दादरी के पूर्व विधायक महेंद्र सिंह भाटी और बाहुबली नेता डी पी यादव की आपसी राजनीति की दुश्मनी का केंद्र रहा बिसरख ब्लॉक पर इस बार दुजाना गांव बाजी मार गया। बिसरख ब्लॉक पर 50 साल पहले से चला आ रहा भाटी परिवार का वर्चस्व तोड़ने में आखिर दुजाना के पूर्व प्रधान ओमपाल नागर की पत्नी अप्रीत कौर सफल रही। बिसरख ब्लॉक प्रमुख पद पर पूर्व प्रमुख जगत सिंह भाटी की तीसरी पीढ़ी चुनाव जीत चुकी है। इस बार एक बार फिर भाटी परिवार की बहू इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही थी। लेकिन वह अंत में हार गई।
बिसरख ब्लॉक प्रमुख का चुनाव मिनी एमएलए का चुनाव कहा जाता है। यहां कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे राजेश पायलट और दादरी के पूर्व विधायक रहे महेंद्र सिंह भाटी में ब्लॉक प्रमुख पद को लेकर प्रतिष्ठा की लडाई छिड गई थी। जिसका फायदा बाहुबली डीपी यादव को मिला था। बाहुबली नेता और पूर्व विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के आरोप में जेल में बंद डी पी यादव की राजनीति की प्रथम सीढी बिसरख ब्लॉक प्रमुख ही थी। यहीं से डी पी यादव पहले बुलंदशहर का विधायक और बाद में उत्तर प्रदेश का मंत्री बन कर राजनीति के शीर्ष पर पहुंचा था।
बिसरख ब्लॉक प्रमुख पद इस बार भाटी और नागर के बीच कड़े मुकाबले में संपन्न हुआ। यह चुनाव इसलिए भी दिलचस्प था कि इसमें बसपा में पूर्व राज्य मंत्री रहे करतार सिंह नागर की पुत्री रुचि भाटी का मुख्य मुकाबला दुजाना के पूर्व प्रधान ओमपाल नागर की पत्नी अप्रीत कौर से था। मजे की बात यह रही कि इस चुनाव को लेकर खुद भाजपा दो गुटों में विभाजित हो गई थी। जिसमें एक गुट रुचि भाटी को जिताना चाहता था तो दूसरा अप्रीत कौर को। ब्लॉक प्रमुख पद की हार जीत से पहले एक दिलचस्प मुकाबला दोनों प्रत्याशियों के बीच भाजपा का कैंडिडेट बनने को हुआ था। जिसमें भाजपा यह तय नहीं कर पाई थी कि वह अपनी पार्टी के बैनर से अप्रीत कौर को पार्टी प्रत्याशी बनाए या रुचि भाटी को।
इसके चलते ही भाजपा ने इस चुनाव में प्रत्याशियों को खुला ऑप्शन दे दिया। जिसमें अंदर खाने यह रणनीति बनी कि जो भी जीत दर्ज करेगा, वहीं भाजपा का प्रमुख कहलायेगा। हालांकि इससे पहले ही दोनों प्रमुख पद के दावेदारों ने हार्डिंग और पोस्टरों में अपने आप को बीजेपी समर्थित घोषित कर दिया था।
दादरी विधानसभा क्षेत्र में जहां दादरी ब्लाक प्रमुख पद पर बिजेंद्र भाटी को निर्विरोध चुन लिया गया वहीं दूसरी तरफ बिसरख ब्लॉक प्रमुख का चुनाव खासा चर्चित हो गया था। इस चुनाव में एक डॉन की भी एंट्री बताई गई। कहा गया कि डॉन ने अंदर खाने बिसरख निवासी ध्यान सिंह भाटी की पुत्रवधू रुचि भाटी को जिताने के लिए गोटिया फिट की थी। लेकिन डॉन की बादशाहत कामयाब नहीं हो पाई।
बिसरख ब्लॉक प्रमुख पद पर जीत दर्ज कराने वाली अप्रीत कौर को भाजपा के राज्यसभा सांसद सुरेंद्र नागर का समर्थन रहा। हालांकि सुरेंद्र नागर अप्रीत कौर को भाजपा प्रत्याशी बनाते समय सामने नहीं आए। लेकिन आज जब अप्रीत कौर जीती तो हर तरफ यही चर्चा चली की सांसद सुरेंद्र नागर की प्रत्याशी बिसरख की प्रमुख बन गई है। दूसरी तरफ बिसरख गांव के लोगों ने रुचि भाटी की हार के पीछे सांसद सुरेंद्र नागर का हाथ बताया है।
