प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हों, 2024 का जनादेश उनके लिए स्तब्धकारी साबित हुआ है। अपने ढंग और मर्जी से सरकार चलाने के आदि नरेंद्र मोदी को अब एनडीए गठबंधन के घटक दलों संग तालमेल कर ऐसी सरकार का नेतृत्व करना है जिसकी स्थिरता को लेकर गठन पूर्व ही सवाल खड़े होने लगे हैं। ‘अबकी बार चार सौ पार’ का अहंकारपूर्ण नारा और संविधान में बदलाव की बात करने वाली भाजपा के अहंकार को जनता जनार्दन ने चकनाचूर कर यह स्पष्ट संदेश दे डाला है कि लोकतांत्रिक मूल्यों संग खिलवाड़ को भारतीय जनमानस कभी नहीं स्वीकारेगा
अठारहवीं लोकसभा चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। एनडीए गठबंधन 293 सीटों के साथ की बहुमत के जादुई आंकड़े से ज्यादा हैं वहीं इंडिया गठबंधन के खाते में 233 सीटें आई हैं। सीटों के हिसाब से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी 240 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी तो देश में सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेस 99 सीटों के साथ दूसरे तो समाजवादी पार्टी 37 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि अबकी बार 400 पार का नारा लेकर चलने वाली भाजपा के लिए चुनावी नतीजे क्यों उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे। 2019 चुनाव में 303 सीटें जीतने वाली बीजेपी इस बार 240 पर क्यों सिमट गई।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव नतीजों ने अगर किसी को सबसे बड़ा गच्चा दिया है तो वह भाजपा है। इसकी वजह ये है कि पार्टी को देश के कुछ राज्यों से उम्मीद थी कि वहां उसे बंपर सीटों पर जीत मिलेगी। लेकिन जब नतीजों का ऐलान हुआ तो उसने उसे हैरान करके रख दिया। खासकर बीजेपी को उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा जैसे राज्यों में आधी या फिर उससे ज्यादा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में पार्टी इस बात पर मंथन कर रही है कि आखिर कहां चूक हुई। सबसे बड़ी हार या कहें कि सबसे ज्यादा नुकसान हिंदी पट्टी के राज्यों से मिले झटके ने ही सिर्फ बीजेपी को सदमे में नहीं पहुंचाया है, बल्कि कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जहां जीत को लेकर बीजेपी काफी ज्यादा आश्वस्त थी। इन राज्यों में महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल भी शामिल हैं। इन राज्यों में बीजेपी को इंडिया गठबंधन से कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा। भाजपा के लिए सबसे स्तब्धकारी उत्तर प्रदेश में मिली हार है। यहां 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 74 सीटों पर जीत मिली थी। जबकि इस बार एनडीए को यहां मात्र 36 सीटें हासिल हुई हैं, जिसमें से 33 सीट बीजेपी को मिली हैं। एक तरह से यूपी में बीजेपी की सीटें आधी हो गई हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम ने न सिर्फ बीजेपी को चौंकाया है बल्कि राजनीतिक पंडितों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में सवाल है कि क्या हिंदुत्व पर सोशल इंजीनियरिंग भारी पड़ी? सपा-कांग्रेस गठबंधन की इस जीत का असर 2027 में होने वाले विट्टाानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा? बीजेपी की करारी शिकस्त की मुख्य वजह समेत ऐसे कई सवाल हैं, जिन पर सियासी जानकार भी हतप्रभ नजर आ रहे हैं।
