांठ और न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी जैसी मांगों को पूरा न करने पर देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन का ऐलान किया है। आंदोलन की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब आमचुनाव 2024 की सियासी गरमी तेज हो रही है। किसान संगठनों को ज्ञात है कि मोदी सरकार उत्तर प्रदेश चुनाव के नाजुक वक्त पर ही झुकी थी और ‘माफी’ मांगते हुए कृषि कानूनों को वापस लिया था। एक बार फिर मोदी सरकार के लिए एक नाजुक समय आने वाला है जिसमें किसानों से नाराजगी मोल लेना महंगा पड़ सकता है
वर्ष 2020 वो साल था जब पंजाब, हरियाणा समेत पूरे देश का किसान दिल्ली के गाजीपुर और सिंधु बॉर्डर पर 13 महीने तक धरने पर बैठा रहा। उस समय किसानों ने संकल्प ले लिया था कि जब तक तीनों कृषि कानूनों को सरकार वापस नहीं ले लेती वो इस जगह से हिलेंगे तक नहीं और किसानों के इस दृढ़ संकल्प के सामने आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा भी। ‘378’. . .. ये केवल एक संख्या नहीं बल्कि वो दिन और रात हैं जो हमारे देश के अन्नदाताओं ने दिल्ली की सड़कों पर बिताए हैं। देश के अन्नदाताओं ने ये साबित कर दिया कि अगर वो खेतों में अनाज उगा सकता है तो सड़कों पर रहकर अपने हक को भी हासिल कर सकता है, भले ही उसकी कीमत कुछ भी हो। यही कारण है कि इतने लंबे आंदोलन के बाद सरकार को तीनों विवादित कानून वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय कृषि कानूनों को वापस लेते हुए कहा था, ‘मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहता हूं कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई होगी। कुछ किसान भाइयों को समझा नहीं पाए। आज गुरु नानक देव का पवित्र पर्व है। ये समय किसी को दोष देने का समय नहीं है। आज पूरे देश को यह बताने आया हूं कि सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया है।’ कृषि कानूनों की वापसी की सत्यता की बात करें तो इसकी वापसी के दूसरे दिन से ही कृषि मंत्री से लेकर भाजपा नेता ही नहीं लगभग सभी अखबार अपने संपादकीय कॉलम में कहने लगे थे कि ये कानून दूसरी शक्ल में फिर से आएंगे।
कानून फिर वापस हो सकते हैं ऐसी आशंका और संभावनाओं के बीच एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पंजाब और हरियाणा के हजारों किसानों ने दिल्ली जैसा आंदोलन शुरू कर दिया है। दोनों राज्यों के हजारों प्रदर्शनकारी किसानों ने अपनी मांगों को लेकर तीन दिवसीय विरोध-प्रदर्शन के तहत चंडीगढ़ के बाहरी इलाके में इकट्ठा होना शुरू कर दिया है। उन्होंने चेतावनी दी कि वे लंबी यात्रा के लिए तैयार होकर आए हैं। उनमें से कई लोग अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों पर सब्जियां, आटे और दाल की बोरियां और खाना पकाने का तेल साथ लाए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के तहत किसान यूनियनों ने किसानों के ऐतिहासिक ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन की तीसरी वर्षगांठ और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी जैसी मांगों को पूरा न करने पर देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन का आह्नान किया है।
किसानों के चंडीगढ़ में जबरन प्रवेश को रोकने के लिए पुलिस को भारी संख्या में तैनात किया गया है। इसके साथ ही सीमाएं सील कर दी गई हैं। हालांकि प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए किसी हिंसा या बल प्रयोग की कोई रिपोर्ट नहीं है।
अस्थायी रसोई तैयार
