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किसान नेताओं में फूट की आशंका

केंद्र सरकार द्दारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान पिछले 79 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए है। केंद्र सरकार से हर बार वार्ता वेनतीजा रही है। हालांकि इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने मंचो से तीनों कृषि कानूनों को किसान के लिए हितकारी बताया है। लेकिन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के काफी किसान बिलों को रद्द करने की मांग कर रहे है। 26 जनवरी की घटना के बाद यहां आंदोलन टूटने की कगार पर आ गया था, लेकिन राकेश टिकैत के आंसुओं ने वापिस आंदोलन में जान डाल दी थी। जिसके बाद आंदोलन दोबारा हरा-भरा हो गया है, आंदोलन के दोबारा हरा-भरा होने के पीछे राकेश टिकैत की आंखो से निकले आंसू को बताया जा रहा है। इसके बाद राकेश टिकैत काफी तेजी से किसानों के मसीहा के रूप में ऊभरें। हरियाणा के अलग-अलग जिलों में किसान महापंचायत के मंचो पर राकेश टिकैत को संबोधन का मौका दिया गया। हरियाणा के ज्यादातर किसान राकेश टिकैत के पक्षधर है।

हरियाणा के खाप प्रतिनिधि आंदोलन में पंजाब के नेताओं की राजनीति और सरकार गिराने की बात का पहले ही विरोध कर चुके हैं। भले ही आंदोलन में किसान एकता के नारें लगते हो, लेकिन अब किसान आंदोलन दो धड़ो में बढ़ता नजर आ रहा है। 26 जनवरी से पहले यहां राकेश टिकैत की कोई चर्चा नहीं होती थी, लेकिन अब यहां आने वाले ज्यादातर लोग टिकैत की ही बातें करते हैं। आंदोलन में टिकैत के बढ़ते दबदबे को देखते हुए पंजाब के किसान नेताओं की बेचैनी जरूर बढ़ी है। भाकियू के नेता राकेश टिकैत ने अपने एक बयान में सरकार को 4 अक्टूबर तक का अल्टीमेटम दिया है, लेकिन भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी राकेश टिकैत की इस बात से सहमत नहीं हुए, उन्होंने कहा कि जब तक सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापिस नहीं लेगी, तब तक हम आंदोलन को जारी रखेंगे।

पिछले दिनों उनका एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें वे टिकैत की खिलाफत करते दिख रहे हैं। हालांकि बाद में उनकी ओर से इसे पुराना वीडियो बताया गया था। आंदोलन स्थल पर राकेश टिकैत के नाम के पोस्टर, टीशर्ट, कप इत्यादि दबाकर बिक रहे है। हरियाणा और स्थानीय लोगों की भागीदारी बढ़ने से पंजाब से आए लोग और किसान नेता उत्साहित जरूर हैं, लेकिन इनके आने से अब कुंडली बार्डर पर भी राकेश टिकैत का दबदबा बढ़ता दिख रहा है। आंदोलन को दोबारा खड़ा करने में टिकैत साहब की प्रमुख भूमिका रही है, इसलिए अब लोगों में उनकी अलग छवि बनी है और उनके नाम लोग कृषि कानूनों के विरोध में इकट्ठे हो रहे हैं।

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