जानकार कहते हैं कि इसी साल 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन के मौके पर पूरे उत्तर प्रदेश में जो माहौल था, उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि बीजेपी क्लीन स्वीप नहीं करेगी लेकिन तीन महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव और उसके नतीजों ने सभी को चौंकाने का काम किया है। यहां तक कि बीजेपी और आरएसएस के लिए हिंदुत्व की सबसे बड़ी प्रयोगशालाओं में से एक अयोध्या सीट पर पार्टी को हार मिली है। इतना ही नहीं संगमनगरी प्रयागराज में भी पार्टी की हार हुई जबकि वाराणसी में पीएम नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर कम रहा और वे महज डेढ़ लाख मतों से जीते।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी ने यूपी में सभी 80 सीटों और देश भर में 400 का जो नारा दिया उसे सपा और कांग्रेस ने हाथों हाथ लिया और जनता खासकर दलित व ओबीसी मतदाताओं में यह संदेश देने में सफल रहे कि अगर बीजेपी 400 पार हो गई तो संविधान बदल देगी और आरक्षण खत्म हो जाएगा। जिसके बाद बसपा का प्रमुख वोटर कांग्रेस में घर वापसी करता दिखा। जिसका फायदा न सिर्फ कांग्रेस को मिला, बल्कि सपा की सीटों में 7 गुना बढ़ोतरी देखने को मिली है। बसपा का दलित वोटर ने सपा नहीं इंडिया गठबंधन को मतदान किया, ताकि बाबा साहेब का संविधान और आरक्षण बचा रहे। दूसरी तरफ बीजेपी नेता और प्रत्याशी जमीनी स्तर पर मतदाताओं को यह समझाने में नाकाम रहे कि संविधान या आरक्षण को कोई खतरा नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार अग्निवेश कहते हैं कि 2019 में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को सबसे मजबूत माना जा रहा था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बसपा का वोट बैंक सपा को ट्रांसफर नहीं हुआ। यह बात अखिलेश यादव कई बार कह भी चुके हैं लेकिन इस बार कांग्रेस और सपा गठबंधन में बसपा का वोट इस वजह से शिफ्ट हुआ कि वह राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में कांग्रेस को बड़े खिलाड़ी के रूप में देख रहा था। इसके अलावा समाजवादी पार्टी का पीडीए फार्मूला भी हिट रहा। उन्होंने बीजेपी के मुकाबले काफी समझदारी से टिकटों का बंटवारा किया। वहीं हिंदी हार्टलैंड का दूसरा सबसे प्रमुख राज्य राजस्थान में पिछली बार एनडीए ने सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें बीजेपी को 24 सीटें मिली थीं। इस बार बीजेपी को यहां पर महज 14 सीटों से संतुष्टि करनी पड़ी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा में बीते 10 सालों में बीजेपी काफी ज्यादा मजबूत हुई थी। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां सभी 10 सीटों पर जीत मिली थी मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ और यह आंकड़ा घटकर आधा हो गया। यानी बीजेपी को यहां मात्र 5 सीटें मिली हैं।
दूसरी तरफ लोकसभा सीटों के लिहाज से दूसरा सबसे बड़ा राज्य महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी दो टुकड़ों में बंटने के बाद शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद गुट) इंडिया गठबंधन के साथ था तो वहीं शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित गुट) एनडीए के साथ खड़ा है। बीजेपी को पिछली बार यहां 23 सीटें मिली थीं, मगर इस बार यहां बदले राजनीतिक हालात के चलते उसे 9 सीटें ही हासिल हुई हैं। वहीं बंगाल में 2019 में 18 सीटें जीतने वाली बीजेपी को 12 सीटों से संतोष करना पड़ा।
हिंदुत्व पर भारी पड़ी सोशल इंजीनियरिंग
यह पहला मौका नहीं है जब हिंदुत्व के एजेंडे पर सोशल इंजीनियरिंग भारी पड़ी हो। वर्ष 1992 में बाबरी विट्टवंस के बाद जब बीजेपी की चार राज्यों में सरकार बर्खास्त कर दी गई थी उसके बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनावों में मुलायम सिंह और कांशीराम के गठबंधन के सामने राम मंदिर आंदोलन का मुद्दा कहीं नहीं टिक पाया था। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ, जिसे बीजेपी और आरएसएस समझ नहीं पाई। नतीजा यह रहा कि बड़ी संख्या में दलित और ओबीसी वोट, जिसमें बीजेपी के लाभार्थी वोटर में शामिल थे सपा और कांग्रेस की तरफ चले गए।
