मौजूदा समय में पूरी दुनिया आर्थिक संकट से जूझ रही है। इसकी चपेट में आकर पड़ोसी देश श्रीलंका तो लगभग दिवालिया हो चुका है। अब इस आर्थिक और सियासी शोर ने भारत की भी चिंता बढ़ा दी है। हालत यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर तक कम हो गया है। इसके पीछे की वजह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का स्थानीय इक्विटी से निवेश वापस लेना है, जिसकी वजह से पहली बार ऐसा हुआ है कि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79 के आंकड़े को पार कर गया है
पिछले दो वर्षों में कोरोना महामारी और अब चार महीनों से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते मौजूदा समय में पूरी दुनिया आर्थिक संकट से जूझ रही है। इस संकट की चपेट में आकर कई देश दिवालिया होने के कगार पर हैं। पड़ोसी देश श्रीलंका तो लगभग दिवालिया हो चुका है। लेकिन श्रीलंका में मचे इस आर्थिक और सियासी शोर की आवाज ने भारत की भी चिंता बढ़ा दी है।
मंदी की आहट के बीच भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर तक कम हो गया है, इसके पीछे की वजह विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का स्थानीय इक्विटी से निवेश वापस लेना है, जिसकी वजह से पहली बार ऐसा हुआ है, कि डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 79 के आंकड़े को पार कर गया है। अर्थशास्त्रियों ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने पूंजी प्रवाह को आकर्षित करने के कदमों के साथ रुपए की गिरावट रोकने की कोशिश की, लेकिन विदेशी मुद्रा मांग और आपूर्ति असंतुलन के उपाय करने में अभी और वक्त लगेगा।
विदेशी मुद्रा भंडार में कमी
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 1 जुलाई को भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार 588.314 अरब डॉलर था। इसमें से विदेशी मुद्रा संपत्ति 524.745 अरब डॉलर थी, जबकि सोने में रखे गए भंडार का मूल्य 40.422 अरब डॉलर था। शेष राशि को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास स्पेशल ड्राविंग राइट्स और रिजर्व के रूप में रखा जाता है। भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले 3 साल से लगातार कमी हो रही है और सितंबर 2021 को भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार में 642.453 अरब डॉलर की राशि जमा थी, जिसमें अभी तक 55 अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है। वहीं, भारत के केंद्रीय बैंक ने फरवरी से अब तक मुद्रा की रक्षा के लिए 46 अरब डॉलर से अधिक खर्च किए हैं।
भारतीय करेंसी रुपया, जो रिकॉर्ड स्तर 80 के करीब है, उसके आने वाले समय में सुधरने के संकेत नहीं दिख रहे हैं और विदेशी कर्ज के भुगतान की वजह से आने वाले वक्त में रुपए का फिसलना और भी तेज रफ्तार से जारी रह सकता है। भारत के सामने मुसीबत सिर्फ इतना नहीं है कि विदेशी कर्ज काफी ज्यादा हो चुका है, इसके साथ ही भारत के व्यापार घाटे में भी भारी इजाफा हो गया है और इस वजह से भी रुपए पर प्रेशर बढ़ा है।
विदेशी कर्ज ने बढ़ाई परेशानी
भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक, पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले भारत पर विदेशी कर्ज में 47.1 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है और इस वित्तीय वर्ष में भारत पर कुल विदेशी कर्ज बढ़कर 620.7 अरब डॉलर हो गया है। हालांकि पिछले वित्तीय वर्ष से तुलना करें, तो विदेशी कर्ज हमारी कुल जीडीपी का 19.9 प्रतिशत रह गया था, जो उससे पिछले वित्त वर्ष यानी 2020-21 में 21.2 प्रतिशत था। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत के ऊपर दीर्घकालिक कर्ज (मूल परिपक्वता एक साल से ज्यादा) 499.1 अरब डॉलर हो गया है, जो मार्च 2021 की तुलना में 26.5 अरब डॉलर ज्यादा है। जबकि इस वित्तीय वर्ष में भारत पर अल्पकालिक कर्ज में 19.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो एक साल पहले 17.6 प्रतिशत था। लेकिन, अल्पकालिक कर्ज ने ही भारत सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर दी है, क्योंकि भारत को इस साल ही अल्पकालिक ऋण का भुगतान करना है।
भारत को चुकाना है इतना विदेशी कर्ज
