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अदब के शहर में हर कोई कर रहा शिल्पी चौधरी की समाज सेवा को सेल्यूट

अदब के शहर में हर कोई कर रहा शिल्पी चौधरी की समाज सेवा को सेल्यूट

जब देश में कोरोना महामारी दस्तक दे रही थी तब नवाबों के शहर लखनऊ में एक समाज सेविका ने दूरदर्शिता दिखाते हुए अनोखा काम किया। जिसकी समाज सेवा को आज अदब के शहर लखनऊ में हर कोई सेल्यूट कर रहा है। शिल्पी चौधरी नाम की समाज सेविका ने लखनऊ में ऐसा काम कर दिखाया कि आज उनको हर कोई सम्मान दे रहा है। यही नहीं बल्कि कोरोना वॉरियर के रूप में शिल्पी चौधरी ने एक ऐसी पहल की है जिसको आगरा के जिलाधिकारी तक ने आगें बढाया है। यही नहीं बल्कि राजस्थान के जयपुर शहर में भी शिल्पी चौधरी ने महिलाओं को इस काम के लिए प्रोत्साहित किया है।

शिल्पी चौधरी ने ऐसा काम किया है कि जब लोग सिर्फ कोरोना बीमारी से बाहरी आवरण के रक्षा के उपाय के साधन बना रहे थे तब शिल्पी ने महिलाओं के दर्द को समझा। खासकर उन महिलाओं का दर्द जो प्रवासी मजदूर के रूप में इधर से उधर आवागमन कर रही थी। वह प्रवासी मजदूर महिलाएं जिनको अपने फटे – पुराने  कपड़ों से ही अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्या का काम चलाना पड़ता था उनके लिए शिल्पी ने सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध करवाएं।

सोचिए कि जिस समय महिलाएं कड़ी धूप में सर पर सामान लिए हुए और गोद में बच्चा उठाए हुए जब सड़कों से पैदल निकल रही हो तो ऐसे में उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्या (माहवारी) हो जाए तो वह क्या कर सकती है। मजबूरन उनके कपड़े गंदे हो सकते हैं ,  साथ ही उन्हें इंफेक्शन का भी खतरा हो सकता है। ऐसे में कोरोना महामारी होने के भी चांस बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। महिलाओं की इसी परेशानी को शिल्पी चौधरी ने बखूबी समझा। उन्होंने सेनेटरी नैपकिन के 1000 पैकेट महिलाओं को वितरित किए। इसके साथ ही शिल्पी चौधरी ने सड़कों पर घूमने वाले आवारा गाय, पशु और जानवरों को खाना भी खिलाया।

यह शिल्पी की समाज सेवा के प्रति समर्पण ही कहा जाएगा कि जब सड़कों पर बसों में महिलाएं दिखती तो वह भाग-भाग कर बसों की खिड़कियों से उनको सेनेटरी नैपकिन के पैकेट उपलब्ध करवाती थी। यहां तक कि तब वह यह नहीं देखती कि कितनी गर्मी हो रही है । महिलाओं की सुरक्षा के लिए उन्हें इस भयंकर गर्मी में सड़कों पर भागना पड़ा है। शिल्पी चौधरी बताती है कि 19 मार्च को जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार देश को संबोधित करते हुए एक दिन का जनता का जनता कर्फ्यू लगाया था तो तभी से लगने लगा था कि स्थिति गंभीर बनने वाली है। तब शिल्पी ने सोचा था की दुकान-मार्केट बंद हो जाएंगे और ऐसे में आवारा पशु और सड़कों पर रहने वाले कुत्ते तथा जानवर भूखे मरने लगेंगे।

क्योंकि जब बाजार खुले रहते हैं तो ठैली वाले ब्रेड डाल देते हैं तथा फल सब्जी वाले गायों को सब्जी के हरे पत्ते डाल देते थे। जिनसे उनका पेट भर जाता था। इसके मद्देनजर ही शिल्पी चौधरी ने 19 मार्च को ही खरीददारी शुरू कर दी थी। शिल्पी चौधरी यह भी बताती हैं कि लखनऊ नगर निगम में गौशाला में काम करने वाले एक व्यक्ति से उनकी बात हुई और उन्हें बताया कि इस तरह गाय भूखी मर रही है । तब उन्होंने कुछ दिन के लिए नगर निगम से दलिया और रोटी के साथ ही हरा चारा भी दिया। लेकिन वह सिर्फ एक माह तक हरा चारा और रोटी दलिया दे सकें। शिल्पी बताती है कि 13 अप्रैल को नगर निगम में उन्हें यह खाने को का सामान देना शुरू किया था। जबकि इससे पहले वह अपनी जेब से सामान खरीद कर आवारा पशुओं और जानवरों तथा कुत्तों को खिला चुकी थी।

इसी के साथ ही उन्होंने महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन बांटने शुरू किए। वह अकेले सेनेटरी नैपकिन ही नहीं बाटती है बल्कि प्रवासी मजदूरों महिलाओं को खाना और दाना भी दिया गया। तब काफी लोगों ने उन्हें चीजें दान की थी। वह बताती है कि मजदूरों को उन्होंने चना दिया तथा सत्तू भी दिया। क्योंकि लू में चना और सत्तू बहुत उपयोगी होता है। इसके साथ ही शिल्पी चौधरी ने करीब 300 जोड़ी चप्पल भी मजदूरों को दी। जो मजदूर गर्मी में तपते रोड पर पैदल चल रहे थे उनको चप्पले पहनाकर उन्हें काफी सुकून मिला।