पहले और दूसरे चरण के बाद ही बीजेपी को अंदाजा हो गया था कि मामला हाथ से निकल रहा है। इसके बाद बीजेपी नेताओं की तरफ से हिंदू-मुस्लिम वोट के धु्रवीकरण की कोशिश की गई, लेकिन आरक्षण और संविधान के मुद्दे के सामने राम मंदिर कहीं नहीं टिका। इतना ही नहीं 2019 में जो मुस्लिम मतदाता बीजेपी की तरफ गए थे, उन्होंने भी इस बार गठबंधन के लिए एकमुश्त वोट किया। मुस्लिम मतदाताओं में इस बात का डर था कि अगर बीजेपी 400 पार गई तो कॉमन सिविल कोड और जनसंख्या नियंत्रण जैसे कानून भी ला सकती है। इसके अलावा विपक्ष की ओर से महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक और अग्निवीर योजना का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया गया। जिसकी वजह से जो युवा 2019 तक बीजेपी के साथ था, वह गठबंधन की तरफ जाता दिखा। जानकार कहते हैं कि अग्निवीर योजना को लेकर जिस तरह अखिलेश यादव और राहुल गांधी हमलावर रहे, उसका असर युवाओं पर पड़ा।
राजनीतिक जानकारों मानते हैं कि देश में भले ही एक बार फिर मोदी सरकार बनने जा रही हो, लेकिन बात अब शायद पहले जैसी नहीं होगी। क्योंकि लोकसभा चुनाव में जनता का मूड पता चल चुका है और बीजेपी के पास अब बहुमत नहीं है। ऐसे में एनडीए के सहारे सरकार बन तो जाएगी लेकिन चुनौतियां भी काफी बढ़ गई हैं। कामकाजी फैसले लेते समय बीजेपी को सहयोगी दलों का भी ख्याल रखना होगा। पूर्ण बहुमत न होने की वजह से अब कुनबे को प्राथिकता देनी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने परिवार को एकजुट रखना बड़ी चुनौती होगी। कानून और बिल में अब सरकार को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का भी ख्याल रखना होगा।
ये बात जग जाहिर है कि नीतीश और नायडू, बीजेपी के दोनों ही सहयोगी उनके प्राथमिकता वाले मुद्दों पर कभी एकजुट नहीं रहे हैं। नीतीश और नायडू दोनों ही नेता कीमत वसूलने में माहिर रहे हैं। अब बजट से लेकर राज्य तक के लिए वह मोदी सरकार से कुछ और ज्यादा की उम्मीद करेंगे। प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे का मुद्दा बना रहेगा। दोनों ही नेता बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए पहले से ही स्पेशव राज्य की मांग करते रहे हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के सहयोगी दलों की विचारट्टाारा उससे अलग है। यही वजह है कि कॉमन सिविल कोड पर मोदी सरकार को थोड़ा थमकर कदम बढ़ाने पड़ सकते हैं। इस झटके के बाद अब बीजेपी को पार्टी संगठन में भी बदलाव की ओर सोचना होगा। आने वाले दिनों में पार्टी नई शुरुआत के मूड में दिखाई दे सकती है।
पीएम मोदी ने अपने विजयी भाषण में इसके संकेत दिए कि उनकी सरकार बड़े फैसले लेगी लेकिन यह 5 साल मोदी मैजिक की चमक को फिर से वापस लाने के भी होंगे, इसके लिए मोदी सरकार को अपनी नीतियों को और धरातल पर उतरना पड़ेगा।
भाजपा का गहराता संकट
आने वाले दिनों में महाराष्ट्र, दिल्ली और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी पर अब तीनों राज्यों में बेहतर प्रदर्शन का दवाब रहेगा। दिल्ली को छोड़ बाकी दो राज्यों में चुनाव के नतीजों ने पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दिल्ली में भले ही आम आदमी पार्टी का सफाया हो गया लेकिन ये भी सच है कि विधानसभा चुनावों में उसने हमेशा जोरदार वापसी की है। ऐसे में भाजपा को इस पर विशेष ट्टयान देना होगा।
काम नहीं आया तेजस्वी का दांव
