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चुनाव आयुक्त लवासा की होगी  विदाई, राहत की सांस ले सकेगी भाजपा!

चुनाव आयुक्त लवासा के एडीबी उपाध्यक्ष बनने के खास मायने निकाले जा रहे हैं। चुनाव आयोग में लवासा का कार्यकाल अक्टूबर 2022 तक है। तब तक वह मुख्य चुनाव आयुक्त के पद तक पहुंच सकते थे। वह एडीबी में जाने पर कार्यकाल के बीच में आयोग छोड़ने वाले दूसरे चुनाव आयुक्त होंगे।

लवासा को एडीबी यानी एशियाई डेवलपमेंट बैंक का वाइस प्रेसिडेंट चुना गया है। यानी उनका चुनाव आयोग को छोड़कर फिलीपिंस आधारित इस बैंक को ज्वाइन करना तय है। लवासा ने एडीबी में जाने का फैसला क्यों किया, इस बारे में उन्होंने अभी तक कुछ नहीं कहा है।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव मे चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को चुनाव आयोग द्वारा क्लीन चिट दिये जाने पर चुनाव आयुक्त लवासा ने नाराजगी जताई थी। इसके बाद उनके परिजनों को मुश्किल दौर से गुजरना पड़ा। उन्हें आयकर विभाग के नोटिस का सामना करना पड़ा। उनकी पत्नी सहित परिवार के तीन सदस्यों को कथित रूप से आय से अधिक संपत्ति के मामले में आयकर विभाग के जांच के घेरे में लाया गया।

कहा जा रहा है कि लवासा यदि चुनाव आयुक्त बने रहते तो जाहिर है कि उनकी देख-रेख में उत्तर प्रदेश, मणिपुर, पश्चि बंगाल,  उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा आदि राज्यों के विधानसभा चुनाव संपन्न होते। ऐसे में भाजपा और केंद्र सरकार भयभीत थी कि कहीं लवासा की नाराजगी इन राज्यों के चुनावों में उनके लिए भारी न पड़ जाएं। यही वजह है कि सरकार ने उन्हें एडीबी का उपाध्यक्ष बनाने की सहमति दे दी है। एडीबी और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों के कामकाज की जानकारी रखने वाले लोगों का भी कहना है कि कोई भी अंतरराष्ट्रीय संस्था तब तक किसी भी नियुक्ति की घोषणा नहीं करती जब तक कि इसमें सरकार की सहमति न हो जाए। जाहिर है कि केंद्र सरकार ने ही एडीबी में उन्हें नियुक्त किये जाने की सहमति दी है। चर्चा है कि सरकार ने यह सहमति इसलिए दी ताकि राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें चुनाव आयुक्त लवासा के कोप का शिकार न बनना पड़े । सरकार को डर है कि उनके परिजनों को आयकर के जो नोटिस भेजे गए उसके चलते लवासा चुनावों में भाजपा पर सख्ती कर सकते हैं।

लवासा को एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने उपाध्यक्ष बनाने की घोषणा की है। बैंक का मुख्यालय मनीला में है। अब यदि लवासा चुनाव आयोग से इस्तीफा देते हैं तो वे अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले चुनाव आयोग से हटने वाले दूसरे चुनाव आयुक्त होंगे। आखिरी  बार किसी चुनाव आयुक्त ने ऐसा 1973 में तब किया था जब मुख्य चुनाव आयुक्त नागेंद्र सिंह को हेग में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।

यदि लवासा बने रहे तो मुख्य चुनाव आयुक्त यानी सीईसी के रूप में वह उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा सहति कई अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव कराते।

लवासा के बाद आयुक्त सुशील चंद्र मुख्य चुनाव आयुक्त के पद के दावेदार होंगे। चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तों और कामकाज) अधिनियम 1991 के प्रावधानों के मुताबिक कोई भी चुनाव आयुक्त अथवा मुख्य चुनाव आयुक्त अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेज सकता है। लवासा वर्ष 2019 में उस समय सुर्खियों में आये जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को चुनाव आचार संहिता नियमों का उल्लंघन किये जाने के मामले में क्लीन चिट दिये जाने पर उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को अपना असहमति नोट दिया था।

चुनाव समाप्त होते ही लवासा की पत्नी सहित उनके परिवार के तीन सदस्य आय की घोषणा नहीं करने और कथित रूप से आय से अधिक संपत्ति के मामले में आयकर विभाग की जांच के घेरे में आ गये।

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