देश के हर कोने में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं। पिछले दो महीनों से महिलाएं इस कानून के खिलाफ जमी हुई हैं। इसी बीच 11 फरवरी को हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार असग़र वज़ाहत शाहीन बाग में प्रदर्शन कर रही महिलाओं को लेकर दिए अपने पर ट्रोल हो गए। सोशल मीडिया पर उनके वक्तव्यों के लिए जमकर आलोचना हो रही है।
दरअसल, असग़र वज़ाहत ने 11 फरवरी को फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा जिसमें उन्होंने कहा, “दो-तीन दिन पहले अपने मित्र प्रोफेसर एस. के. जैन के साथ शाहीन बाग़ गया था। वहां मैंने महिलाओं को बैठे हुए देखा। बड़ी खुशी हुई कि भारत के संविधान को बचाने के लिए महिलाएं इतनी तकलीफ उठा रही हैं। लेकिन यह भी मन में आया कि अगर ये महिलाएं केवल बैठी न रहतीं बल्कि कुछ करती होतीं, जैसे बर्फीले पहाड़ों पर तैनात भारतीय सिपाहियों के लिए स्वेटर या दस्ताने बुनती होतीं तो शायद और अच्छा होता है।”
दो-तीन दिन पहले अपने मित्र प्रोफेसर एस. के. जैन के साथ शाहीन बाग़ गया था। वहां मैंने महिलाओं को बैठे हुए देखा। बड़ी खुशी…
Posted by Asghar Wajahat on Tuesday, 11 February 2020
शाहीन बाग की महिलाओं के हत्यारे उधर भी हैं इधर भी हैं!जिन्हें मसीहा होना था वे तो निरे निठल्ले नासेह हो गए हैं!कुछ…
Posted by Bodhi Sattva on Tuesday, 11 February 2020
असग़र वज़ाहत के इस पोस्ट का जहां कई लोगों ने समर्थन किया है वहीं कुछ लोगों ने उनका जमकर विरोध किया। ट्रोल हो रहे वजाहत को लेकर एक व्यक्ति ने लिखा, “कुछ घृणित लोगों ने शाहीन बाग की महिलाओं का भाव लगाकर अपमानित किया। लेकिन जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष श्री असग़र वज़ाहत जी ने तो उन महिलाओं को लगभग आराम तलब या निठल्ली ही कह दिया। यह उन शानदार महिलाओं का अपमान नहीं तो और क्या है?”
जिन महिलाओं के पक्के इरादों और हौसलों से निकले आंदोलन ने एक ताकतवर और अहंकारी सत्ता समूह की आपराधिक और सांप्रदायिक…
Posted by Amitaabh Srivastava on Wednesday, 12 February 2020
इस विवाद पर एक व्यक्ति लिखा, “जिन महिलाओं के पक्के इरादों और हौसलों से निकले आंदोलन ने एक ताकतवर और अहंकारी सत्ता समूह की आपराधिक और सांप्रदायिक चुनावी रणनीति का पूरा तानाबाना उधेड़ कर रख दिया, उनसे ‘खाली न बैठकर स्वेटर बुनने’ की बात कहना नासमझी ही कही जाएगी।” एक और यूजर ने कहा, “इस तरह लिख कर आप महिलाओं का और उनके आंदोलन का अपमान कर रहे हैं। आपको अपनी बात वापस लेनी चाहिए।”
वहीं कुछ लोगों ने असग़र वज़ाहत के समर्थन में भी लिखा है। एक अंशू माली रस्तोगी नाम के एक यूजर ने ट्वीट किया, “असग़र वज़ाहत साहब को जिस तरह और जिस भाषा के साथ ट्रोल किया जा रहा है, इससे साफ पता चलता है कि वाम बुद्धिजीवियों ने अपने विवेक और सोच-विचार को तहखाने में डाल उस पर जड़-बुद्धि का ताला जड़ दिया है।”
असगर वजाहत साहब को जिस तरह और जिस भाषा के साथ ट्रोल किया जा रहा है, इससे साफ पता चलता है कि वाम बुद्धिजीवियों ने अपने विवेक और सोच-विचार को तहखाने में डाल उस पर जड़-बुद्धि का ताला जड़ दिया है। खैर…।
— Anshu Mali Rastogi (@anshurstgi) February 13, 2020
दूसरी तरफ अजंता देव नाम की एक महिला ने अपनी इस कविता के साथ असग़र वज़ाहत को प्रतिक्रिया दी, “बैठी नहीं, खड़ी है/ ख़ाली नहीं,भरी है/ अब बुनेगी नहीं, उधेड़ेगी। असग़र वज़ाहत साहेब
बैठी नहीं, खड़ी हैख़ाली नहीं,भरी हैअब बुनेगी नहीं ,उधेड़ेगी ।#असगरवजाहत साहेब
Posted by Ajanta Deo on Wednesday, 12 February 2020
असग़र वज़ाहत जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्यापक हैं। हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में साठोत्तरी पीढ़ी के बाद के महत्त्वपूर्ण कहानीकार हैं। वजाहत नाटक, यात्रा-वृत्तांत, कहानी, उपन्यास, फिल्म और चित्रकला जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रचनात्मक योगदान दे चुके हैं। इन्हें कई पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। उनके नाटक ‘जिन लाहौर नईं वेख्या ओ जम्याइ नईं’ और गोडसे@गांधी.कॉम बेहद चर्चित और विवादित रही है।
73 साल के असग़र वज़ाहत के द्वारा की गई शाहीन बाग की महिलाओं के प्रति आश्चर्य में डाल देता है क्योंकि जामिया मिल्लिया इस्लामिया के लाइब्रेरी में पुलिस की ओर से किए गए बर्बरता पर जब उनसे एक पत्रकार ने सवाल पूछा था तो उन्होंने साफ कहा था, “अगर पुलिस वास्तव में मानती है कि परिसर के अंदर अराजक तत्व मौजूद थे, तो स्थिति से निपटने के लिए अन्य तरीके हो सकते थे। बच्चों को आतंकित करना, लाइब्रेरी को नुकसान पहुंचाना, लड़कियों की पिटाई करना…ये सब देखना दर्दनाक था। हम डरे हुए हैं कि सरकार एएमयू की तरह हमें भी बंद करने के बहाने ढूंढ रही होगी। यह आसान भी है क्योंकि हमें केंद्र सरकार द्वारा फंड मिलता है।” बता दें कि असग़र वज़ाहत खुल कर अपनी बात रखने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में इस तरह की टिप्पणी आने से साहित्यिक जगत में ही नहीं पूरे देश में विवाद का कारण बने हुए हैं।