जिस तरह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और पंजाब में बड़ी मेहनत करने के बाद आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को निराशा हाथ लगी है ठीक उसी तरफ लोकसभा सीटों के लिहाज से चौथा सबसे बड़ा राज्य बिहार में राष्ट्रीय जनता दल को भी निराशा मिली है। तेजस्वी यादव ने प्रचार में बड़ी मेहनत की थी लेकिन इसका फायदा उनकी पार्टी को नहीं मिला है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल सिर्फ चार सीटों पर सिमट गई है।
सवाल है कि गठबंधन का फायदा राजद को क्यों नहीं हुआ? इसका एक कारण जो सबसे स्पष्ट दिख रहा है वह ये है कि तेजस्वी यादव ने उत्तर प्रदेश के अखिलेश यादव से सबक नहीं लिया। उन्होंने बिहार की 40 में से 11 सीटों पर यादव उम्मीदवार उतार दिए। दूसरी ओर अखिलेश यादव अपने कोटे की 62 में से सिर्फ पांच सीटों पर यादव उम्मीदवार को उतारा। बाकी सीटों पर उन्होंने गैर यादव पिछड़ी जातियों को बड़ी संख्या में टिकट दिया। दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने 25 फीसदी से ज्यादा यादव उम्मीदवार दिए। इनसे बची हुई सीटों पर ही उन्होंने गैर यादव उम्मीदवारों को तरजीह दी। इससे उनका जातियों का समीकरण नहीं बन सका।
निल बटे सन्नाटा रहा बसपा का प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव नतीजों में बहुजन समाज पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है। उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से एक भी बसपा के पाले में नहीं आई है। रिजल्ट के बाद पहली बार बसपा सुप्रीमो मायावती की प्रतिक्रिया सामने आई और उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं से अपनी नाराजगी जताई है। माया ने कहा कि पिछले कई चुनावों और इस बार लोकसभा चुनाव में उचित प्रतिनिधित्व देने के बावजूद मुस्लिम समाज बसपा को ठीक से समझ नहीं पा रहा है। अब ऐसी स्थिति में आगे इनको काफी सोच समझकर ही चुनाव में मौका दिया जाएगा ताकि पार्टी को भविष्य में इस बार की तरह नुकसान ना हो।
गौरतलब है कि इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को यूपी में शून्य सीटें मिली थीं। 10 साल बाद फिर ये इतिहास ने खुद को दोहराया। बसपा ने सबसे ज्यादा 35 मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाया था। बावजूद इसके मुस्लिमों का सारा वोट सपा और कांग्रेस में चला गया। बसपा का मुस्लिम दलित फैक्टर पूरी तरह से नाकाम रहा।
बंगाल में कायम है दीदी का जादू
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का ‘मां, माटी, और मानुष का जलवा बरकरार है। साल 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की कड़ी चुनौती के बावजूद ममता बनर्जी ने तीसरी बार सत्ता में वापसी की थी और अब फिर जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी 400 पार और बंगाल में 35 से अधिक सीटों पर जीत का दावा कर रही थी तो तृणमूल कांग्रेस ने बंपर 29 सीटों के साथ जीत हासिल की है। यहां बीजेपी साल 2019 के आंकड़े को भी नहीं छू पाई और उसकी सीटों की संख्या में भारी कमी आई है। वहीं, लेफ्ट बंगाल में फिर से अपना खाता नहीं खोल पाया है और कांग्रेस भी हाशिए पर पहुंच गई है। लोकसभा चुनाव से पहले संदेशखाली चुनाव में मुद्दा बना था। संदेशखाली में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को बीजेपी ने मुद्दा बनाया था, लेकिन इस चुनाव में संदेशखाली के मुद्दे का कोई असर नहीं हुआ।
महाराष्ट्र में नहीं चली तोड़ फोड़ की राजनीति
लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और कई राज्यों के नतीजों ने चौंकाया है। जिन राज्यों के चुनाव नतीजे भाजपा के अनुरूप नहीं आए हैं, उनमें महाराष्ट्र भी है। इस राज्य में 2019 के चुनाव में 23 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार 9 सीटों पर सिमट गई है। वहीं पिछले चुनाव में एक सीट जीतने वाली कांग्रेस इस बार 13 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इन चुनाव नतीजों से एक बात साफ हुई है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी को लोगों की सहानुभूति मिली है।