इकट्ठे हुए किसानों ने अपने रहने के लिए शहर की ओर जाने वाली सड़कों पर अपने तंबू गाड़ लिए हैं। अपने वाहन, बड़े पैमाने पर ट्रैक्टर- ट्रॉलियों, पार्क कर दिए हैं। यहां तक कि उन्होंने भोजन परोसने के लिए अस्थायी रसोई भी स्थापित की। इस बार किसानों ने चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा के राजभवनों के सामने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए ‘चंडीगढ़ चलो’ आंदोलन शुरू किया है। प्रदर्शनकारी किसान, जिनमें पुरुष और महिलाएं-युवा और बूढ़ों के साथ स्कूल और कॉलेज के छात्र शामिल हैं। पंजाब में मोहाली और हरियाणा में पंचकूला की सीमाओं पर धीरे-धीरे लोग इकट्ठा हो रहे हैं।
अनिश्चितकाल तक आंदोलन
एसकेएम की समन्वय समिति के सदस्य दर्शन पाल का कहना है कि कृषि संघ अपनी मांगें पूरी न होने पर केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए राजभवन की ओर बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो वे अनिश्चितकाल तक आंदोलन करेंगे। गौरतलब है कि आंदोलन की घोषणा ऐसे समय में की गई है जब देश में 2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी गरमी तेज हो रही है। किसान संगठनों को ज्ञात है कि मोदी सरकार उत्तर प्रदेश चुनाव के नाजुक वक्त पर ही झुकी हुई थी जिस समय ‘माफी’ मांगते हुए कृषि कानूनों को वापस लिया था। एक बार फिर से मोदी सरकार के लिए एक नाजुक समय (2024 का आम चुनाव) आने वाला है जिसमें किसानों से नाराजगी मोल लेना महंगा पड़ सकता है। किसान संगठन इस मौके का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार को झुकाने की चाल चल रहे हैं।
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना चुनाव में भाजपा-कांग्रेस ने बड़े पैमाने पर एमएसपी और अन्य वादे किए हैं जो साबित करते हैं कि किसान गहरे संकट में हैं और एसकेएम की मांगें जायज हैं। ग्रामीण संकट भारत की 68.9 फीसदी आबादी को प्रभावित करता है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि बीजेपी ने मध्य प्रदेश में गेहूं का एमएसपी 2 हजार 700 रुपए प्रति क्विंटल और राजस्थान में अतिरिक्त बोनस देने का वादा किया है, वहीं कांग्रेस ने 2 हजार 600 रुपए एमएसपी और राजस्थान में एमएसपी पर सुनिश्चित खरीद का कानून बनाने के साथ उसे महंगाई दर से जोड़ने का वादा किया है। घोषित एमएसपी केवल 2 हजार 275 रुपए है जबकि एसकेएम मांग कर रहा था कि इसे 2 हजार 800 रुपए प्रति क्विंटल किया जाए।
धान में अंतर और बड़ा है। जहां बीजेपी ने एमपी में 3 हजार 100 रुपए प्रति क्विंटल का वायदा किया है, वहीं कांग्रेस ने तेलंगाना में 500 रुपए बोनस देने का ऐलान किया है, जो कुल मिलाकर मोदी सरकार द्वारा घोषित 2 हजार 183 रुपए से कहीं ज्यादा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बटाईदारों के पंजीकरण के साथ उन्हें सरकारी योजनाओं की गारंटी देने की मांग की है। किसान मोर्चा ने कहा कि कांग्रेस ने तेलंगाना में किसानों को 15 हजार रुपए प्रति एकड़ और बटाईदारों को 12 हजार रुपए प्रति एकड़ वार्षिक मदद देने का वायदा और बीआरएस ने 16 हजार रुपए प्रति एकड़ देने का वायदा किया है। यह किसानों की दुर्दशा को उजागर करता है जो खेती की बढ़ती लागत को सहन करने में असमर्थ हैं।
क्या है किसानों की मांग
● एमएसपी गारंटी कानून बने
● किसान आंदोलन में जान गंवाने वाले परिवारों को सहायता व नौकरी
● किसान आंदोलन के दौरान उन पर दर्ज केस रद्द करने की मांग
● बाढ़ प्रभावित किसानों को पंजाब सरकार से मुआवजा मिले
● गन्ने के दाम में वृद्धि की मांग
● पराली जलाने पर दर्ज केस रद्द करने की मांग
● किसानों को कर्ज मुक्त बनाने की मांग
● बिजली बिल माफी
● बिजली संशोधन बिल 2022 रद्द हो
● चार लेबर कोड निरस्त हो, न्यूनतम वेतन 26 हजार किया जाए,
● मनरेगा में 200 दिन काम, 600 रुपए मजदूरी करने की मांग
● किसान-मजदूरों को 10 हजार पेंशन की मांग
● शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास की गारंटी
● सरकारी व सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण बंद करने की मांग
● अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करने की मांग
● पुरानी पेंशन योजना की बहाली