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शोषण का शिकार ‘गन्ना किसान’

सूबे का गन्ना किसान शोषण का शिकार बना हुआ है। उसकी यह दयनीय दशा सिर्फ मौजूदा योगी सरकार के कार्यकाल के चलते नही  अपितु पिछली कई सरकारों के कार्यकाल से ही चली आ रही है। सूबे का गन्ना किसान कभी गन्ना समितियों द्वारा ठगा जाता रहा है तो कभी चीनी मिल मालिकों के शोषण का शिकार बनता रहा है। रही बात जिम्मेदार राज्य सरकारों की तो गन्ना किसान कभी भी उसकी प्राथमिकता पर नहीं रहा है। यह दीगर बात है कि यूपी में गन्ना किसानों और उनके परिजनों की जनसंख्या लगभग 50 लाख का आंकड़ा छूती है, फिर भी राज्य सरकारों के समक्ष गन्ना किसान अब तब उपेक्षित ही रहा है। 
यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश का गन्ना किसान त्राहिमाम्-त्राहिमाम् कर रहा है लेकिन सरकार है कि गन्ना किसानों की दुर्दशा देखकर भी नहीं पसीजती। चार वर्ष से अधिक का कार्यकाल समाप्त हो जाने के पश्चात जब लोकसभा चुनाव की तैयारियां अपने अंतिम चरण में पहुंची तो भाजपा को गन्ना किसान भी याद आ गए। हाल ही में केन्द्र सरकार ने गन्ना किसानों के भुगतान के लिए 1540 करोड़ रुपए अवमुक्त किए हैं। पूरे देश के गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर 22 हजार करोड़ का बकाया है। सिर्फ उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का ही 13000 करोड़ से ज्यादा बकाया है। इस तरह से देखा जाए तो यह रकम ऊंट के मुंह में जीरा समान है। इस रकम से कितने किसानों का भला होगा! इसका आंकलन सरकार को स्वयं ही कर लेना चाहिए। कहना गलत नहीं होगा कि इस बार भी खासतौर से यूपी का गन्ना किसान आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए विवश हो जायेगा। बताते चलें कि चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का ये बकाया गत वर्षों का नहीं अपितु पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। स्थिति यह है कि सरकार की लापरवाही के चलते गन्ना किसान कर्ज के बोझ तले आत्महत्या तक करने को मजबूर है लेकिन सरकार की नीतियां गन्ना किसानों के हित को लेकर संजीदा नजर नहीं आती। सच तो यह है कि चीनी मिलें मुनाफा कमाने के बावजूद गन्ना किसानों का नियमित रूप से भुगतान करने में की इच्छा नहीं रखतीं और सरकार सब कुछ जानकर भी अनजान बनी हुई है। यह भी जान लेना जरूरी है कि ऐसा तब है जब सरकार गन्ना किसानों के भुगतान के लिए चीनी मिलों को कर्ज के रूप में आर्थिक मदद भी देती रही है वह भी ब्याज मुक्त। हाल ही में केन्द्र सरकार की तरफ से 1540 करोड़ की जो रकम अवमुक्त की भी गयी है उसे पिछले वर्ष ही अवमुक्त होकर गन्ना किसानों को मिल जाना चाहिए था लेकिन ऐन लोकसभा चुनाव तैयारियों के दौरान इस रकम का अवमुक्त किया जाना कहीं न कहीं सरकार की नीयत पर संदेह करने के लिए काफी है। वैसे भी उक्त रकम से यूपी के गन्ना किसानों का इस बार भी कोई भला होने वाला नहीं। 13000 करोड़ के सापेक्ष मात्र 1540 करोड़ रुपए अवमुक्त किया जाना न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता जबकि यह रकम पूरे देश के गन्ना किसानों के लिए अवमुक्त गयी है।
गन्ना किसानों के करीब 12 हजार करोड़ बकाये में से केवल 15 सौ करोड़ मोदी सरकार द्वारा देना ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के समान ही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों को उनकी फसल की लागत से डेढ़ गुणा कीमत देने का वादा किया था, वह वादा भी पूरा नहीं हुआ। गन्ना किसान हमेशा ठगे जाते हैं। चीनी मिल के घाटे में जाने का सबसे बड़ा कारण बीजेपी सरकार की नीति है। क्योंकि देश में गन्ना की बंपर पैदावर से चीनी के रिकॉर्ड स्टॉक देश में है। फिर भी सरकार चीनी आयात कर रही है। जिससे चीनी के दाम गिर गए हैं।

