उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जलवा केवल यूपी में नहीं, पूरे देश में बढ़ रहा है। पीएम मोदी के बाद योगी भाजपा के सबसे बढ़े स्टार प्रचारक बन उभर चुके हैं। बिहार के विधानसभा चुनाव हों या फिर हैदराबाद का नगर निगम चुनाव, योगी की डिमांड चैतरफा है। चार बरस पहले तक लेकिन इन्हीं योगी आदित्यनाथ की पहचान और पकड़ उनके मठ तक सीमित थी। उत्तर प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेताओं में उन्हें शुमार नहीं किया जाता था। जाहिर है मात्र चार बरस में उनका बढ़ा राजनीतिक ग्राफ खांटी भाजपाइयों को रास नहीं आ रहा है। खबर है कि खांटी भाजपाइयों का एक बड़ा समूह हिन्दु युवा वाहिनी के इस नेता पर नकेल डालने के लिए सक्रिय हो चुका है। पार्टी सूत्रों की माने तो योगी को मुख्यमंत्री बनाए जाने के समय से ही खफा चल रहे उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या इस समय असंतुष्ट भाजपाइयों की धुरी बन चुके हैं। जानकारों का दावा है कि कुछ अर्सा पहले पार्टी द्वारा उत्तर प्रदेश में कराए गए एक सर्वेक्षण में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में भारी गिरावट से पार्टी आलाकमान चैंकना हो चुका है। हाथरस बलात्कार कांड भाजपा के प्रति दलित समाज में भारी नाराजगी का कारण बन चुका है तो राज्य में पार्टी का कोर वोट बैंक ब्राह्मण समाज भी योगी की कार्यशैली से खासा नाराज बताया जा रहा है।
यूं बने थे योगी मुख्यमंत्री
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने किसी भी नेता का चेहरा बतौर सीएम आगे नहीं किया था। प्रधानमंत्री पार्टी को अप्रत्याशित सफलता मिली। 403 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा ने 324 पर जीत दर्ज कर इतिहास रच डाला था। चुनाव बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की दौड़ तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्या और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के नाम चर्चा पर थे। मीडिया में खबरें चलने लगी थीं कि मनोज सिन्हा को सीएम का प्रोटोकाल दे दिया गया है। अचानक लेकिन योगी बाजी मार ले गए। तब खबर जोरों पर रही कि तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चलते संघ और पीएम की पसंद बताए जाने वाले मनोज सिन्हा के बजाए योगी सीएम बनाए गए हैं। सिन्हा ने तो पार्टी के आदेश को स्वीकार लिया, केशव मौर्या लेकिन इसे पचा नहीं पाए। हालांकि उनकी नाराजगी थामने की नीयत से उन्हें योगी मंत्रिमंडल में डिप्टी सीएम का दर्जा दिया गया, पावर सारी योगी ने अपने पास रख मौर्या की हैसियत कभी भी नंबर दो की नहीं होने दी।
दरअसल 2014 में जब उत्तर प्रदेश विधानसभा की कुछ सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे तब प्रचार के लिए गोरखपुर पहुंचे तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह योगी के मठ में ठहरे थे। कहा-समझा जाता है कि इस प्रवास के दौरान ही योगी-शाह के संबंध प्रगाढ़ हुए थे। मुख्यमंत्री तो योगी बन गए लेकिन केशव मौर्या संग संबंध सुधरे नहीं।
केशव संग टकराव का है रिश्ता
योगी आदित्यानाथ की ताजपोशी से खासे नाराज केशव मौर्या ने योगी को ‘बाहरी’ रह प्रदेश सरकार के शुरूआती दिनों में ही साफ कर दिया था कि उन्हें योगी का नेतृत्व कत्तई स्वीकार नहीं होगा। योगी ने भी केशव मौर्या को सरकार में महत्व न देकर इस शीत युद्ध की ताप को बढ़ाने का काम किया। मुख्यमंत्री ने प्रदेश की जनता को सत्ता संभालने के साथ ही ‘गड्ढा रहित’ सड़कों को तीन माह में दुरस्त करने का वादा कर डाला। मौर्या राज्य के पीडब्ल्यूडी मंत्री हैं। उन्हें यह घोषणा करते समय विश्वास में नहीं लिया गया। जब तीन महीनों के भीतर इस वायदे को हकीकत में नहीं बदला जा सका तो असफलता का