देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस आज बुरे दिनों में है। करीब एक दशक से पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है । हर चुनावी मोर्चे पर उसे मात खानी पड़ रही है। पार्टी की बड़ी दिक़्क़त यह भी है कि पार्टी को खुद अपने भीतर भी लड़ना पड़ रहा है। केंद्र में नेतृत्व के सवाल पर मतभेद है , तो राज्यों में नेता एक – दूसरे को नीचा दिखाकर पार्टी नेतृत्व के सामने अपना वर्चस्व बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं । इसका ताजा उदाहरण किसी से छिपा नहीं है। जिस तरह हाल ही में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपमानित होकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और इसके चलते उन्होंने पार्टी छोड़ने का एलान कर दिया, वह कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है।

सिध्दू को तवज्जो देने के बाद नेतृत्व क्षमता पर उठने लगे सवाल
पार्टी दरअसल , पंजाब में कुछ ही महीनों के भीतर विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए पार्टी के लिए पंजाब एक अहम राज्य है। ऐसे में अमरिंदर सिंह को अपमानित कर जिस तरह नवजोत सिंह सिध्दू को तवज्जो दी गई, उससे कांग्रेस और गांधी परिवार की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि नवजोत सिंह सिध्दू को प्रियंका गांधी के कहने पर पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। सिध्दू लेकिन इतने से ही संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने अध्यक्ष बनने के बाद अमरिंदर सिंह के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। उनके इस अभियान को गांधी परिवार ने अपना अप्रत्यक्ष समर्थन दिया इसलिए अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बावजूद भी मुख्यमंत्री बनने की लालसा रखने वाले सिध्दू चैन से नहीं बैठे। उनकी यह लालसा बहुत पुरानी है। भाजपा में रहते हुए भी वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी थे। वह जब कांग्रेस में आए तो उनकी महत्वाकांक्षा आसमान छूने लगी। अमरिंदर के न चाहते हुए भी उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद वह बेलगाम हो गए।
इस तथ्य कि अनदेखी नहीं की जा सकती कि अमरिंदर सिंह की राहुल-प्रियंका से कभी नहीं बनी। विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक उन्होंने अपने हिसाब से राजनीति की। अपने इस्तीफे के बाद उन्होंने यह कहने में संकोच नहीं किया कि राहुल-प्रियंका अनुभवहीन हैं और उनके सलाहकार उन्हें गुमराह करते रहते हैं। अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने। पहले तो सिध्दू ने चन्नी के मुख्यमंत्री बनने का स्वागत किया, लेकिन उन्होंने जैसे ही फैसले लेने शुरू किए, वह बिदक गए।
दरअसल ,सिध्दू ने यह सोचा था कि वह चन्नी को अपने हिसाब से नियंत्रित करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चन्नी ने उनकी कठपुतली बनने से इन्कार कर दिया। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों की अपने हिसाब से नियुक्तियां और मंत्रियों के विभागों का बंटवारा करना शुरू कर दिया। इससे खफा होकर सिध्दू ने इस्तीफा दे दिया। ऐसा करके उन्होंने अमरिंदर सिंह की इस टिप्पणी को सही साबित कर डाला कि वह टीम प्लेयर नहीं हैं और अस्थिर स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि वह बतौर क्रिकेटर किस तरह इंग्लैंड का दौरा अधूरा छोड़कर चले आए थे। उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी सरकार के खिलाफ बगावत कर न केवल अपनी, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व और खासकर गांधी परिवार की भी फजीहत की। यही कारण रहा कि उन्हें समझाने-बुझाने की कोशिश नहीं की गई। हालात को भांपते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री चन्नी से मुलाकात की, लेकिन लगता नहीं कि वह उनकी सारी बातें मानने के लिए राजी हुए हैं। नि:संदेह सिध्दू का अपना एक खेमा है, लेकिन पंजाब में उनके विरोधी भी हैं।

जी -23 समूह के नेता हुए सक्रिय
पंजाब कांग्रेस में उठापटक के बीच जिस तरह जी-23 समूह के नेता सक्रिय हुए, उससे यही पता चलता है कि एक बार फिर से गांधी परिवार को निशाने पर लिया जाना शुरू हो चला है। जहां इस समूह के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने यह सवाल पूछा कि जब कोई अध्यक्ष नहीं तो फैसले कौन ले रहा है, वहीं गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाने की मांग की। इसके बाद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का एक समूह सिब्बल के घर जा धमका। हालांकि इस घटना की कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने आलोचना की, लेकिन लगता नहीं कि असंतुष्ट कोंग्रेसी अब चुप बैठने वाले हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो यह साफ है कि राहुल गांधी परोक्ष रूप से कांग्रेस को चला रहे हैं और सोनिया गांधी उनका हर तरह से साथ दे रही हैं। राहुल गांधी की राजनीति को समझना कठिन है। वह भाजपा से लड़ने की बातें तो खूब करते हैं, लेकिन अपना घर नहीं संभाल पा रहे हैं। वह मोदी सरकार पर आये दिन नया आरोप मढ़ते हैं, लेकिन किसी समस्या का समाधान नहीं बताते।राहुल की राजनीति शैली को पचा नहीं पा रहे। पुराने कोंग्रेसी अब कहने लगे हैं कि समाजवादी सोच से ग्रस्त राहुल अब तो साम्यवादी सोच से भी जकड़ते जा रहे हैं। इसका ताजा प्रमाण कन्हैया कुमार का कांग्रेस में शामिल होना है। उनकी एक मात्र विशेषता मोदी को गाली देना और उद्योग-व्यापार जगत के लोगों पर निशाना साधना है। यही काम एक अर्से से राहुल भी कर रहे हैं। कन्हैया कुमार वाली मानसिकता से जिग्नेश मेवाणी भी लैस हैं। इन दोनों नेताओं की तरह राहुल को भी यह लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधने से उन्हें राजनीतिक लाभ होगा।
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दरअसल ,राहुल गांधी की राजनीति पुराने कांग्रेसी नेताओं को भी रास नहीं आ रही है। इसका प्रमाण केवल पंजाब की उठापटक ही नहीं, बल्कि जी-23 गुट के नेताओं की ओर से उन पर निशाना साधना है। पिछले दिनों केरल और गोवा के कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। इसके पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़ चुके हैं। सचिन पायलट भी नाराज हैं। अभी पंजाब का झगड़ा सुलझा नहीं हैं और उधर छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी विधायकों का मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है। यह और कुछ नहीं कांग्रेस में बिखराव का संकेत है।
राजनीतिक विशेषज्ञ कांग्रेस के इस बिखराव से खासे चिंचित हैं। भाजपा के बरस्क कांग्रेस ही एक मात्रऐसा दल है जिसकी पूरे देश में उपस्थिति है। एक अर्से से कांग्रेस की जमीन पर ऐसे क्षेत्रीय दल काबिज होते जा रहे हैं, जिनकी कोई राष्ट्रीय दृष्टि नहीं। अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने का एलान करते हुए अपना नया दल बनाने के संकेत दिए हैं। इसका मतलब है कि पंजाब में भी कांग्रेस कमजोर होगी। यदि ऐसा होता है तोइसका सीधा लाभ भाजपा को मिलना तय है।