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फिर सवालों के घेरे में इलेक्टोरल बॉन्ड

देश में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई है। वर्ष 2018 में सरकार ने राजनितिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी, लेकिन शुरुआत से ही यह सवालों के घेरे में है।उस समय मानना था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा। मगर ऐसा नहीं हो रहा है। पिछले 4 वर्षो में इस योजना के तहत राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली चुनावी चंदे का रकम 10 हजार करोड़ रूपए की सीमा को पार कर गई है। इन चार वर्षो में भारतीय स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के जरिए 21 चरणों में इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए गए है। इलेक्टोरल बॉन्ड से मिली रकम इन 21 चरणों के बाद तकरीबन 10,246 करोड़ के पास पहुंच गई है।

गौरतलब है कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने का अधिकार केवल स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को है। एक रिपोर्ट के मुताबिक,आरटीआई कार्यकर्ता कमोडोर लोकेश बत्रा ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया से सूचना के अधिकार के तहत सवाल पूछा कि जुलाई 1 से लेकर जुलाई 10 के बीच यानी महज दस दिनों में कितने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए। इसका जबाव बैंक ने दिया कि इस दौरान तकरीबन 475 इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए। जिसमें राजनीतिक पार्टियों को लगभग 389.5 करोड़ रुपये का चुनावी चंदा मिला। इस तरह से राजनीतिक पार्टियों के चंदे की राशि 10 हजार करोड़ रुपये को पार कर गयी है ।

गौर करने वाली बात है कि इस दौरान देश में कोई बड़ा चुनाव नहीं होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियों को करोड़ो रूपए का चुनावी चंदा मिला। देश की राजनीति में आज भी चुनावी चंदे की पारदर्शिता का न होना बड़ा मुद्दा बना हुआ है। इससे पता भी नहीं चलता कि राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदा कोन देता है। किस तरह से इस चंदे को देता है। कब देता है। क्यों देता है। इस परेशानी से निजात पाने के लिए वर्ष 2017 में दिवंगत वित्त मंत्री अरुण जेटली इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को देश में लेकर आए थे। इस योजना के तहत एक तय अवधि के दौरान कोई भी कंपनी, व्यक्ति, एनजीओ, ट्रस्ट या किसी भी तरह का प्रतिष्ठान बिना अपना नाम बताए स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के ब्रांच से इलेक्ट्रोल बॉन्ड खरीदकर देश के किसी भी राजनितिक पार्टियों के खाते में पैसा जमा कर सकता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जिस दिन भारतीय संसद में इसको पेश किया था , तब कुछ विपक्षी पार्टियों ने इसे चुनावी चंदे में हुए धांधली को कानूनी रूप देने का आरोप लगाया था। इस योजना को ख़त्म करने के लिए एसोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफार्म नामक एक नॉन प्रॉफिट ओर्गनइजेशन ने वर्ष 2017 में देश के उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। जिस पर वर्ष 2019 न्यायालय ने अंतरिम आदेश में कहा कि राजनीतिक दल इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिलने वाले चुनावी पैसे का हिसाब-किताब न्यायालय को मुहैया करवाएं। उसके बाद से लेकर अब तक यह मामला न्यायालय में लंबित है। लेकिन अभी हाल में ही एक इन्वेस्टिगेटिव टीम ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर बहुत बड़ा खुलासा किया है । रिपोर्टर्स कलेक्टिव की तरफ से श्रीगरीश जलिहाल, पूनम अग्रवाल और सोमेश झा की इलेक्टोरल बॉन्ड की धांधली से जुडी रिपोर्ट आर्टिकल 14 वेबसाइट पर छपी है।

इस रिपोर्ट के अनुसार न्यायालय के आदेश पर चुनाव आयोग ने देश के सभी राजनीतिक दलों को लिखित में कहा कि वह उच्चतम न्यायालय के सवालों का जवाब दे। लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक,इस दुद्दे पर केवल 105 पार्टियों ने जबाव दिया,बल्कि देश में 2800 से ज्यादा राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं । देश के चुनाव आयोग ने न्यायालय को जबाव दिया तो उसमे 7 राष्ट्रीय पार्टी ,3 राष्ट्रीय पार्टियों की राज्य इकाइयां, देश के 20 राज्य स्तर के पार्टियों की लिस्ट सौपी गई। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने न्यायालय को 70 ऐसी पार्टियों का नाम भी दिया, जिन्हे अभी तक कोई चुनाव चिन्ह भी नहीं मिला है। जिनकी कोई पहचान नहीं है, लेकिन जो चुनाव लड़ती हैं और जिनका रजिस्ट्रेशन चुनाव आयोग में हुआ है। इसके अलावा 5 ऐसी इकाइयों की भी लिस्ट सौंपी गई, जिनकी अब तक कोई पहचान नहीं हुई है।

चुनाव आयोग द्वारा इस रिपोर्ट को उच्चतम न्यायालय को दिए गए 2 वर्ष हो चुके हैं । लेकिन उच्चतम न्ययालय ने अभी तक इस पर सुनवाई नहीं की है। इसके बाद रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम ने बंद लिफाफे में सौपी गई उन 70 पार्टियों की छानबीन करनी शुरू की, जिन्हें किसी तरह का चुनाव चिह्न नहीं मिला है, जो चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड हैं और जिनसे चुनाव आयोग ने जवाब माँगा था। इन 70 पार्टियों में से 54 पार्टियों के प्रमुखों से बातचीत की। पार्टियों ने चुनाव आयोग को जो लिखित जवाब भेजा था, उसकी बारीकी से छानबीन की। पार्टियों द्वारा चुनावी चंदे को लेकर सौंपे जाने वाले सालाना हिसाब की रिपोर्ट को खंगाला। यह सब करने के बाद रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि चुनाव आयोग को जवाब देने वाले 105 पार्टियों में केवल 17 पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के जरिये चुनावी चंदा मिला था। इसके अलावा दो और पार्टियों- द्रविड़ मुनेत्र कंगडम और झारखंड मुक्ति मोर्चा को इलेक्टोरल बांड के जरिये चुनावी चंदा मिला। लेकिन उन्होंने चुनाव आयोग को लिखित जवाब नहीं दिया था।

वर्ष 2017-18 से लेकर वर्ष 2019-20 के दौरान 17 राजनीतिक दलों में सबसे अधिक चुनावी चंदा भारतीय जनता पार्टी को तकरीबन 67.9 प्रतिशत मिला है। यानी 4,212 करोड़ रूपए। वंही कोंग्रेस को 706 करोड़ रूपए का चुनावी चंदा मिला। इसके बाद बीजू जनता दल 264 करोड़ रूपए का चुनावी चंदा मिला। केवल इन तीनों पार्टियों की बात की जाये तो कुल चुनावी चंदे का 83.4 प्रतिशत बनता है। देखना यह है कि ‘आने वाले समय में इस तरह के नियम कानून पर रोक लगती है या नहीं।’

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