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सरकार के लिए गले की हड्डी बना किसान आंदोलन 

हाल ही में बने नए कृषि कानून के विरोध में आंदोलन में जुटे किसान पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।  इस बीच कल दो दिसंबर की  देर शाम एक और किसान गुरजंत सिंह की मौत हो गई है।  उनकी उम्र 60 साल थी।  बहादुरगढ़ बॉर्डर पर  उनकी मौत हुई।  पिछले सात दिनों में यह चौथी  मौत  है।

दरअसल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी  उत्तर प्रदेश के किसान इन दिनों दिल्ली में केंद्र सरकार के नए कृषि क़ानून का विरोध कर रहे हैं। इसके लिए दिल्ली की सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में किसान जमा हुए हैं और वे लगातार धरने पर बैठे हुए हैं।  किसानों ने केंद्र सरकार के साथ बातचीत भी की लेकिन किसान नेताओं ने सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। ये किसान नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

इस संबंध में भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के राज्य उपाध्यक्ष जोगिंदर सिंह दयालपुरा और मानसा के अध्यक्ष राम सिंह भैणीवाघा ने बताया कि गुरजंट सिंह गांव बछोआना के रहने वाले थे। पिछले दिनों वह कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन में शामिल हुए और खनौरी बॉर्डर से होते हुए दिल्ली पहुंचे थे।

कृषि कानूनों को रद करने के लिए किसानों का टिकरी बॉर्डर पर धरना लगातार सांतवें दिन भी जारी है। किसानों के इस आंदोलन का फैसला आज सरकार के साथ होने वाले चौथे दौर की वार्ता के बाद होगा। अगर सरकार ने किसानों की मांग मान कर कृषि कानूनों को रद कर दिया तो किसान आंदोलन को खत्म कर देंगे नहीं तो किसानों की ओर से चेतावनी दी गई है कि वे आंदोलन को और तेज करेंगे तथा दिल्ली के सभी रास्ते भी जाम कर सकते हैं। इस बार सरकार की ओर से सिर्फ पंजाब के किसान ही नहीं हरियाणा व अन्य राज्यों के किसानों के संगठन के पदाधिकारियों को भी वार्ता के लिए निमंत्रण दिया गया है। किसानों की तबीयत भी बिगड़ रही है और अब तक चार किसानों की मौत हो चुकी है।

इस वार्ता में किसानों की सिर्फ एक ही मांग है, कि तीनों कृषि कानून को रद किया जाए। किसान इस मांग पर पूरी तरह अटल हैं । बहादुरगढ़ के धरने पर बनाई गई 15 सदस्यीय कमेटी के सदस्य किसान राजेंद्र सिंह ने बताया कि वे अपनी तीनों मांग पूरी करवाकर ही मानेंगे अन्यथा आंदोलन को और तेज करेंगे।

वही बहादुरगढ़ में धरने पर बैठे किसान बीमार भी होने लगे है। बहादुरगढ़ में धरना में बैठे चार  की अब तक मौत हो चुकी है, हालांकि एक मैकेनिक की कार में जिंदा जलने से मौत हो गई थी तथा तीन किसानों की मौत बीमार होने से हो गई है। कल दो दिसंबर बुधवार रात को 2 किसानों की और तबीयत खराब हो गई, जिन्हें सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनमें से एक की हालत गंभीर देखते हुए पीजीआई रोहतक रेफर कर दिया गया। यहां उन्‍होंने आखिरी सांस ली। बीते 26 नवंबर को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई।  जिसके बाद गंभीर हालत में उन्हें बहादुरगढ़ लाया गया  इसके बाद उन्हें हिसार और फिर टोहाना इलाज के लिए रेफर किया गया लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। आंदोलन में किसान अपनी जान गंवा रहे हैं लेकिन मोदी सरकार को इसकी कोई फिक्र नहीं है। किसानों की  मांग  है कि आंदोलन में शहीद होने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा व परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।

अपने घरों से दूर, सर्दियों से बेपरवाह दिल्ली के बॉर्डर पर डटे किसानों का कहना है कि वे लंबे संघर्ष के लिए तैयार हैं।  जब तक उनकी मांगें मान नहीं ली जातीं तब तक वे हटेंगे नहीं।  इसके लिए उनको महीनों तक सड़कों पर बिताना पड़े तो वो पीछे नहीं हटेंगे।  इसके लिए राशन से लेकर दवाईयों तक हर चीज का इंतजाम है।

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