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शिक्षक भर्ती घोटाला: तू डाल-डाल, मैं पात-पात

‘‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’’। ये स्थिति है यूपी में भ्रष्टाचार की। सूबे में चाहें किसी की भी सरकार रही हो लेकिन यूपी के तथाकथित भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी सरकार और उसकी योजनाओं पर भारी पड़ ही जाते हैं। चाहें कितनी ही फूलप्रूफ योजनाएं क्यों न बना ली जाएं, बाबू से लेकर अफसर तक उसमें सेंध लगा ही लेते हैं। यूपी में भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों की करतूतों से जुड़ा ऐसा ही मामला उस वक्त प्रकाश में आया जब परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए पहली बार करायी गयी लिखित परीक्षा का परिणाम सामने आया। परिणाम सामने आने पर ऐसे-ऐसे कारनामे प्रकाश में आए कि दांतों तले उंगली दबाने पर विवश हो जाना पडे़। 
विगत दिनों परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में 68500 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए उत्तर प्रदेश में पहली बार कराई गई लिखित परीक्षा के परिणाम में कई ऐसे मामले सामने आए जिससे यह साबित हो गया है कि सरकार भ्रष्टाचारमुक्त प्रदेश बनाने के लिए लाख दावे कर ले लेकिन भ्रष्ट अफसर कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते। परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय ने दो ऐसे अभ्यर्थियों को सफल घोषित कर दिया जो परीक्षा में शामिल ही नहीं हुए थे। यही नहीं, परीक्षा में फेल कुल 23 अभ्यर्थियों को पास भी कर दिया गया। इन 23 अभ्यर्थियों में से 3 ने तो आवेदन भी नहीं किया था। शेष 20 अभ्यर्थियों ने शिक्षक भर्ती के लिए आॅनलाइन आवेदन किया था और फेल होने के बावजूद इन्हें जिलों का आवंटन भी कर दिया गया। हालांकि अफसरों ने बेहद शातिराना अंदाज में अपने नाते-रिश्तेदारों को लाभान्वित करने के लिए यह खेल खेला था लेकिन विभाग के ही कुछ कर्मचारियों की सक्रियता की वजह से भ्रष्टाचार का खुलासा हो गया। दावा तो यह किया जा रहा है कि अब उन अधिकारियों की खैर नहीं जो इस भ्रष्टाचार में शामिल थे, वहीं दूसरी ओर विभागीय कर्मचारी यह दावा कर रहे हैं गड़बड़ी करने वाले अफसरों को कार्रवाई की जद में लाने के बजाए कुछ निचले क्रम के कर्मचारियों को ही बली का बकरा बनाकर हाथ झाड़ लिए जायेंगे। फिलहाल जिन जिलों में इन 20 फेल अभ्यर्थियों को भेजा गया था वहां के बेसिक शिक्षा अधिकारियों को पत्र भेजकर इन्हें नियुक्ति पत्र जारी करने से रोक दिया गया है। बताते चलें कि मैनपुरी, अलीगढ़, बाराबंकी, सीतापुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, बलरामपुर, मुरादाबाद, जौनपुर, चित्रकूट, बुलंदशहर, गोंडा और मेरठ में फेल अभ्यर्थियों को भेजा गया था। जब अभ्यर्थियों ने रोष प्रकट करते हुए जानकारी मांगी तो उप सचिव (बेसिक शिक्षा परिषद) स्कन्द शुक्ल की ओर से यह कहा गया कि किन्हीं अपरिहार्य कारणों से नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया जा सका है जबकि दावा किया जा रहा है कि भ्रष्टाचार की पोल खुल जाने के पश्चात फंसने से बचने के लिए ही नियुक्ति पत्र रोके गए। दूसरी ओर पास अभ्यर्थियों को फेल दिखा दिया गया। अंकित वर्मा और मनोज कुमार की स्कैन्ड काॅपियां मिलने के बाद मामले का खुलासा हुआ। शिकायत दर्ज करवाने वाले अभ्यर्थियों की बात सही साबित हुई। अंकित वर्मा की काॅपी पर 122 नंबर दर्ज  थे जबकि उसे परिणाम में सिर्फ 22 नंबर दिया गया। इसी प्रकार मनोज की काॅपी पर 98 अंक थे और रिजल्ट में मात्र 19 नंबर देकर फेल कर दिया गया। इसके साथ ही सोनिका देवी की काॅपी बदलने के प्रकरण से भी परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय संदेह के दायरे में आ चुका है।
भ्रष्टाचार का एक नायाब उदाहरण और देखिए। 68500 सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा में जिन दो अभ्यर्थियों को परिणाम में सफल घोषित किया गया था उन्होंने शिक्षक भर्ती के लिए आॅनलाइन आवेदन ही नहीं किया था। यानी वे परीक्षा में भी शामिल होने के हकदार नहीं थे फिर भी उन्हें पास करके उन्हें जिला आवंटित कर दिया गया था। एक अन्य अभ्यर्थी फेल होने के बावजूद रिजल्ट में पास कर दिया गया, हैरत तो इस बात की है कि उसने भी नौकरी के लिए आवेदन फार्म नहीं भरा था।
गौरतलब है कि विगत 27 मई को 248 परीक्षा केंद्रों पर पहली बार लिखित परीक्षा को आयोजित किया गया था जिसमें 125745 अभ्यर्थियों में से 107908 (85.81 प्रतिशत) परीक्षा में उपस्थित थे। हाल ही में 13 अगस्त को परीक्षा परिणाम घोषित किया गया जिसमें 41556 अभ्यर्थी (38.52 या 39 प्रतिशत) उत्तीर्ण घोषित किए गए थे। 150 अंकों की परीक्षा में 67 (45 प्रतिशत) नंबर पाने वाले सामान्य व ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थी पास हुए जबकि 60 अंक (40 प्रतिशत) अंक पर एससी/एसटी वर्ग के अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया गया था।
फिलहाल इस मामले को लेकर सरकार की छवि पर सवाल उठ खडे़ हुए हैं। साथ ही इस मामले को कोर्ट में भी चुनौती दी जाने वाली है। दूसरी ओर जिन अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किए गए हैं वे बेसिक शिक्षा परिषद के सम्बन्धित अधिकारियों पर घूसखोरी का आरोप लगा रहे हैं।

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