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत पर जो कुल करीब 621 अरब डॉलर का कर्ज है, उसका करीब 40 प्रतिशत हिस्सा, यानी 267 अरब डॉलर का विदेशी ऋण भारत सरकार को अगले 9 महीने में चुकाने हैं जो भारत के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। यह पुनर्भुगतान भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के लगभग 44 फीसदी के बराबर है। यानी भारत अगर इस कर्ज को चुकाता है, तो भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार काफी तेजी से नीचे आ जाएगा और भारत में दैनिक सामानों की कीमत में भारी इजाफा हो सकता है। वहीं करेंसी टेंडर्स का कहना है कि कई कॉरपोरेट्स ने अमेरिकी डॉलर में मूल्यवर्ग के ऋण को चुकाने के लिए या तो नए सिरे से ऋण लिया है या संचित निर्यात आय के साथ समझौता किया होगा, लेकिन इन फंडों को चुकाने की कम अवधि में रुपए पर दबाव डाल सकती है।
व्यापार घाटे में बनाया रिकॉर्ड
ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत का व्यापार घाटा सिर्फ जून महीने में बढ़कर रिकॉर्ड 25.63 अरब डॉलर हो गया है, जो भारत के लिए बड़ा झटका है। केंद्र सरकार की कोशिश लगातार व्यापार घाटे को पाटने की रही है, ताकि देश का निर्यात बढ़ाने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाया जाए, लेकिन इस पहल में सरकार को बड़ा झटका लगा है। रिकॉर्ड व्यापार घाटे के पीछे की सबसे बड़ी वजह पेट्रोलियम, कोयले और सोने के आयात में भारी बढ़ोतरी को बताया जा रहा है, वहीं जून महीने में भारत के निर्यात में भारी गिरावट भी दर्ज की गई है, जिससे रुपए में गिरावट आई है और बड़े करेंट अकाउंट डेफिसिट (सीएडी) के बारे में चिंता बढ़ गई है। हाल ही में जारी भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जून में भारत का व्यापारिक निर्यात 16.8 से बढ़कर 37.9 अरब डॉलर हो गया है, जो मई के मुकाबले 20.5 फीसदी से कम था, जबकि भारत के आयात में 51 फीसदी का उछाल आया है और जून महीने में भारत का आयात बढ़कर 63.58 अरब डॉलर हो गया है।
देश के अधिकांश राज्यों की वित्तीय स्थिति बेहद खराब हो चली है जिसका सीधा असर देश की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है। राज्यों की वित्तीय हालत पर आरबीआई की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट में इन राज्यों की वित्तीय स्थिति और कर्ज के प्रबंधन पर थ्चंता जाहिर की गई है। आरबीआई की मासिक रिपोर्ट के अनुसार ऐसे राज्यों को चिÐत किया गया है जो कर्ज के जाल में धंसते चले जा रहे हैं। आरबीआई ने इन राज्यों को चेतावनी दी है कि अगर इन्होंने खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरीके से नहीं किया तो स्थिति गंभीर हो सकती है। आरबीआई की ओर देश के पांच ऐसे राज्यों का जिक्र किया गया है जो धीरे-धीरे डेट ट्रैप में फंसते जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य कर्ज के भारी बोझ से दबे हैं। कर्ज के अलावा इन राज्यों का आमदनी और खर्च का प्रबंधन भी ठीक नहीं है। यानी ये राज्य ऐसी जगहों पर खर्च नहीं कर रहे हैं जहां से आमदनी के स्रोत पैदा हो। यही वजह है कि इन राज्यों में भविष्य में कर्ज की स्थिति और भयावह हो सकती है। यही नहीं इन राज्यों का वित्तीय घाटा भी चिंताएं बढ़ा रहा है। आरबीआई ने इन राज्यों को जरूरत से ज्यादा सब्सिडी का बोझ घटाने की सलाह दी है।
क्या है कर्ज का मानक
भारत सरकार ने एफआरबीएम कानून में बदलाव की जरूरत को महसूस करते हुए एनके सिंह समिति का गठन किया था। इस समिति ने अपनी सिफारिशों में केंद्र और राज्यों की वित्तीय जवाबदेही के लिए कुछ मानक भी तय किए थे। समिति ने सरकार के कर्ज के लिए जीडीपी के 60 फीसदी की सीमा तय की है। यानी केंद्र सरकार का डेट टू जीडीपी रेश्यो 40 फीसदी और राज्य सरकारों का सामूहिक कर्ज 20 फीसदी तक ही रखने की सिफारिश की गई। अब अगर आरबीआई की रिपोर्ट में राज्यों के कर्ज की स्थिति देखें तो कर्ज के मामले में टॉप पांच राज्यों का कर्ज रेश्यो 35 फीसदी से भी ऊपर है।
आरबीआई की मासिक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार, केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के अलावा पांच और ऐसे राज्य हैं जहां कर्ज की समस्या कभी भी विकराल हो सकती है। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड और मध्य प्रदेश इन राज्यों का भी डेट टू स्टेट जीडीपी रेश्यो मानक 20 फीसदी से कहीं ऊपर है। जितना बड़ा प्रतिशत यानी उतनी कम राज्य की कर्ज चुकाने की क्षमता इसका सीधा मतलब यह है कि ये राज्य डिफॉल्ट की स्थिति की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।
ऐसे में अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कर्ज में डूबे पड़ोसी देश श्रीलंका की स्थिति आज भारत के कुछ राज्यों के समान है। यदि ये राज्य भारतीय संघ का हिस्सा न होते तो अब तक गरीब हो चुके होते। इसका कारण राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों में की गई लोकलुभावन घोषणाएं हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए उन्हें अत्यधिक कर्ज लेना पड़ता है।