भारत में जनसँख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर है। लेकिन कोरोना काल के बाद से स्कूली शिक्षा में आये परिवर्तन का यहाँ अत्यधिक असर देखने को मिला है। हाल ही में किये गए उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग के हाउसहोल्ड सर्वे रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के स्कूलों में ड्रॉप आउट की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।
जिसकी वजह यूपी में अशिक्षित दर बढ़ सकता है। रिपोर्ट में बताया कि साल 2020-21 में 4.81 लाख बच्चों ने , साल 2021-22 में 4 लाख से अधिक ने और साल 2022-23 में करीब 3.30 लाख बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया। स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यूपी सरकार ने 12 लोगों की टीम को नीदरलैंड भेजने का फैसला किया है। ये टीम वहां जाकर ‘प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली’ का अध्ययन करेगी, जिसके द्वारा ड्रॉप आउट में कमी आ सकती है। सरकार का कहना है कि इस मॉडल से यूपी को स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को फिर से स्कूल लाने में मदद मिल सकती है।
क्या है अर्ली वार्निंग सिस्टम?
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को अंग्रेजी में अर्ली वार्निंग सिस्टम कहा जाता है। जिसके अनुसार, यदि कोई बच्चा लगातार 40 दिनों तक स्कूल नहीं जाता है तो उसकी ट्रैकिंग शुरू कर दी जाती है और उसके अभिभावकों से बात चीत करके बच्चे के स्कूल न जाने के कारण पता लगाया जाता है।
कारण का पता लगने के बाद स्कूल में उपस्थित न रहने वाले बच्चों को वापस स्कूल लाने के लिए टीम का गठन किया जाएगा, जो इन्हें वापस स्कूल में लाने के लिए हर तर से प्रयास करेगी। सरकार के अनुसार नीदरलैंड की इस प्रणाली से स्कूलों में उपस्थित न रहने वाले बच्चों को स्कूल वापस लाने का प्रयास किया जायेगा। अगर इस साल उत्तर प्रदेश में ये सिस्टम लागू हो जाता है तो उत्तरप्रदेश अर्ली वार्निंग सिस्टम अपनाने वाला देश का पहला राज्य बन जायेगा ।
जनता में जागरूकता
स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के साथ-साथ अब उनके माता-पिता को प्रोत्साहित करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की योजना बना रही है। इस योजना को नीदरलैंड्स के अर्ली वार्निंग सिस्टम के साथ-साथ भी लागू किया जा सकता है। रिपोर्ट्स के अनुसार साल 2023 के आखिर तक इस प्रणाली को लागू किया जा सकता है। नीदरलैंड की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के आधार पर स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की जाएगी।