शिवसेना यूबीटी और एनसीपी (एसपी) ने बगावत, टूट देखी और दोनों के चुनाव चिन्ह छिन गए, यहां तक कि नाम भी बदलने पड़े, इसके बावजूद जनता ने इन दोनों पार्टियों को असली का तमगा देते हुए खूब सीटें दीं। महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) को 9 और एनसीपी (एसपी) को 8 सीटों पर जीत मिली है। भाजपा 9 सीटों पर सिमट गई है वहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 7 और अजित पवार की एनसीपी को सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली है। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई है।
पटनायक युग का अंत, पहली बार बीजेपी सरकार
आम चुनाव के नतीजों में मोदी मैजिक ढलान पर है, लेकिन बीजेपी के लिए अच्छी खबर उड़ीसा से है। यहां पहली बार बीजेपी सरकार बन रही है। 24 साल में पहली बार सत्ता परिवर्तन हो रहा है और यह नवीन पटनायक युग का अंत है। विधानसभा चुनाव में ही बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया बल्कि लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। चुनाव से पहले बीजेपी और बीजू जनता दल (बीजेडी) के गठबंधन की कोशिश भी हुई थी और लगभग यह फाइनल स्टेज तक पहुंच गया था। सीटों के बंटवारे को लेकर फिर बात नहीं बन पाई और बीजेपी-बीजेडी ने एक दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लड़ा। बीजेपी ने यहां उड़ीसा अस्मिता, उड़ीसा गौरव को मुद्दा बनाया और इसका असर भी दिखा। बीजेपी ने सबसे ज्यादा निशाना नवीन पटनायक की जगह उनके सहयोगी और करीब वी.के. पांडयन पर साधा और चुनाव में इसे बहुत बड़ा मुद्दा बनाया। उड़ीसा विधानसभाओं में बीजेपी जहां अपने बूते सरकार बना रही है, वहीं प्रदेश की लोकसभा की 21 सीटों में से 19 सीटें भी बीजेपी के खाते में आई। पिछली बार बीजेपी को 8 सीटें मिली थी। पिछला लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी बीजेपी और बीजेडी ने अलग- अलग ही लड़ा था। लेकिन इस बार 147 सीटों की विधानसभा में भाजपा को प्रचंड बहुमत के साथ 78 तो बीजेडी 51 और कांग्रेस को 14 सीटें मिली हैं।
आंध्र प्रदेश में हुई टीडीपी की वापसी
आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव भी हुए और राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया है। आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजों के हिसाब से तेलुगू देशम पार्टी को बहुमत से ज्यादा सीटें मिली हैं। हालांकि उसने राज्य में भारतीय जनता पार्टी और जन सेना पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा है। वहीं वाईएसआर कांग्रेस की स्थिति काफी कमजोर है।
प्रदेश में विधानसभा की 175 सीटों के नतीजे सामने आ चुके हैं। इस बार का चुनाव परिणाम टीडीपी के पक्ष में चला गया है। राज्य में चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी ने धमाकेदार प्रदर्शन किया है, वहीं, पार्टी को मिली करारी हार के बाद वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। दूसरी तरफ भाजपा के राज्य प्रभारी सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि इस ऐतिहासिक चुनाव में एनडीए गठबंधन को जीत मिली। उन्होंने कहा कि, अब आंध्र प्रदेश के नए मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू होंगे।
गौरतलब है कि चंद्रबाबू ने राज्य में 5 साल बाद धमाकेदार वापसी की है। नायडू की पार्टी टीडीपी आंध्र प्रदेश विधानसभा की 175 सीटों में से 134 सीटों पर जीत दर्ज कर नंबर 1 पार्टी बनकर उभरी है। जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी को महज 11 सीटों पर जीत मिली वहीं बीजेपी को 8 और जनसेना पार्टी को 21 सीटें मिली हैं।