राजकुमार भाटी, प्रवक्ता सपा

इन परिस्थितियों में यदि बात सिर्फ उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की हो तो उत्तर प्रदेश की गन्ना समितियांे में 48.84 लाख गन्ना किसान पंजीकृत हैं, इनमें से लगभग 33 लाख गन्ना किसान ऐसे हैं जो नियमित रूप से गन्ना समितियों के माध्यम से चीनी मिलों को गन्ना आपूर्ति करते हैं। बताते चलें कि गन्ना समितियों का दायित्व गन्ना किसानों और चीनी मिलों के बीच समन्वय स्थापित कराते हुए समय से गन्ना किसानों द्वारा चीनी मिलों को गन्ना उपलब्ध करवाना और चीनी मिलों से गन्ना किसानों को समय पर भुगतान शुनिश्चित करवाना है। नियम तो ये हैं कि चीनी मिल पर गन्ना पहुंचने के बाद जिस तारीख को पर्ची मिलती है उस तारीख से 14 दिनों के भीतर गन्ना किसानों का भुगतान हो जाना चाहिए, स्थिति यह है कि हजारों गन्ना किसानों का भुगतान कई-कई वर्षों से लम्बित पड़ा है। रही बात उस गन्ना समितियों के हस्तक्षेप की जिनका गठन ही गन्ना किसानों के हितों की देखभाल करना है वे स्वयं चीनी मिल मालिकों से मिली हुई हैं। यहां भी रिश्वत की परम्परा अपने धर्म का निर्वहन कर रही है। चीनी मिलों की तरफ से गन्ना समितियों को नियमित रूप से सिर्फ इस बात के लिए रिश्वत भेजी जाती है ताकि वे गन्ना किसानों के भुगतान को लेकर जल्दबाजी न करें और जो गन्ना किसान भुगतान पाने की जल्दबाजी कर रहा हो उसे येन-केन-प्रकारेण मनाने की कोशिश करें और हो भी कुछ ऐसा ही रहा है। गन्ना किसान वर्षों से अपना भुगतान पाने के लिए गन्ना समितियों और चीनी मिल मालिकों के चक्कर लगा रहा है लेकिन उसे भुगतान पाने में छींके आ रही हैं। गौरतलब है कि चीनी मिल मालिकों और गन्ना किसानों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए उत्तर प्रदेश में ही 169 सहकारी गन्ना समितियां काम कर रही हैं तो दूसरी ओर 28 चीनी मिल समितियां भी पंजीकृत होकर कार्य कर रही हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 116 चीनी मिलें अपनी पूरी क्षमता के साथ गन्ना पेराई का काम करती हैं।
अब चीनी मिलों की दलीलें भी सुन लीजिए! चीनी मिलों का कहना है कि इस बार रिकाॅर्ड गन्ना उत्पादन के कारण चीनी के दामों में बेहद गिरावट आयी है लिहाजा गन्ना किसानों का भुगतान किए जाने में असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने चीनी मिल मालिकों की तो गुहार सुनकर उन्हें हर तरह की मदद का भरोसा दिलाया है लेकिन गन्ना किसानों के प्रति सरकार का ढुलमुल रवैया चिंता का विषय बना हुआ है। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने सहकारी चीनी मिलों में डिस्टिलरियों की स्थापना किए जाने की बात कही है। इसका उद्देश्य सहकारी चीनी मिलों की दशा सुधारना है। सरकार का मानना है कि डिस्टिलरियों की स्थापना से एथेनाल का उत्पादन बढेगा और मिलों की आय में वृद्धि होगी। कहा तो यही जा रहा है कि चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति सुधरने से गन्ना किसानों का नियमित भुगतान भी होगा लेकिन इसकी उम्मीदें कम ही नजर आती हैं। जो कार्य पिछले कई दशकों से नहीं हो सका वह चन्द महीनों में कैसे हो पायेगा? इसका जवाब किसी अधिकारी के पास नहीं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने सहकारी चीनी मिलों की डिस्टिलरियों में कम्पोस्ट पर आधारित ‘जीरो लिक्विड डिस्चार्ज’ संयत्र स्थापित किए जाने के निर्देश दिए हैं। सरकार का मानना है कि इससे प्रदूषण नियंत्रण तो होगा ही साथ ही उच्च गुणवत्ता वाली कार्बनिक खाद का उत्पादन गन्ना किसानों को लाभ देगा। सरकारी दावों की मानें तो इस तरह से बनी खाद गन्ना किसानों को सस्ती दरों पर उपलब्ध करवायी जायेगी जिससे भूमिगत जल का संरक्षण भी हो सकेगा।
इस क्रम में प्रदेश के प्रमुख सचिव (चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास) संजय आर. भूसरेड्डी का कहना है कि सहकारी क्षेत्र की चीनी मिल स्नेहरोड (बिजनौर) में 40 के.एल.पी.डी. और सठियांव (आजमगढ) में 30 के.एल.पी.डी. क्षमता की 2 नई डिस्टिलरियों की स्थापना प्रदेश सरकार द्वारा कराई जा चुकी है। इसके अतिरिक्त प्रदेश की सहकारी चीनी मिलों की 6 डिस्टिलरियों में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के क्रम में ‘‘जीरो लिक्विड डिस्चार्ज‘‘ संयत्र की स्थापना कराई जा रही है ताकि इनमें भी एथेनाल उत्पादन प्रारम्भ हो सके। डिस्टिलरियों के संचालित होने से प्रदेश में एथेनाल उत्पादन में वृद्धि होगी जिससे एक ओर चीनी मिलों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और उनके पास पर्याप्त धन उपलब्ध होने पर वे किसानों के गन्ना मूल्य का भुगतान सुगमता से कर सकेगी।
उपरोक्त सरकारी दावों में गन्ना किसानों के भुगतान को लेकर कहीं कोई बात नहीं कही गयी है। समस्त योजनाएं सहकारी चीनी मिलों को लाभ पहुंचाए जाने के बाबत तैयार की हुई प्रतीत होती हैं।
एक जानकारी के अनुसार यूपी में लगभग 50 लाख से ज्यादा किसानों में से अधिकांश किसान गन्ने की खेती करते हैं इसके बावजूद वोट बैंक की राजनीति करने वालों को गन्ना किसानों की दुर्दशा नजर नहीं आती। ब्याजमुक्त कर्ज और टैक्स की माफी सिर्फ चीनी मिलों तक ही सीमित है जबकि इस सुविधा के असली हकदार प्रदेश का गन्ना किसान है जो तंगहाली में कर्ज लेकर गन्ना उत्पादन करने के बावजूद वर्षों तक अपने भुगतान की राह ताकता रहता है

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