“सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना” यह बात दशकों वर्ष पहले मशहूर कवि पास ने कही थी। पास की लोकप्रिय कविता की इस पहली लाइन को लिखकर प्रेक्षा मेहता ने अपने आपको मौत के गले लगा लिया। रात को मौत को गले लगाने से पहले उसने अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर यह अंतिम वाक्य लिखा। जिससे स्पष्ट होता है कि प्रेक्षा जिंदगी की असली परीक्षा में फेल हो गई।
छोटे पर्दे पर अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी प्रेक्षा लॉकडाउन शुरू होने के एक महीने बाद मायावी नगरी मुंबई से अपने शहर इंदौर आ गई थी। लेकिन यहां आकर वह अपने आपको बेरोजगार मानकर अवसाद में रहने लगी थी। लॉक डाउन के बार-बार बढ़ने के साथ ही उसका हाइपरटेंशन भी बढ़ता चला गया और अंततः उसे लगा कि अब लॉकडाउन जल्द खुलने वाला नहीं है। आखिर में प्रेक्षा ने लॉकडाउन खत्म होने से पहले ही अपनी जिंदगी को ब्लॉक कर दिया।
आपको बता दें कि प्रेक्षा ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत अभिजीत वाडकर, संतोष रेगे और नगेंद्र सिंग राठौर के नाट्य ग्रुप ‘ड्रामा फैक्टरी’ से की थी। मंटो का लिखा नाटक ‘खोल दो’ प्रेक्षा का पहला नाटक था, जिसके बाद उन्होने खूबसूरत बह’, बूंदे, राक्षस, पार्टनर्स, अधूरी औरत जैसे नाटकों में भी काम किया था। अपने शानदार अभिनय के लिए प्रेक्षा ने कई अवॉर्ड्स भी जीते थे।
प्रेक्षा को अभिनय के लिए तीन राष्ट्रीय नाट्य उत्सवों में फर्स्ट प्राइज़ मिला था, साथ ही नाटक ‘सड़क के किनारे’ में भी जानदार अभिनय के लिए भी प्रेक्षा को अवॉर्ड मिले थे, सोनी टीवी पर प्रसारित होने वाली क्राइम सीरिज़ ‘क्राइम पैट्रोल’ के कई एपिसोड्स में भी प्रेक्षा ने काम किया हुआ था। प्रेक्षा के परिवार का कहना है कि लॉकडाउन में काम बंद होने की वजह से वह कई दिनों से तनाव में थीं।