स्थिति कुछ ऐसी ही है। मामला अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के राज्य मंत्री मोहसिन रजा और शिया वक्फ बोर्ड के विवादित चेयरमैन वसीम रिजवी के बीच का है। मोहसिन रजा काफी समय से वसीम रिजवी को पटखनी देने की कोशिशों में जुटे हैं लेकिन वसीम रिजवी हैं कि अपने धोबी पछाड़ दांव के आगे किसी को टिकने ही नहीं दे रहे।
अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा और शिया वक्फ बोर्ड के विवादित चेयरमैन वसीम रिजवी के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। यह विवाद सिर्फ राजनीतिक गलियारों तक ही सीमित नहीं बल्कि यूपी की एक बड़ी आबादी के बीच भी खासा चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक गलियारों में हो रही चर्चा को आधार मानें तो दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। हालांकि मोहसिन रजा मौजूदा सरकार में राज्य मंत्री के पद पर आसीन हैं और इस नजर से देखा जाए तो मोहसिन रजा शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी से अधिक पाॅवरफुल माने जा सकते हैं इसके बावजूद मोहसिन रजा शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी के पर काटने में अब तक अक्षम साबित रहे हैं।
पिछले दो महीने से कोरोना वायरस की वजह से छायी शांति के बाद एक बार फिर से दोनों के बीच विवाद गहराने लगा है। प्राप्त जानकारी तो यही कहती है कि दोनों के बीच एक बार फिर से तनातनी का माहौल बनता नजर आ रहा है। ऐसा इसलिए कि अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने विगत दिनों एक ऐसा आदेश जारी किया है जिससे शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व और वर्तमान चेयरमैन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बताते चलें कि शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी पर वक्फ सम्पत्तियों को फर्जी तरीके से बेचे जाने का आरोप है और इस मामले में सम्बन्धित विभाग के राज्य मंत्री की विशेष रूचि चर्चा का विषय बनी हुई है। बताते चलें कि विगत दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी कर उ.प्र.शिया सेण्ट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन व बोर्ड से जुडे़ सदस्यों से बोर्ड के कामकाज से जुड़ी सभी फाइलें और दस्तावेज तलब किए हैं। बताया जा रहा है कि सम्बन्धित विभाग के मंत्री के आदेश पर शासन के उप सचिव रवि शंकर मिश्र की ओर से ये आदेश जारी किया गया है। अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा के निर्देशों के अनुपालन के क्रम में इस आदेश में कहा गया है कि बोर्ड के पूर्व चेयरमैन व सदस्य अपने सभी दस्तावेज प्रोसीडिंग डाक्यूमेंट और फाइलें तत्काल शासन को सौंपें। ये आदेश शिया और सुन्नी, दोनों ही बोर्ड के चेयरमैन के लिए हैं लेकिन निशाने पर खासतौर से वसीम रिजवी हैं।
बताया जा रहा है कि उ.प्र. सुन्नी वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन जुफर फारूकी से भी सभी फाइलें व दस्तावेज वापस लिए जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है ताकि वसीम रिजवी को इस बात का अहसास न होने पाए कि राज्य मंत्री के निशाने पर वे ही हैं लेकिन शातिर दिमाग के धनी वसीम रिजवी ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर निशाने पर उन्हीं को लिया जा रहा है। और दिनों की बात होती तो शायद वसीम रिजवी घबराकर अनाप-शनाब बयानबाजी करने लगते लेकिन मौजूदा समय में स्थिति वसीम रिजवी के अनुकूल है। ऐसा इसलिए कि चाहें कि राम मन्दिर का मसला हो या फिर मदरसों को लेकर सरकार का कड़ा रूख, वसीम