अरुणाचल में फिर बीजेपी, सिक्किम में एसकेएम
देश के दो पूर्वाेत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में भी लोकसभा के साथ हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आ गए हैं। अरुणाचल में बीजेपी को लगातार तीसरी बार बहुमत मिला है वहीं सिक्किम में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने बाजी मारी है। सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा को यहां की कुल 32 में से 31 सीटों पर जीत मिली है। चुनाव आयोग के अनुसार अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में कुल 60 सीटों में से बीजेपी के 46, नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीईपी) को 5, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को 3, पीपल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) को दो और कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली है वहीं तीन सीटों पर स्वतंत्र उम्मीदवारों को जीत मिली हैं।
बीजेपी ने न केवल यहां अपनी जीत बनाए रखी है बल्कि सीटों की संख्या में भी इजाफा किया है। यहां की दस सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। 2019 की बात की जाए तो उस समय यहां बीजेपी को 41 सीटों पर जीत मिली थी। वोट प्रतिशत के मामले में यहां बीजेपी को 54.57 फीसदी वोट मिले हैं, वहीं नेशनल पीपल्स पार्टी को 16.11 फीसदी और एनसीपी को 10.43 फीसदी वोट मिले हैं।
आम चुनाव में सबसे बड़ी जीत
शंकर लालवानी: मध्य प्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट से भाजपा के शंकर लालवानी ने इस चुनाव में 11 लाख 75 हजार 92 मतों से सबसे बड़ी जीत दर्ज की है। उन्हें कुल 12 लाख 26 हजार 751 मत मिले।
रकीबुल हुसैन: असम की धुबरी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार रकीबुल हुसैन ने 10 लाख 12 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की।
शिवराज सिंह चौहान: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की विदिशा लोकसभा क्षेत्र से 8 लाख 21 हजार वोटों से जीत दर्ज की है।
सीआर पाटिल: गुजरात की नवसारी सीट पर भाजपा उम्मीदवार सीआर पाटिल ने लगातार दूसरे आम चुनाव में बड़े मतों के अंतर से जीत दर्ज की। उन्होंने विपक्षी उम्मीदवार को 7 लाख 73 हजार 551 मतों के अंतर से हराया। उन्हें कुल 10 लाख 31 हजार 65 वोट मिले।
अमित शाह: गुजरात की गांधीनगर सीट पर अमित शाह ने 7 लाख 44 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की।
सबसे कम मतों के अंतर से जीत
रविंद्र दात्ताराम वायकर: महाराष्ट्र की मुंबई उत्तर पश्चिम सीट से शिवसेना (सिंदे) गुट के उम्मीदवार रविंद्र दात्ताराम वायकर ने सबसे कम मात्र 48 मतों के अंतर से विजयी हुए। उन्हें कुल 4 लाख 52 हजार 644 मत मिले। उन्होंने शिवसेना (यूबीटी) के अमोल गजानन कीर्तिकर को हराया।
अडूर प्रकाश: केरल की अत्तिंगल सीट से कांग्रेस उम्मीदवार अडूर प्रकाश ने 684 मतों के अंतर से जीत हासिल की। उन्हें कुल 3 लाख 28 हजार 51 मत मिले। उन्होंने माकपा के वी. जॉय को हराया।
भोजराज नाग: छत्तीसगढ़ की कांकेर सीट से भाजपा उम्मीदवार भोजराज नाग ने 1 हजार 884 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। उन्हें कुल 5 लाख 97 हजार 624 मत मिले। उन्होंने कांग्रेस के बीरेश ठाकुर को हराया।
मनीष तिवारी: चंडीगढ़ सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता मनीष तिवारी 2 हजार 504 मतों के अंतर से जीते। उन्हें कुल 2 लाख 16 हजार 657 मत मिले। उन्होंने भाजपा के संजय टंडन को हराया।
