उत्तर प्रदेश के बिजनौर के एक छोटे से कस्बे से आने वाले सलीम अमहद ने 13 साल की उम्र में नकली बाल बनाने का काम सीखा। शून्य से कारोबार शुरू करने वाले सलीम ने यह कभी नहीं सोचा था कि वे कभी 1 हजार लोगों को रोजगार देने के साथ एक दिन नकली बालों के असली कारोबारी बन जाएंगे
‘कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, ‘एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो…!’ इस कथन को चरितार्थ करने का जज्बा रखा एक 14 साल के बच्चे ने। जिसने अपने बचपन में बेहद तंगी देखी है। जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बिजनौर निवासी सलीम अहमद की। उसके इस तंगी से बाहर निकलने के जज्बे ने उसे न सिर्फ करोड़ों रुपए के कारोबार का मालिक बना दिया, बल्कि महिलाओं के एक बड़े वर्ग को कारोबार में शामिल कर एक मिसाल कायम की है।

सलीम जब महज 14 बरस के थे तो घर के हालातों के चलते उन्होंने काम करना शुरू किया। पढ़ाई-लिखाई की उम्र में घर संभालने की जिम्मेमदारी ने उन्हें किताबों से दूर कर दिया, पापा की कमाई घर के सदस्यों के हिसाब से बेहद कम थी। गुजर-बसर करके घर में तमाम काम होते लेकिन बड़े भाई की अचानक हुई मौत ने उन्हें घर चलाने के लिए मजबूर कर दिया। काम की तलाश में निकला वह 14 साल का बच्चा नकली बालों की विंग बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने काम भी सीखा और घर खर्च में भी मदद की लेकिन दिमागी रूप से तेज होने के कारण उन्होंने इस काम में महारत हासिल कर ली। अपने काम में माहिर और बुद्धि के तेज होने के चलते उन्होंने कम समय में ही काम में अच्छी पकड़ बना ली। लेकिन मुश्किलों का दौर अभी खत्म नहीं हुआ था। काम सीखने और पैसे कमाने का जरिया कुछ साल ही चला। कंपनी को देश में इन्वेस्टर्स न मिलने के कारण कंपनी के मालिक मुल्क छोड़ कर चले गए और कारोबार पूरी तरह से बंद हो गया।
बढ़ती पैसे की किल्लतों को देखते हुए सलीम ने खुद विग बनाने का कारोबार करने की ठानी। लेकिन यह इतना आसान नहीं था, उन्हें इतना बड़ा कारोबार करने की अभी पूरी तरह समझ भी नहीं थी। वे बताते हैं कि ‘क्योंकि मेरी उम्र बेहद छोटी थी और मेरे पास दूसरा काम सीखने की मोहलत भी नहीं थी। इसलिए मैंने इसी काम में आगे बढ़ने की सोची और धीरे-धीरे विग का कारोबार करने के लिए लोगों को जानना शुरू किया और उनसे कॉन्टेक्ट बनाए। शुरू में यह बेहद मुश्किल रहा, मैं केवल 14 साल का था इसलिए लोग एक बच्चे पर विश्वास नहीं करना चाहते थे। 14 साल का दिखने के कारण मेरे अधिकतम प्रयास असफल रहे। जिनसे भी मैं बात करने जाता वे मुझे स्कूल जाकर पढ़ाई करने की सलाह देते या मेरी बात को टाल देते। इन कठिनाइयों के बावजूद भी मैंने हार नहीं मानी रोजाना मैं अपने प्रयासों में जुटा रहा और अलग-अलग जगहों में जाकर विग के लिए सामान इकठ्ठा करने की कोशिश करता रहा ताकि मैं इस कारोबार को कम से कम शुरू तो कर सकूं। समय बीता और मुझे मेरे कारोबार को बढ़ाने के लिए लोग मिलने लगे और हमारे इस कारोबार का काफिला बढ़ता गया।