सेनेटरी नैपकिन के बारे में बताते हुए वह कहती हैं कि उन्होंने पहले सोशल मीडिया पर महिलाओं की मुश्किल भरे सफर को शेयर किया और बताया कि ऐसे समय में उनके लिए कपड़ा या सुरक्षित साधन नहीं होंगे तो उनकी माहवारी में कपड़े गंदे होने तथा इंफेक्शन होने का खतरा होगा। इसके मद्देनजर 9 कंपनी ने उनसे संपर्क साधा। 9 कंपनी सेनेटरी नैपकिन बनाती है। इस कंपनी ने ‘नो प्रॉफिट नो लॉस’ के आधार पर 28 रुपए में बेचे जाने वाला सेनेटरी नैपकिन नेपकिन उन्हें 21 रूपये मे उपलब्ध कराया। शिल्पी चौधरी ने पंद्रह सौ सेनेटरी नैपकिन लिए जिनमें से 1000 पैकेट वह आज तक महिलाओं में वितरित कर चुकी है।

शिल्पी चौधरी के इस काम से प्रेरणा लेकर आगरा के जिलाधिकारी ने महिलाओं में सैनिटरी नैपकिन बटवाने का काम किया। इसके लिए बकायदा आगरा के जिलाधिकारी ने जगह-जगह स्टॉल लगाए और महिलाओं को नि:शुल्क सेनेटरी नैपकिन दिए। यह सेनेटरी नैपकिन सरकार की तरफ से दिए गए थे। इस बाबत जब उनसे पूछा गया कि आप को सरकार से सेनेटरी नैपकिन क्यों नहीं मिले तो उन्होंने कहा कि सरकार से उन्होंने गुजारिश की थी कि वह उन्हें सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराएं लेकिन उन्होंने यह कह दिया कि उनके पास स्टॉक खत्म हो गया है। शिल्पी बताती है कि इस बाबत उनके पास राजस्थान के जयपुर से भी फोन आए। उन्होंने कहा की महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन बांटने के लिए नहीं मिल पा रहे हैं, तो उन्होंने उन्हें आगरा के जिलाधिकारी का उदाहरण देते हुए बताया कि यह सरकारी सहायता के जरिए भी मिल जाता है। लेकिन उन्होंने बताया कि यहां कोई ऐसी सहायता नहीं दी जा रही है। इसके बाद शिल्पी ने उनको अपना उदाहरण देते हुए बताया कि किस तरह उन्होंने महिलाओं में सेनेटरी नैपकिन बाटे। इसके लिए कुछ दानदाता भी उनके साथ जुड़े हैं ।

यह सुनने के बाद जयपुर की महिलाओं ने भी ऐसी ही मुहिम शुरू की है। शिल्पी चौधरी की यह मुहिम सिर्फ आगरा और जयपुर तक ही सीमित नहीं है,  बल्कि कई शहरों में महिलाओं ने प्रवासी मजदूर महिलाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन बांटने का काम किया है। इसी के साथ शिल्पी चौधरी करीब 60 से 70 कुत्तों तथा 25 से 30 गायों को प्रतिदिन हरा चारा और रोटी – दलिया खिला रही है। शिल्पी चौधरी ने लखनऊ में करीब 3000 लोगों को प्रतिदिन खाना खिला रही जीव आश्रय संस्था को भी राशन भेजा है। इसी के साथ शिल्फी चौधरी ने करीब 60 लोगों को नांद उपलब्ध कराई है। यह नांद जानवरों को पानी पिलाने के लिए दी गई है । जिन्हें शहर में जगह-जगह लगाकर पानी से भर दिया जाता है। इन नादो में आवारा पशु पानी पीकर भीषण गर्मी से निजात पाते हैं ।

याद रहे कि शिल्पी चौधरी ने वर्ष 2015 में भी समाज सेवा में मिसाल कायम की थी। तब उन्होंने नेपाल में आए भूकंप पीड़ितों महिलाओं के लिए 3000 सेनेटरी नैपकिन के पैकेट भिजवाए थे। शिल्पी चौधरी कहती है कि आजकल मास्क बनाने का फैशन चल रहा है। ज्यादातर महिलाएं सिलाई की मशीनों पर मॉस्क बनाती हुई फोटो खिंचवाती है या उन्हें बांटते हुए लोग फोटो खिंचवा कर समाज सेवा का प्रदर्शन करते हैं। लेकिन मजदूर और मजबूर महिलाओं के दर्द को किसी ने भी नहीं जाना। अगर जाना होता तो वह मास्क ही नहीं साथ में सेनेटरी नैपकिन भी बटवाते। क्योंकि महिलाएं अपने इस स्वास्थ्य संबंधी मामले (माहवारी) को बताने में शर्म महसूस करती हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि समाज सेवा से जुड़े लोग उनकी इस समस्या को अनदेखा कर दे। शिल्पी चौधरी के अनुसार, अगर आज देश में मास्क के साथ ही सेनेटरी नैपकिन बाटी जाए तो महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्या का काफी हद तक निदान हो सकता है।

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