ठीकरा मौर्या के माथे फोड़ दिया गया। उत्तर प्रदेश में दश्काों से सत्ता का केंद्र शास्त्री भवन का पंचम तल रहा है। इस तल में मुख्यमंत्री का कार्यालय है। योगी ने जब नए बने लोकभवन में बैठने का निर्णय लिया तब मौर्या ने शास्त्री भवन के पंचम तल में बने सीएम कक्ष में बैठना चाहा जिसके लिए योगी ने मना कर दिया। फिर आया योगी सरकार के सौ दिन पूरे होने पर जारी की गई एक बुकलेट का विवाद। इस किताब में तमाम मंत्रियों की तस्वीरें तो थी लेकिन डिप्टी सीएम मौर्या की एक भी तस्वीर नहीं प्रकाशित की गई थी। विजय रूपाणी जब गुजरात के सीएम बने तो उनके शपथ ग्रहण में योगी अपने साथ दूसरे डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को लेकर गए। केशव मौर्या को यह खास नागवार गुजरा था। 27 दिसंबर, 2017 के दिन जब हिमांचल में भाजपा सरकार का शपथ ग्रहण हुआ तब भी सीएम योगी अपने सरकारी विमान में दिनेश शर्मा को लेकर शिमला पहुंचे थे। केशव मौर्या को सामान्य प्लाइट से शिमला आना पड़ा था। योगी राज्य की सड़कों को लेकर अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप ले बयान करने से कभी नहीं चूकते है। चूंकि सउ़क मंत्रालय केशव मौर्या के पास है इसलिए मौर्या के समर्थकों को यह नागवार गुजरता है।
#मोदी पूछा हाल
आज प्रातः भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय श्री @narendramodi जी ने फोन पर इतना अधिक व्यस्त रहने के बाद भी मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली और स्वास्थ्य संबंधी जरूरी निर्देश दिए।
हमें अपने सर्वोच्च नेता आदरणीय प्रधानमंत्री जी पर गर्व है। #ModiJiPochhaHaal (1/2) pic.twitter.com/NYFORq1lOk— Keshav Prasad Maurya (@kpmaurya1) October 5, 2020
अक्टूबर, 2020 के दिन सोशल मीडिया में एक हैशटैग ‘#मोदी पूछे हाल’ खासा वाइरल हुआ। कोरोना से सक्रंमित केशव मौर्या से इस दिन प्रधानमंत्री ने फोन कर हाल-चाल जाना। उन्होंने मौर्या को जल्द स्वस्थ होने की शुभकामनाएं भी दी। फिर क्या था मौर्या ने तत्काल इस फोन काल का राजनीतिक फाइदा उठाने की नीयत से ‘#मोदी पूछे हाल’ हैशटैग के साथ ट्वीट कर डाला। इस हाल पूछने जैसे सामान्य शिष्टाचार ने राज्य में भारी खलबली मचाने का काम किया है। राजनीतिक विशेषकों की कयास बाजियों का दौर शुरू हो गया। कहा-समझा-समझाया जा रहा है कि पीएम का मौर्या को फोन करना योगी के लिए चेतावनी का संकेत है। योगी भले ही पार्टी के अन्य मुख्यमंत्रियों की तुलना में ज्यादा लोकप्रिय हों, उनकी सरकार का टैंक रिकाॅर्ड खास इम्प्रेसिव नहीं है। योगी के पार्टी भीतर ही आलोचकों की संख्या में लगातार हो रहा विस्तार, उनकी कार्यशैली पर उठ रहे प्रश्न और दलित व ब्राह्मण समाज में उनके प्रति बढ़ रहा आक्रोश, ‘#मोदी पूछे हाल’ के बाद ज्यादा परवान चढ़ता नजर आने लगा है।
अधूरे वायदे
योगी सरकार ने 10 महत्वपूर्ण वायदे सत्ता में आने के बाद किए थे। इनमें से अधिकांश सरकार के चार बरस पूरे होने के बाद भी अधूरे हैं।
वायदा वास्तविक स्थिति
- गड्ढा रहित सड़कें जस का तस
- गांवों को राजमार्ग से जोड़ने वाली ऑल वेदर सड़कों का निर्माण जस का तस
- जैनेरिक दवाइयों की हर गांव में दुकान जस का तस
- महिला सुरक्षा बदहाल
- जंगल राज का खात्मा जस का तस
- स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कोरोना के चलते कुछ बेहतर
- बेरोजगारों को रोजगार कुछ प्रगति
- किसानों को आसान शर्तो पर कर्ज केवल घोषणाएं, किसान हैं नाराज
- सरकारी स्कूलों में फ्री किताबें व यूनिफॉर्म कुछ हद तक कार्य हुआ है।
- कॉलेज स्टूडेंट्स को फ्री लैपटॉप अधूरा
