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थम नहीं रहा कांग्रेस से पलायन

चुनावी हार और दरकते जनाधार के बीच अब तक सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही कांग्रेस लगातार बिखरती जा रही है। हाल ही में संगठन के भीतर ‘बड़े सुधारों’ की घोषणाओं के बाद भी नेताओं का पार्टी से पलायन का सिलसिला जारी है। पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में नया नाम दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद का है। ऐसे में कहा जा रहा है कि पार्टी से नेताओं का पलायन नहीं रोका गया तो साल के अंत में गुजरात, हिमाचल प्रदेश और अगले साल होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों सहित 2024 में पार्टी को इसका खामयाजा भुगतना पड़ेगा

कांग्रेस का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास से जुड़ा हुआ है। इस पार्टी का गठन वर्ष 1885 में एलन ओक्टेवियन ह्यूम ने किया था। उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी। पिछले कुछ वर्षों से सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली इस पार्टी के बहुत बुरे दिन चल रहे हैं। पार्टी का नेतृत्व किन हाथों में हो, इस मुद्दे पर नेताओं का आपसी घमासान थम नहीं पा रहा है। आगामी दिनों में यह घमासान और तेज होने के आसार हैं। ऐसा इसलिए कि न तो असंतुष्ट नेता अपने कदम पीछे खींचने को तैयार हैं और न ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व अध्यक्ष राहुल उनकी बात मानने के मूड में दिखाई देते हैं। नतीजन चुनावी हार और दरकते जनाधार के बीच अब तक सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही कांग्रेस लगातार बिखरती नजर आ रही है और हाल ही में संगठन के भीतर ‘बड़े सुधारों’ की घोषणा के बाद भी नेताओं का पार्टी से पलायन का सिलसिला थम नहीं रहा है। पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में नया गुलाम नबी आजाद का है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा से मुकाबला करने के लिए जहां कांग्रेस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाल रही है वहीं उसका घर टूटते जा रहा है। पार्टी अपने भीतर की लड़ाई से ही पार पाने में असमर्थ नजर आ रही है। पार्टी से नेताओं का लगातार पलायन जारी है।

हालत यह है कि पार्टी के भीतर कांग्रेसजन कोई है नहीं, सब दूसरे दलों में भाग गए हैं। गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव और कई अन्य युवा नेता कांग्रेस छोड़ चुके हैं। पार्टी पलायन करने वालों में सबसे ज्यादा ‘राहुल टीम’ के लोग हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि कांग्रेस 2024 से पहले लोगों का भरोसा कैसे जीत पाएगी। राजनीतिक विश्लेषक सवाल कर रहे हैं कि एक तरफ पार्टी जहां ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की तैयारी कर रही हैं, वहीं पार्टी खुद टूट रही है। पार्टी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पहले ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ की जरूरत है। कई तथ्य इस बात की पुष्टि भी करते हैं। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की रिपोर्ट के अनुसार 2014 और 2021 के बीच हुए चुनावों के दौरान 222 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी। वहीं, इस दौरान 177 सांसद और विधायक पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। स्थिति यह है कि पिछले 8 महीने के दौरान ही कपिल सिब्बल, आरपीएन सिंह, अश्विनी कुमार, सुनील जाखड़, हार्दिक पटेल, कुलदीप बिश्नोई जैसे बड़े नेता कांग्रेस का हाथ छोड़ चुके हैं। पूर्वोत्तर में असम से लेकर पश्चिम में गुजरात तक, उत्तर में जम्मू-कश्मीर से लेकर दक्षिण में केरल, तमिलनाडु तक पार्टी के दिग्गज नेता साथ छोड़ चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस भाजपा से कैसे मुकाबला करेगी। वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। मौजूदा स्थिति को देखें तो विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2024 में अगर बीजेपी को सत्ता से दूर रखना है तो विपक्ष को एकजुट होना होगा। कई विश्लेषक मानते हैं क्षेत्रीय दलों की स्थिति और महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए कांग्रेस को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। 2014 से पहले कांग्रेस ने जिस तरह से यूपीए सरकार चलाई थी, उसके लिए उसे फिर से अगुवाई करनी होगी। इसके उलट जहां कांग्रेस दूसरों को एकजुट करती, उससे अपना ही घर नहीं संभल रहा है। ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को किस बूते मात दे पाएगी। हाल ही में कांग्रेस से आजाद हुए गुलाम नबी आजाद ने करीब पांच दशक बाद कांग्रेस को अलविदा कह दिया है। आजाद ने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए अपने इस्तीफे में आरोप लगाया कि यह सब इसलिए हुआ क्योंकि बीते आठ वर्षों में नेतृत्व ने एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी पर थोपने का प्रयास किया जो गंभीर नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि दरबारियों के संरक्षण में पार्टी चलाया जा रहा है। देश के वास्ते सही चीजों के लिए संघर्ष करने की अपनी इच्छाशक्ति और क्षमता खो चुकी है। पार्टी में बदलाव की मांग करने गुलाम नबी आजाद जी-23 समूह का हिस्सा रहे थे। आजाद ने पार्टी में संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया को ‘धोखा’ करार दिया है। उन्होंने कहा कि देश में कहीं भी, पार्टी में किसी भी स्तर पर चुनाव संपन्न नहीं हुए। कांग्रेस में जी-23 गुट के प्रमुख नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल ने इसी साल मई में पार्टी छोड़ दी थी। सिब्बल ने समाजवादी पार्टी की साइकिल की सवारी करना मुफीद समझा। सपा के टिकट पर वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए। पार्टी से इस्तीफा देने से पहले सिब्बल लगातार मिल रही चुनावों में हार का ठीकरा पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सिर पर फोड़ा था। गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए सिब्बल ने पूछा था कि जब अध्यक्ष ही नहीं है तो फैसले कौन ले रहा है? इससे पहले चांदनी चौक से सांसद, यूपीए सरकार में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री भी रहे। उन्होंने कई बड़े मसलों पर सुप्रीम कोर्ट में पार्टी की पैरवी की थी। वहीं, पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाने पर उनके घर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तरफ से तोड़-फोड़ भी हुई थी।

