अगले साल यानी कुछ ही महीनों के भीतर पांच राज्यों उत्तर प्रदेश ,उत्तराखण्ड ,पंजाब,मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल मार्च से अप्रैल के बीच समाप्त होने वाला है। ऐसे में अब जैसे – जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे – वैसे राज्यों के साथ – साथ देश की राजनीति भी गरमाने लगी है। इस सबके बीच चुनाव आयोग ने अब फर्जी राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसने की तैयारी शुरू कर दी है।

चुनाव आयोग की कानून मंत्री किरण रिजिजू के साथ चुनावी कानूनों पर चर्चा
चुनाव आयोग ने ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार दिए जाने पर जोर दिया है, जो निष्क्रिय हैं और चुनाव भी नहीं लड़ रहे। सूत्रों की मानें तो आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पिछले हफ्ते कानून मंत्री किरण रिजिजू के साथ अलग – अलग चुनावी कानूनों पर चर्चा की थी।दरअसल , इससे जुड़े कई प्रस्ताव सरकार के पास लंबित हैं। चुनाव आयोग के पास किसी राजनीतिक दल को पंजीकृत करने का अधिकार तो है, लेकिन उसे किसी भी पार्टी का पंजीकरण रद करने का अधिकार नहीं है। ऐसे में किसी राजनीतिक पार्टी का पंजीकरण रद करने का अधिकार प्राप्त करने की उसकी मांग वर्षों से कानून मंत्रालय के पास लंबित है।आयोग ने पूर्व में ऐसे राजनीतिक दलों की पहचान की थी, जिन्होंने वर्ष 2005 से चुनाव नहीं लड़ा है। उसने 200 से अधिक ऐसे दलों को सूची से हटाया भी था। आयोग को संदेह है कि इनमें से अधिकर पार्टियां लोगों से दान स्वीकार करके उनके काले धन को सफेद बनाने में मदद के लिए कागजों पर मौजूद हैं। चुनाव आयोग में करीब 3 हजार पंजीकृत राजनीतिक दल हैं। इनमें से आठ की मान्यता राष्ट्रीय दल के रूप में है, जबकि 53 की मान्यता राज्य स्तरीय पार्टी के रूप में है।
यह भी पढ़ें : राजनीतिक पार्टियों को सुप्रीम कोर्ट बड़ा झटका
बताया जा रहा है कि इन दलों की मान्यता आने वाले दिनों में रद्द हो सकती है। इन 200 राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द होने के बाद से ये पार्टियां चुनाव नहीं लड़ पाएंगी।इनमें से कई राजनीतिक दल ऐसे हैं जो इनकम टैक्स ही नहीं भरते हैं और कुछ भरते हैं तो वह इसकी कॉपी चुनाव आयोग को नहीं भेजते हैं। चुनाव आयोग इन राजनीतिक पार्टियों की सूची सीबीडीटी को इसलिए भेजेगा ताकि वह उनकी वित्तीय मामलों की जांच करें क्योंकि पंजीकृत राजनीतिक दलों की सूची से बाहर होने के बाद वह फायदों से वंचित हो जाएंगे।
चुनाव आयोग को लगता है कि इस तरह की सख्ती से ऐसे लोग हतोत्साहित होंगे जो राजनीतिक दल का गठन सिर्फ काले धन को सफेद करने के लिए करते हैं। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार फिलहाल आठ राष्ट्रीय राजनीतिक दल, 58 क्षेत्रीय दल और अन्य 1786 ऐसे पंजीकृत दल हैं जिनकी कोई पहचान नहीं है।
ऐसे राजनीतिक दलों का चलन बंद करने के लिए वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति ने प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। चुनाव आयोग ने सिफारिश की थी कि राजनीतिक दल अपने सभी चंदादाताओं का रिकॉर्ड दें, भले ही यह राशि 20 हजार रुपए से कम क्यों न हो, लेकिन इस सुझाव पर अभी तक अमल नहीं किया गया है।
गौरतलब है कि मौजूदा कानून के मुताबिक सभी राजनीतिक दलों को अपने इनकम टैक्स रिटर्न में सिर्फ 20 हजार रुपए से ऊपर की राशि का ही स्रोत बताना होता है, लेकिन मजबूत कानून ना होने का फायदा उठाते हुए राजनीतिक दल अपना ज्यादातर चंदा 20 हजार रुपए से कम में और अज्ञात नाम से ही दिखाते हैं। और इस तरह उन्हें इसका स्रोत नहीं बताना पड़ता।