योगी सरकार ने एक बड़ा वायदा प्रदेश में भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त करने का किया था। योगी आदित्यनाथ के पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि स्वयं उनका किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार के दूर-दूर तक नाम नहीं आना रहा है। लेकिन उनकी सरकार पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप स्वयं उनकी पार्टी के विधायक लगा चुके हैं। हरदोई के एक भाजपा विधायक ने फेसबुक में पोस्ट कर लिखा है कि ‘ऐसी भ्रष्ट सरदार मैंने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में कभी नहीं देखी। एक अन्य विधायक नंद किशोर गुर्जर ने भी भ्रष्टाचार के योगी राज में फलने-फूलने की बात सार्वजनिक रूप ले कह डाली है।
गोरखपुर मेडिकल काॅलेज में सैकड़ों बच्चों की मौत बाद जहां राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा तो वहीं के एक डाॅक्टर कफील खान की गिरफ्तारी ने योगी की मुस्लिम विरोधी छवि को और पुख्ता करने का काम किया। एन्टी सीएए आंदोलन के दौरान योगी पुलिस का रवैया, आंदोलनकारियोें के पोस्टर लखनऊ की दीवारों में चस्पा करने के सरकार के आदेश, हाथरस बलात्कार कांड आदि ने योगी की कड़क प्रशासक वाली छवि को बड़े पैमाने पर धूमिल करने का काम किया है। राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर भी सरकारी दावों की पोल स्वयं मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र गोरखपुर में एक करोड़ की फिरौती के लिए एक 14 बरस के लड़के का अपहरण और हत्या होनी, संघ के नेता संजय खोखर, विश्व हिंदु महासभा के रंजीत बच्चन, हिंदु महासभा के ही कमलेश तिवारी, हिंदु यवा वाहिनी के संजय सिंह आदि की हत्या से खुल जाती है। जुलाई, 2020 में सोफिया बेगम नाम की एक महिला ने अमेठी पुलिस पर यह आरोप लगाते हुए कि उसकी जमीन कब्जानें वाले दबंगों को संरक्षण दिया जा रहा है, मुख्यमंत्री आवास के सामने खुद पर आग लगा आत्महत्या कर ली। कानपुर में एक दोयम दर्जे के अपराधी विकास दुबे द्वारा एक डिप्टी एसपी समेत आठ पुलिस वालों को मार योगीराज के सभी दावों का सच सामने लाने का काम कर डाला।
अब योगी पर नकेल की कवायद
भाजपा सूत्रों का दावा है कि योगी आदित्यानाथ के बढ़ते कद से चिंतित भाजपा आलाकमान अब योगी को उनके ही राज्य तक सीमित रखने की कवायद शुरू कर चुका है। इसकी शुरूआत योगी के गृह क्षेत्र गोरखपुर के कद्दावर नेता शिव प्रताप शुक्ला को लोकसभा में पार्टी का मुख्य सचेतक बना की गई है। स्थानीय राजनीति में शुक्ला और योगी का हमेशा से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। शुक्ला भाजपा के खांटी सदस्य, संघ निष्ठ, पिछली भाजपाई सरकारों में मंत्री रह चुके ऐसे नेता बताए जाते हैं जिन्हें पिछले मोदी मंत्रिमंडल मंे वित्त राज्यमंत्री बनाए जाने से योगी के गोरखपुर में वर्चस्व को क्षति पहुंची थी। 2019 में मोदी सरकार की वापसी बाद शुक्ल को मंत्री नहीं बनाने से राज्य के ब्राह्मण समाज में नाराजगी देखने को मिली। राजनीतिक विशलेषकों का कहना है कि शिव प्रताप शुक्ला के मंत्री न बन पाने की वजह योगी आदित्यनाथ का दबाव था। अब उन्हें पार्टी के मुख्य सचेतक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर जहां एक तरफ ब्राह्मणों को भाजपा नेतृत्व ने रिझाने का काम किया है, दूसरी तरह योगी के लिए यह एक प्रकार की चेतावनी भी है। जानकारों का दावा है कि अब भाजपा आलाकमान योगी के दबाव को नजरअंदाज कर पार्टी के पुराने नेताओं को आगे बढ़ाने का मन बना चुका है। प्रधानमंत्री मोदी का कैशव मौर्या को फोन करना भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की इसी रणनीति का एक हिस्सा बताया जा रहा है। हालांकि यह तय है कि संघ और भाजपा हिन्दुत्व की अलख जगाने वाले इस चेहरे को राज्य के मुख्यमंत्री पद से हटाने का जोखिम उठा नहीं सकती है, योगी को कंट्रोल में रखने की मुहिम का अब तेजी पकड़ना तय है।