पिछले दिनों उदयपुर में चिंतन शिविर के बीच पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी से अपना रिश्ता खत्म कर लिया था। जाखड़ का कांग्रेस से तीन पीढ़ियों का रिश्ता था। पंजाब में सीएम पद के दावेदार रहे जाखड़ को अनुशासन तोड़ने का दोषी करार देते हुए पार्टी की ओर से कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जाखड़ इससे काफी नाराज थे। वहीं, पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर में पहले पार्टी के कद्दावर नेता और प्रदेश के सीएम रहे अमरिंदर सिंह ने भी इस्तीफा दे दिया था। एक माह तक बगावती तेवर अपनाने के बाद उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेज कांग्रेस से किनारा कर लिया था। पंजाब से इस साल फरवरी में पार्टी को एक और झटका अश्विनी कुमार के रूप में लगा था। पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार 46 साल तक कांग्रेस के साथ थे। यूपी में पार्टी को चुनाव से ठीक पहले आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद और अदिति सिंह के रूप में झटके पर झटके लगे। राहुल के करीबी रहे आरपीएन सिंह इस साल जनवरी में यूपी चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। पार्टी ने उन्हें एक दिन पहले ही स्टार प्रचारक बनाया था। इससे पहले पिछले साल जून में वरिष्ठ कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे और राहुल की मंडली में शामिल जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। यूपी में ब्राह्मण चेहरे के रूप में पार्टी की पहचान रहे जितिन के जाने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था।

हार्दिक ने भी ली विदाई
गुजरात में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी को हार्दिक पटेल के रूप में बड़ा झटका लगा। हार्दिक ने पार्टी छोड़ते हुए आरोप लगाया था कि पार्टी देशहित और समाज हित के विपरीत काम कर रही है। वहीं, इससे पहले शंकर सिंह वाघेला ने भी पार्टी छोड़ी थी। कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को प्रदेश कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था। इससे पहले 2017 में कांग्रेस में बगावत हुई थी। उस समय शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस से इस्तीफे का ऐलान कर दिया था। उन्होंने कहा था कि आत्मसम्मान से समझौता नहीं कर सकता। हरियाणा में बिश्नोई ने दिया बड़ा घाव हरियाणा में कांग्रेस को कुलदीप बिश्नोई और अशोक तंवर के रूप में बड़ा झटका लग चुका है। इस महीने की शुरुआत में कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा है। पार्टी छोड़ते समय बिश्नोई ने कहा कि कांग्रेस अपनी विचारधारा से भटक गई है और अब वह इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय वाली पार्टी नहीं रही। कांग्रेस ने जून में हुए राज्यसभा चुनाव में बिश्नोई के क्रॉस वोटिंग करने के बाद उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटा दिया था। 4 बार के विधायक और दो बार के सांसद बिश्नोई पहले से ही पार्टी से नाराज चल रहे थे। इससे पहले दलित नेता अशोक तंवर ने भी पार्टी छोड़ दी थी। साल 2019 में अपने इस्तीफे के समय तंवर ने कहा था कि कांग्रेस के भीतर कुछ लोगों की वजह से पार्टी अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। तंवर ने इससे पहले पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए सोनिया गांधी के आवास के बाहर प्रदर्शन किया था।

कभी गांधी परिवार को देश की फर्स्ट फैमिली बताने वाले पीसी चाको का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया। पिछले साल केरल चुनाव के दौरान पीसी चाको ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। पीसी चाको 1998 से 2009 के बीच हुए 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच करने वाली जेपीसी का हिस्सा रहे थे। वहीं, तमिलनाडु से पार्टी की दिग्गज नेता जयंती नटराजन ने साल 2015 में पार्टी को अलविदा कहा था। जयंती ने अपने इस्तीफे में राहुल गांधी पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर कामकाज में दखल देने और पर्यावरणीय मंजूरी के संबंध में ‘विशेष अनुरोध’ करने का आरोप भी लगाया था। वहीं, गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस पार्टी के विधायक लुइजिन्हो फलेरो ने पिछले साल सितंबर में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने भी कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।

राजनीतिक पंडितों के मुताबिक कांग्रेस के घमासान में अंततः होगा वही जो सोनिया या राहुल कैंप चाहेगा, लेकिन फिलहाल असंतुष्ट नेताओं के बागी तेवरों से लग रहा है कि कांग्रेस के भीतर विरोधी गुट के रूप में एक और कांग्रेस पैदा हो गई है। इससे साल के अंत में गुजरात, हिमाचल प्रदेश और अगले साल होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2024 के आम चुनाव को लेकर कांग्रेस की स्थिति असहज और दयनीय बन गई है। पार्टी की कलह इन चुनावों में बहुत भारी पड़ेगी।

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