मोहम्मद हमदुल्ला सईद: लक्षद्वीप सीट पर कांग्रेस के मोहम्मद हमदुल्ला सईद 2 हजार 647 मतों के अंतर से जीत दर्ज की। उन्हें कुल 2 लाख 57 हजार 26 मत मिले। उन्होंने राकांपा (शरद पवार) के उम्मीदवार मोहम्मद फैजल को पटखनी दी।
वो दिग्गज जिन्हें मिली पटखनी
स्मृति ईरानी: उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीट अमेठी से भाजपा प्रत्याशी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी लाल ने उन्हें 1 लाख 67 हजार 196 वोटों से हराया है। पिछली बार इसी सीट से स्मृति ने राहुल गांधी को हराया था।
निरंजन ज्योति: यूपी की फतेहपुर लोकसभा सीट से मोदी मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री निरंजन ज्योति को भी हार मिली।
वी मुरलीधरन: केंद्रीय मंत्री रहे वी मुरलीधरन केरल की अत्तिंगल लोकसभा सीट से हार गए।
अर्जुन मुंडा: झारखंड की खूंटी लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को हराकर कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने जीत हासिल की वहीं मुजफ्फरनगर में साल 2014 से लगातार सांसद चुने जा रहे संजीव बालियान का जादू भी इस बार नहीं चल पाया।
राजीव चंद्रशेखर: केरल के तिरुवनंतपुरम से शशि थरूर ने केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को 16 हजार वोटों से हराया है।
अजय मिश्रा टेनी: लखीमपुर खीरी से केंद्रीय मंत्री रहे अजय मिश्रा टेनी को सपा के उत्कर्ष वर्मा ने 34 हजार वोटों से हराया।
महेंद्र नाथ पांडे: केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे को यूपी के चंदौली लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा तो पश्चिम बंगाल की बांकुरा सीट से चुनाव लड़ने वाले केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार को भी हार मिली।
अधीर रंजन चौधरी: पश्चिम बंगाल की बहरामपुर सीट से कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें टीएमसी के यूसुफ पठान ने हराया।
दिनेश लाल यादव: भोजपुरी सुपरस्टार और आजमगढ़ से भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव को सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव ने 1 लाख 61 हजार से ज्यादा वोटों से हराया है।
माधवी लता: हैदराबाद से भाजपा प्रत्याशी माट्टावी लता को हार का सामना करना पड़ा है। ओवैसी ने माधवी लता को 3 लाख से ज्यादा वोटों से हराया है।
मेनका गांधी: उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर से भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी हार गई हैं। उन्हें सपा प्रत्याशी रामभुवल निषाद ने 4 लाख 31 हजार 74 वोटों से हराया।
महबूबा मुफ्ती: जम्मू कश्मीर की अनंतनाग राजौरी सीट से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अट्टयक्ष और पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती चुनाव हार गई हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रत्याशी मियां अल्ताफ अहमद ने उन्हें 2 लाख 81 हजार 794 वोटों से हराया है।
कन्हैया कुमार: नार्थ-इस्ट दिल्ली लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कन्हैया कुमार को भाजपा के मनोज तिवारी ने 1 लाख 37 हजार 66 वोटों से हरा दिया है।
दिग्विजय सिंह: मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को एमपी के राजगढ़ से हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर ने भारी मतों से पटखनी दी।
उमर अब्दुल्लाह: बारामुला से निर्दलीय प्रत्याशी अब्दुल राशिद शेख ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह को 2 लाख 4 हजार 142 वोटों से हराया।
अजय राय: उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय को हार का सामना करना पड़ा है। उन्हें नरेंद्र मोदी ने 1 लाख 50 हजार से ज्यादा मतों से हराया।
