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असम में एक तरफा नहीं है चुनावी लड़ाई

पिछले वर्ष के अगस्त माह में असम के लगभग 25 ऐसे कलाकारों ने बीजेपी ज्वाइन की जिन्होंने CAA के विरोध में प्रदर्शन किया था। अब जबकि असम में मार्च-अप्रैल में चुनाव होने वाले हैं वहां राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने दांव चलाने शुरू कर दिया है।
सिल्चर से भाजपा सांसद डॉ राजदीप रॉय कहते हैं कि,”25 से अधिक अभिनेताओं और गायकों के साथ, जो पिछले साल असम में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के खिलाफ आंदोलन में सबसे आगे थे, अब भाजपा के साथ  हैं। यह साबित करता है कि नागरिकता कानून के बारे में विपक्षी दलों ने सिर्फ और सिर्फ फालसे नैरेटिव सेट किया था।”

असम के चुनावी जंग में एक के बाद आ रहे नए मोड़

भाजपा में शामिल होने वाले कलाकारों में अभिनेता जतिन बोरा, गायक जुबिन गर्ग, सिमंता शेखर और विद्यासागर, कल्लोल बोर्थाकुर, नयन निरबान (कांग्रेस से) और बैकुंठ प्रिंस शामिल हैं। रॉय ने आगे कहा, “वे खुलकर भाजपा में आ गए हैं। यह उन लोगों के लिए बुरी खबर है  जो हमारा विरोध कर रहे हैं। झूठे आख्यान को आप कब तक आगे बढ़ाएंगे? ”

रॉय का यह बयान  ऐसे समय में आया है जब माना जा रहा है कि अप्रैल में होने वाले असम विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा सीएए पर चुप हो जाएगी। हालांकि एनडीए सरकार ने दिसंबर 2019 में सीएए पास कर दिया, लेकिन कानून के संचालन के नियमों को अभी तक तैयार नहीं किया गया है।
देश में सीएए को मुद्दा बनाने वाली भाजपा यहां मुद्दा और चेहरा दोनों को लेकर भ्रम की स्थिति में है। पार्टी यहां सीएए से किनारा करती नजर आ रही है। वहीं सर्बानंद सोनोवाल का चेहरा आगे करके चुनाव लड़ने पर हेमंत विश्व शर्मा समर्थकों का दबाव और दिलीप सैकिया का बढ़ता कद भारी पड़ता नजर रहा है।
अपनी हालिया असम यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोहराया था कि उनकी सरकार राज्य में रहने वाले लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

असम में रोचक चुनावी जंग की जमीन तैयार हो गई है। भाजपा और कांग्रेस की अगुवाई में बने गठबंधनों का दिलचस्प मुकाबला यहां देखने को मिल सकता है। दोनों तरफ स्थानीय समीकरणों का दबाव ऐसा है कि ये दल अपने मुद्दों और रणनीति को यहां अलग आकार देने को मजबूर हैं।

देश में सीएए को मुद्दा बनाने वाली भाजपा यहां मुद्दा और चेहरा दोनों को लेकर भ्रम की स्थिति में है। पार्टी यहां सीएए से किनारा करती नजर आ रही है। वहीं सर्बानंद सोनोवाल का चेहरा आगे करके चुनाव लड़ने पर हेमंत विश्व शर्मा समर्थकों का दबाव और दिलीप सैकिया का बढ़ता कद भारी पड़ता नजर रहा है।

दूसरी तरफ पिछले कुछ समय से सॉफ्ट हिंदुत्व की राह तलाश रही कांग्रेस यहां बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के साथ खड़ी है। इस बहाने भाजपा एक बार फिर कांग्रेस पर मुस्लिम परस्त सियासत का आरोप मढ़ रही है। कांग्रेस में किसी चेहरे को लेकर भी सर्वानुमति नहीं है।

इस बार असम के चुनाव में काफी दिलचस्प समीकरण देखने को मिल सकते हैं। जानकारों का कहना है कि एक बार चुनाव घोषित होने के बाद ही स्थिति ज्यादा स्पष्ट होगी। लेकिन एकतरफा लड़ाई नहीं है। नेताओं की महत्वाकांक्षा और भावनात्मक मुद्दों के मकड़जाल में हर दल उलझा हुआ है।

असम में रोचक चुनावी जंग की जमीन तैयार हो गई है। भाजपा और कांग्रेस की अगुवाई में बने गठबंधनों का दिलचस्प मुकाबला यहां देखने को मिल सकता है। दोनों तरफ स्थानीय समीकरणों का दबाव ऐसा है कि ये दल अपने मुद्दों और रणनीति को यहां अलग आकार देने को मजबूर हैं।

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