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यूपी में एनकाउंटर पॉलिटिक्स, 4 साल में 6475 एनकाउंटर, सबसे ज्यादा मुसलमानों के

गत 15 मार्च को बलरामपुर में आयोजित की गई एक जनसभा में असदुद्दीन ओवैसी ने यह कहकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में गरमाहट पैदा कर दी कि यूपी में जब से भाजपा की सरकार बनी है तब से अब तक 6475 एनकाउंटर हुए हैं। जिसमें 135 लोगो को मार गिराया गया। इन मरने वाले लोगों की तादाद में सबसे अधिक 51 मुस्लिम है जिनका आकडा 37 प्रतिशत है।

जबकि यूपी में मुस्लिमों का प्रतिशत 18 प्रतिशत ही है। यही नहीं बल्कि ओवैसी ने यूपी सरकार से को कटघरे में खड़ा करते हुए सवाल दाग दिया कि आखिरी यह जुल्म क्यों हो रहा है जिसमें एक जाति – धर्म विशेष के लोगों पर को एनकाउंटर के नाम पर मार गिराया जा रहा है।

देश के सबसे बड़े प्रदेश का मुखिया कहता है कि ‘ठोक दो’। क्या उत्तर प्रदेश की हुकूमत संविधान के तहत काम कर रही है ? क्या उत्तर प्रदेश में ‘रूल ऑफ ला’ है या ‘रूल ऑफ गन’ ?

एआइएमआइएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के इस बयान के बाद से ही उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर पॉलिटिक्स जोर शोर से शुरु हो गई है । मुस्लिमों के एनकाउंटर सबसे ज्यादा होने का आंकड़ा सामने आने के बाद एनकाउंटर के मामले में दूसरे नंबर पर ब्राह्मण रहे। ब्राह्मणों में 13 लोगों के एनकाउंटर हुए। जबकि 9 यादव एनकाउंटर का शिकार हुए हैं।

असदुद्दीन ओवैसी के बाद कांग्रेस के नेता उमा शंकर पांडे ने भी ब्राह्मणों के एनकाउंटर पर योगी सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

उन्होंने कहा है कि उत्तर प्रदेश में तमाम तरीके से फेक एनकाउंटर जाति और धर्म के नाम पर किए जा रहे हैं। तमाम सारे ब्राह्मण लोगों की हत्याएं हुई हैं । जिनको एनकाउंटर का नाम दिया जा रहा है। जबकि मुस्लिमों पर भी फेक एनकाउंटर हुए हैं ।

कई सारे मामले कोर्ट में चले गए। उनके परिवार वालों ने याचिका दाखिल कर रखी है। जिनकी अगर निष्पक्षता के साथ जांच हुई तो यह फेक एनकाउंटर साबित हो जाएंगे । साथ ही उमाशंकर ने यह भी कहा कि यह बेहद आश्चर्यजनक हो जाता है कि अभी भी तमाम अपराधी उत्तर प्रदेश में है जो भारतीय जनता पार्टी की शरण में है। संरक्षण में है । उनके खिलाफ योगी सरकार ‘गोद नीति’ लेकर चलती है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद सबसे पहले एनकाउंटर 27 सितंबर 2017 को हुआ। जिसमें मंसूर पहलवान को ढेर किया गया। मंसूर पहलवान सहारनपुर का रहने वाला था। जिस पर 50000 का इनाम था । इसके अलावा अगर यूपी पुलिस के आखिरी एनकाउंटर की बात करें तो वह इसी साल 2021 में पिछले महीने मोती नाम के बदमाश का हुआ है। उत्तर प्रदेश के कासगंज में मुठभेड़ में मारे गए मोती पर ₹1लाख का इनाम था।

यहा यह भी बताना जरूरी है कि योगी सरकार आने से पहले देश में सबसे ज्यादा एनकाउंटर मेघालय, छत्तीसगढ और असम तथा झारखंड में होते थे। छत्तीसगढ़ और झारखंड नक्सल प्रभावित है। वही असम और मेघालय उग्रवाद से प्रभावित रहे हैं । योगी सरकार आने के बाद उत्तर प्रदेश में इन राज्यों से भी अधिक एनकाउन्टर होने लगे हैं।

जबकि उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार में योगी सरकार के मुकाबले बहुत कम एनकाउंटर हुए थे । अखिलेश यादव के 3 साल के कार्यकाल की योगी सरकार से तुलना करें तो अखिलेश सरकार में 16 एनकाउंटर हुए। जिसमें 2014 में 7, 2015 में 5 तथा 2016 में 4एनकाउन्टर हुए।

इसके विपरीत उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में अखिलेश यादव सरकार से 7 गुना ज्यादा एनकाउंटर हुए । 3 साल का आंकड़ा लें तो 112 होता है । योगी सरकार में 2018 में 41, 2019 में 34, 2020 में 26 तथा 2021 में अब तक 6 एनकाउंटर हो चुके हैं।

2018 में एक और चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है । जिसमें देश में 22 लोग एनकाउंटर में मारे गए। इनमें अकेले 17 लोग यूपी के थे। यानी कि कुल एनकाउंटर का 77 प्रतिशत उत्तर प्रदेश में ढेर किए गए। 6 जनवरी 2019 को देश के गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर ने राज्यसभा में यह जानकारी देते हुए बताया था । 5 सालों का अगर आंकड़ा देखें तो इस दौरान देश में 256 एनकाउंटर हुए । जिनमें सबसे ज्यादा 2015 में 140 एनकाउंटर हुए। जबकि 2013 में 54, 2014 में 55, 2016 में 20, और 2017 में 19 एनकाउंटर हुए।

पिछले दिनों मानव अधिकार आयोग ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि भारत में वर्ष 2000 से लेकर 2018 के बीच 18 साल में 1804 फेक एनकाउंटर हुए । जिनमें 811 एनकाउंटर यानी कि 45 प्रतिशत अकेले उत्तर प्रदेश में किए गए।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि फेक एनकाउंटर के कारण सरकारों को 5 साल में 28 करोड़ 77 लाख का मुआवजा भी देना पड़ा है। मानव अधिकार आयोग ही मुआवजे की रकम तय करता है । इस मामले में सबसे अव्वल उत्तर प्रदेश ही रहा । जिसने 2012 से लेकर 2017 के बीच सबसे ज्यादा 13 करोड़ 30 लाख रूपए एनकाउंटर में मारे गए लोगों के पीड़ितों को मुआवजे के तौर पर देने पड़े हैं।

गौरतलब है कि एनकाउंटर मामले में वर्ष 2000 से लेकर 2018 तक 18 सालों में 810 पुलिसकर्मियों पर मामले दर्ज हुए। जिनमें 334 पर ही चार्जशीट लगाई गई। चौंकाने वाली बात यह है कि 810 मामलों में से सिर्फ 26 पुलिसकर्मियों को ही फेक एनकाउंटर मामलों म में सजा हो सकी है।

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