भूपेश बघेल: छत्तीसगढ़ की हाई प्रोफाइल सीट राजनांदगांव लोकसभा सीट पर बीजेपी उम्मीदवार संतोष पांडेय ने भूपेश बघेल को हारा दिया है।
सबसे युवा विजेता
पुष्पेंद्र सरोज: उत्तर प्रदेश की कौशांबी लोकसभा सीट से सपा के महज 25 साल के पुष्पेंद्र सरोज लोकसभा पहुंचने वाले देश के सबसे युवा उम्मीदवार बन गए हैं। उनकी जीत इसलिए भी बड़ी है क्योंकि उन्होंने मौजूदा बीजेपी सांसद विनोद कुमार सोनकर को एक लाख से अधिक वोटों से हराया है और अब वो कौशांबी लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में करेंगे।
प्रिया सरोज: उत्तर प्रदेश की मछलीशहर लोकसभा सीट से
समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार प्रिया सरोज 25 साल की हैं उन्होंने बीजेपी के भोलानाथ को हराकर सनसनी फैला दी है।
शांभवी चौधरी: बिहार की नीतीश कुमार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी 18वीं लोकसभा की सबसे युवा सांसदों में हैं। 25 साल की शांभवी चौधरी बिहार की समस्तीपुर लोकसभा सीट से लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) पार्टी की उम्मीदवार थी उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार सन्नी हजारी को हराया है। अब शांभवी अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों की नुमाइंदगी संसद में करेंगी।
संजना जाटव: इस फेहरिस्त में राजस्थान की भरतपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार संजना जाटव भी शामिल हैं। अब वो भी अपने
लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में करेंगी। उन्होंने बीजेपी के रामस्वरुप कोली को हराया है। वैसे संजना ने नवंबर 2023 में राजस्थान विधानसभा चुनाव भी लड़ा था लेकिन वो बीजेपी उम्मीदवार से सिर्फ 409 वोट से हार गई थीं।
सबसे बड़ी हार-जीत
आम चुनाव 2024 के परिणामों में भारतीय जनता पार्टी जहां अकेले बहुमत तक नहीं पहुंच सकी वहीं विपक्षी ‘गठबंधन इंडिया’ को खासी मजबूती मिली है। बावजूद इसके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनती दिख रही है। खुद प्रधानमंत्री मोदी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त दिखे। इस सब से इतर कई जीत-हार बड़ी रोचक रहीं। एक ओर जहां किसी ने करीब 12 लाख मतों के अंतर से जीत दर्ज की वहीं दूसरी तरफ महज 48 मतों से हार भी हुई है
पहली बार संसद पहुंचे
1. बॉलीवुड फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत ने पहली बार अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह को हराकर पहली चुनावी जीत अपने नाम की।
2. फिल्म अभिनेत्री रचना बनर्जी ने बीजेपी की ओर से चुनाव लड़ लॉकेट चौटर्जी को पटखनी देकर पहली चुनावी जीत दर्ज की है।
3. समाजवादी पार्टी की युवा नेता इकरा हसन ने भी पहली बार में ही चुनाव जीत लिया है। भले वह पहली बार चुनाव लडीं लेकिन उनका परिवार भी राजनीति में नया नहीं है। इकरा के दादा, पिता व मां सांसद रह चुके हैं, जबकि उनका भाई नाहिद हसन लगातार तीसरी बार विधायक हैं।
4. क्रिकेट के बाद राजनीति की पिच पर खेलने आए अपने दौर के धाकड़ बल्लेबाज यूसुफ पठान ने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की बहरामपुर सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी को हराकर लोकसभा की अपनी पहली पारी का डेब्यू कर लिया है।
5. गाजियाबाद से इस बार भाजपा ने जनरल वीके सिंह को हटाकर अतुल गर्ग को टिकट दिया था। उन्होंने कांग्रेस की डॉली शर्मा को मात देकर अपनी पहली जीत दर्ज की है।
6. भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण को उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से बड़ी जीत मिली है। उन्होंने यह मुकाम पहली बार में ही पा लिया है। इनके अलाव कई ऐसे नए सांसद जीते हैं बने हैं जो पहली बार संसद में पहुंचेंगे।