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भाजपा आलाकमान ने पिछले हफ्ते राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ को राजस्थान का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। ये वही राठौड़ हैं जिन्होंने पिछले साल राजस्थान विधानसभा चुनाव में पाली की सुमेरपुर विधानसभा से जोराराम कुमावत को टिकट दिए जाने से नाराज होकर मोर्चा खोल निर्दलीय पर्चा भरने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद बीजेपी हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद वे इरादा बदल देते हैं। पार्टी चुनाव के बाद उन्हें राज्यसभा सांसद बनाती है और उसके बाद अब वे पार्टी के नए प्रमुख बन गए हैं। पिछले छह महीनों में पार्टी ने उनको दो बड़ी जिम्मेदारियां सौंपी हैं। अब सवाल उठ रहा है कि आखिर मदन राठौड़ को ही पार्टी ने क्यों प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया? इसके कई सियासी मायने निकले जा रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि मदन राठौड़ मूल ओबीसी की जाति घांची समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वे पीएम मोदी के बेहद करीबी बताए जाते हैं। गुजरात में जब मोदी मुख्यमंत्री थे तब वे बतौर प्रभारी चुनाव में बीजेपी का काम देखते थे। राजस्थान में घांची समुदाय की ठीक-ठाक आबादी है। ऐसे में इस दांव के जरिए भाजपा ओबीसी को साधने की कवायद में है।

राजस्थान में 55 फीसदी वोटर्स ओबीसी में आते हैं। जिनका प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। इनमें जाट भी शामिल हैं। राजस्थान को ओबीसी की प्रयोगशाला भी कहा जाता है क्योंकि यहां 10-15 नहीं बल्कि पूरी 36 जातियां ओबीसी में शामिल हैं। देश के किसी राज्य में ओबीसी वोट बैंक में इस प्रकार सोशल इंजीनियरिंग कहीं पर भी नहीं है। ऐसे में पार्टी ने सभी 36 समुदायों को साधने के लिए ओबीसी चेहरे पर दांव खेला है। इतना ही नहीं प्रदेश के 25 में से 12 सांसद ऐसे हैं जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। यह भी एक बड़ी संख्या है।

ऐसे में कहा जा सकता है कि हरियाणा के बाद अब बीजेपी राजस्थान में भी जाटों से दूर होती जा रही है या यूं कहे कि पार्टी को अब जाटों की जरूरत नहीं है। लोकसभा चुनाव में शेखावटी और पूर्वी राजस्थान में बीजेपी का सूपड़ा साफ होने के बाद पार्टी ने नई रणनीति के तहत ओबीसी वोट बैंक पर नजर बनाई है। राजस्थान में जाटों की ठीक-ठाक आबादी है। राजपूतों के बाद जाट राजस्थान में दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक माना जाता है। लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार के बाद अब हाईकमान ने उनसे किनारा करने का मन बना लिया है।

प्रदेश में अब तक का इतिहास देखें तो जाट, ब्राह्माण और राजपूत प्रदेश अध्यक्ष बनते आए हैं। हालांकि बीजेपी ने अजमेर से सांसद भागीरथ चौधरी को केंद्रीय मंत्री बनाकर जाटों की नाराजगी कुछ हद तक दूर करने की कोशिश की है लेकिन ये नाकाफी है। पार्टी को यहां पर गौर करना होगा कि हरियाणा की तुलना में राजस्थान में जाटों की नाराजगी ज्यादा नहीं है लेकिन पार्टी अभी तक यह भांप पाने में विफल रही है। लोकसभा चुनाव में दलित समुदाय भी बीजेपी से खिसका है। इसकी एक मिसाल गंगानगर-हनुमानगढ़ और पूर्वी राजस्थान में देखने को मिली। जब पार्टी ने पूर्वी राजस्थान की अलवर और जयपुर सीट छोड़कर बाकी सभी सीटें गंवा दी।

विपक्ष के संविधान खत्म करने वाले नैरेटिव को बीजेपी तोड़ नहीं पाई इसका नुकसान पार्टी को हुआ। लेकिन मीणा, जाटव-कोली समेत राजस्थान की कई दलित जातियां पार्टी से नाराज है इसमें कोई दोराय नहीं है। ऐसे में पार्टी केवल ओबीसी वोट बैंक के सहारे अगले विधानसभा चुनाव तक नहीं जा सकती। उन्हें बड़ी जातियों और दलितों को साथ लेकर चलना ही पड़ेगा। दूसरी तरफ मदन राठौड़ को बीजेपी अध्यक्ष बनाए जाने पर भाजपा नेताओं का कहना है कि जातीय राजनीति से ऊपर उठकर मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाना राष्ट्रीय नेतृत्व का सीधा संदेश है कि सब का साथ सब का विकास ही हमारी प्राथमिकता है।

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