नकली बालों के कार्यों में जुटी सलमा
सलीम बताते हैं कि ‘समय के साथ करोबार बढ़ा चुनौतियां भी बढ़ीं लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब वर्ष 2009 में चीन का माल तेजी से बढ़ने लगा। चीन की विग हमारे द्वारा बनाई गई विग से काफी उम्दाह थी। उनमें जाली जैसे कपडे़ का उपयोग किया गया था। जिससे विग पहनने वाले व्यक्ति की स्किन खराब नहीं होती थी। यह इतनी कम्फर्टेबल थी कि सभी ग्राहक इसकी ओर जाने लगे। देखते ही देखते हमारी मार्किट गिरने लगी और हमारा कारोबार तेजी से नीचे गिरने लगा। हमारे द्वारा बनाए गए उपभोक्ता भी चीन का माल लेने लगे मार्किट में यह इतनी तेजी से बढ़ने लगा कि देखते ही देखते हमारे सभी कॉन्टेक्ट मार्किट से खत्म होने लगे। मैंने चीन का माल देखा तो वाकई वह बहुत अच्छा था मैंने उससे भी बेहतर माल बनाने की ठानी और उसकी तलाश में जुट गया। विग के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला नेट का कपड़ा बाजार में कहीं उपलब्ध नहीं था। चीन से मंगवाने पर वह बेहद महंगा पड़ रहा था। इसलिए मैंने बाजार में मच्छर से बचने के लिए इस्तेमाल करने वाली नेट खरीदी और उससे विग बना चीनी माल को टक्कर देने निकल पड़ा।
मार्किट में छाए चीन के माल को टक्कर देना उस समय बेहद मुश्किल था लेकिन हिम्मत और जज्बा मुझे बाजार की तरफ ले गया। मैंने बाजार के तमाम उपभोक्ताओं को अपना माल दिखाया। बाजार के सभी लोगों को मेरी द्वारा बनाई गई विग बेहद पसंद आई और धीरे-धीरे दोबारा हमने अपने कारोबार को पहले से भी ज्यादा सफल बनाया। आज यह कारोबार न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी एक्सपोर्ट किया जाता है।
महिलाओं के लिए बने मसीहा सलीम ने अपने कारोबार की शुरुआत केवल 200 रुपये से की थी लेकिन आज यह अपने कारोबार से करोड़ों की कमाई करते हैं। सलीम बताते हैं कि ‘इस काम के शुरुआती दिनों में ही मैंने अपनी बहनों को अपने साथ काम करने के लिए लगाया फिर जैसे-जैसे काम तरक्की पकड़ता गया वैसे-वैसे हमने महिलाओं को इसमें शामिल किया। बिजनौर के गांव में हम महिलाओं को उनके घर पर ही काम देते हैं। हमारे कारीगर उनके घरों में कार्य पंहुचा कर आते हैं। महिलाएं अपने घर में रह कर यह काम करती हैं। काम होने पर लेकर भी आते हैं। इससे महिलाओं का मनोबल भी बढ़ता है और उन्हें समाज की बातें भी नहीं सुननी पड़ती और वे घर बैठे-बैठे आय भी अर्जित करती हैं। आज हमारे पास बहुत-सी ऐसी महिलाएं हैं जो हमारे साथ काम करना बेहद पसंद करती हैं और वे अपनी आय के जरिये को भी सकुशल मानती हैं। वे अपनी आत्मनिर्भरता और अपनी सक्षमता को एक बड़े मुकाम पर लेजा रही हैं।

महिलाएं बन रहीं सक्षम
सलीम बताते हैं कि ‘लगभग 1 हजार लोग उनके साथ काम करते हैं और उनमें से लगभग 98 प्रतिशत महिलाएं हैं।’ सलीम मानते हैं कि जरूरतमंद महिलाओं की मदद करना उन्हें कारोबार देना उनके लिए बेहद गर्व की बात है। सलीम की फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं में से कुछ महिलाओं से हमने बात की जिनमें मीनू नाम की महिला ने बताया कि ‘वैं इस काम के जरिए अपने सपनों के साथ-साथ घरवालों के लिए भी कुछ कर पा रही हूं।’
दूसरी महिला निशा बताती हैं कि ‘मैं यहां पिछले चार साल से काम कर रही हूं। इससे पहले मेरे घर का खर्च सही से नहीं चल पाता था, लेकिन यहां पर जब से काम करना शुरू किया तब से न केवल जरूरतें पूरी हो रही हैं बल्कि भविष्य के लिए थोड़ी-बहुत पूंजी भी जमा हो जाती हैं।’ यहां काम करने वाली सभी महिलाएं अपने आप में ही सक्षम हैं वे न केवल अपनी, बल्कि अपने परिवार की भी जिम्मेदारी उठा रही हैं। इन महिलाओं में कुछ कुंवारी लड़कियां, माएं, एकल माएं और घरेलू महिलाएं भी हैं।
इन्हीं में से गृहणी सलमा बताती हैं कि ‘मेरे शोहर साइकिल का काम करते हैं। जिससे हमारा घर चलना बेहद मुश्किल होता था, घर की परेशानियों से सलीम भाई के यहां काम करना शुरू किया अब मैं अपने घर और अपने काम दोनों को अच्छी तरह संभाल रही हूं। यहां काम करके मैं अपने पति की मदद भी कर पा ही हूं। ऐसी कई महिलाएं हैं जो अपने घर को चला रही हैं। इसमें कई एकल माताएं भी हैं।’
शमा की उम्र 28 साल है वह एक एकल मां हैं। शादी के बाद शोहर के निधन के बाद से वह अपने मायके में रह रही हैं। वह अपने भाई-बहन, मां-बाप के साथ रहती हैं। उनका एक बच्चा भी है। अपने पति के निधन के बाद से काम कर रही हैं और अपने बच्चे के लिए मां और बाप दोनों का कर्तव्य निभा रही हैं। वह कहती हैं ‘हमें सलीम भाई के साथ काम करके कभी एक मालिक जैसा महसूस नहीं होता। वह हमें परिवार की तरह ट्रीट करते हैं।’