रिजवी हर वक्त सरकार के साथ ही खडे़ नजर आए हैं। यहां तक कि वसीम रिजवी अपनी ही कौम के इतने खिलाफ हो चुके हैं कि उनके खिलाफ फतवा तक जारी किया जा चुका है। ऐसा इसलिए ताकि यूपी सरकार उनके द्वारा किए गए घोटालों पर ज्यादा रूचि न दिखाए और दूसरी ओर सरकार को वसीम रिजवी के रूप में एक ऐसा चाटुकार मिल गया है जो अकेला ही मुस्लिम धर्मगुरूओं और नेताओं से टकराने की क्षमता रखता है। शायद यही वजह है कि योगी सरकार अपने एक राज्य मंत्री की इच्छा को पूरी करने के बजाए वसीम रिजवी को संरक्षण देती आ रही है। यही वह वजह भी है जिसने इस बार भी राज्य मंत्री के आदेश के बावजूद किसी प्रकार की बयानबाजी नहीं की है। अब तो भाजपा में भी यह कहा जाने लगा है कि वसीम रिजवी का कद अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा से बड़ा है। मोहसिन रजा भी यह भी अच्छी तरह से जानते हैं लिहाजा वे विभागीय कार्रवाई के अलावा अपने प्रोटोकाॅल के लिहाज से वसीम रिजवी के खिलाफ कठोर कदम नहीं उठा पा रहे। दूसरी ओर मोहसिन रजा की मुश्किल यह है कि वे तोहफे के रूप में मिला मंत्री पद किसी भी स्थिति में गंवाना नहीं चाहते। भाजपा में भी इस बात की पुष्टि की जा रही है कि यदि मोहसिन रजा ने सरकार की मंशा के खिलाफ कदम उठाया तो निश्चित तौर पर उनकी कुर्सी तो छिनेगी ही साथ ही राजनीतिक भविष्य भी दांव पर लग जायेगा।
दूसरी ओर वसीम रिजवी लगातार अपनी कौम की खिलाफत करके सरकार के चहेते बनते जा रहे हैं। हाल ही में वसीम रिजवी तबलीगी जमात के लोगों को फिदाईन हमलावर करार देकर सरकार से अपनी पीठ थपथपवा ली। वसीम रिजवी ने तो यहां तक कह डाला कि तबलीगी जमात के लोगों ने घातक जानलेवा वायरस फैलाकर भारत पर फिदायीन हमले की योजना बनाई थी। मीडिया को दिए अपने बयान में वसीम रिजवी ने कहा था, ‘तबलीगी जमात के लोगों ने कोरोना वायरस फैलाकर एक लाख से अधिक लोगों को मारने की योजना बनाई थी। तबलीगी जमातियों की यह योजना मोदी सरकार को परेशान करने के लिए बनाई गई थी। सच तो यह है कि ये योजना प्रधानमंत्री के खिलाफ एक साजिश थी।’ वसमी रिजवी के इस बयान में सच्चाई कितनी थी, यह तो दावे के साथ नहीं कहा जा सकता अलबत्ता वसीम रिजवी ने इस तरह की टिप्पणी करके भाजपा की टीम में एक कदम और बढ़ा लिया है।
तू डाल-डाल, मैं पात-पात
कुछ ऐसी ही स्थिति है कि एक राज्य मंत्री और शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के बीच की। मंत्री महोदय की हर कोशिशों को चेयरमैन साहब भाजपा के पक्ष में विवादित बयान देकर पटखनी देने में सफल होते आए हैं।
ज्ञात हो ये वही वसीम रिजवी हैं जिन्होंने अपनी ही बिरादरी के लोगों को सलाह दी थी कि वे राम मन्दिर विवाद को त्याग कर हिन्दुओं को जमीन सौंप दें। ये वही रिजवी हैं जिन्होंने योगी सरकार से मांग की थी कि यूपी के मदरसों में भी स्वतंत्रता दिवस मनाने के आदेश दिए जाएं। ये वही वसीम रिजवी हैं जिन्होंने यह कहा था कि राम मन्दिर का विरोध करने वालों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए। ये वही वसीम रिजवी हैं जिन्होंने यह कहकर मुसलमानों के बीच सनसनी पैदा कर दी थी कि यूपी के मदरसे छात्रों को आतंकवादी बनने के लिए प्रेरित करते हैं। ये वही वसीम रिजवी ने जिन्होंने जफरयाब जिलानी का नाम लिए बगैर यह कहा था कि अयोध्या मामले में मुस्लिम समुदाय की तरफ से अदालत में फर्जी वकील खडे़ किए गए हैं।
मुसलमान होने के बावजूद शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने ऐसा क्यों कहा? इसका सीधा ताल्लुक उन पर लगे वे ठोस आरोप थे जो उन्हें सलाखों तक पहुंचा सकते थे।