अब से पहले बिसरख ब्लॉक प्रमुख पद पर मिल्क लच्छी और बिसरख गांव की ही लड़ाई रही है। हालांकि बीच में एक बार डी पी यादव की भी एंट्री हुई थी। यह 1988 की बात है जब बिसरख ब्लॉक प्रमुख पद पर मिल्क लच्छी निवासी वीरेंद्र नागर तथा जिले सिंह भाटी और डी पी यादव ब्लॉक प्रमुख पद प्रत्याशी बने थे। तब तत्कालीन किसान नेता और केंद्रीय मंत्री रहे राजेश पायलट के समक्ष क्षेत्र पंचायत सदस्यों की बकायदा परेड कराई गई। जिसमें पायलट की रजामंदी से जिले सिंह भाटी चुनाव से हट गए। तब पायलट ने भाटी को आश्वासन दिया था कि वह दादरी विधानसभा से उन्हें विधायक का चुनाव चुनाव लड़ायेगे। भाटी के हटने के बाद बिसरख ब्लॉक प्रमुख पद पर मिल्क लच्छी निवासी विरेंद्र नागर और सरफाबाद निवासी डी पी यादव मुख्य मुकाबले में आ गए थे ।
तब राजेश पायलट वीरेंद्र नागर को ब्लॉक प्रमुख बनाने की पूरी तैयारी कर चुके थे । लेकिन दादरी के तत्कालीन विधायक महेंद्र सिंह भाटी को यह मंजूर नहीं था। उन्होंने राजेश पायलट के ब्लॉक प्रमुख प्रत्याशी वीरेंद्र नागर को हराने के लिए डी पी यादव को अपना आशीर्वाद दे दिया। जिससे डी पी यादव ब्लॉक बिसरख का प्रमुख बन गया। यहीं से बाहुबली डीपी यादव का पॉलिटिकल टर्निंग प्वाइंट शुरू हो गया और वह राजनीति में पदार्पण कर गया। हालांकि यह दुर्भाग्य ही था कि बाद में वही डीपी यादव अपने गुरु महेंद्र सिंह भाटी का हत्यारा बना। डीपी यादव फिलहाल महेंद्र सिंह भाटी की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा काट रहा है।
अगर ब्लॉक बिसरख के पहले चुनाव की बात करें तो यहां सबसे पहले चुनाव 1962 में हुआ। तब मिल्क लच्छी गांव के निवासी रुमाल सिंह नागर ब्लॉक प्रमुख बने। रुमाल सिंह नागर 1962 से 1973 तक इस पद पर रहे। यहां यह भी बताना जरूरी है कि तब पंचायत प्रणाली में क्षेत्र पंचायत सदस्य ब्लॉक प्रमुख को वोट नहीं डालते थे। बल्कि ग्राम प्रधान ही ब्लॉक प्रमुख चुनते थे। 1973 में ब्लॉक प्रमुख पद पर जगत सिंह भाटी चुनाव जीते थे। इसके बाद 1981 में जगत सिंह भाटी का मुकाबला मिलक लच्छी निवासी रुमाल सिंह के बेटे धर्मपाल सिंह नागर से हुआ था। धर्मपाल सिंह और जगत सिंह भाटी में चुनाव ट्राई हो गया था। तब दोनों को 44 – 44 वोट मिले थे। तब जगत सिंह भाटी को विजयी घोषित कर दिया गया। इसके बाद धर्मपाल सिंह नागर हाईकोर्ट की शरण में चले गए थे । जहां उन्हें 6 महीने बाद हाई कोर्ट से जीत मिली। 1992 से 1988 तक धर्मपाल सिंह ब्लॉक प्रमुख रहे।
1995 से 2000 तक पूर्व ब्लाक प्रमुख जगत सिंह भाटी की पत्नी शांति देवी प्रमुख पद पर रही ।यह चुनाव बहलोलपुर निवासी सिल्ली यादव की पत्नी के बीच चुनाव हुआ । जिसमे शांति देवी ब्लाक प्रमुख पद पर निर्वाचित हुई। वर्ष 2001 से 2006 तक मिल्क लच्छी निवासी कर्मवीर नागर की पत्नी सुरेश नागर को ब्लॉक प्रमुख बिसरख बनाया गया। वर्ष 2005 से लेकर 2010 तक पूर्व ब्लाक प्रमुख जगत सिंह भाटी के पुत्र ध्यान सिंह भाटी एक वोट से सुरेश नागर को हराकर ब्लॉक प्रमुख बने। तब भाटी पर खुलेआम धांधली के आरोप लगे थे। वर्ष 2010 से 2015 के चुनाव में पूर्व ब्लाक प्रमुख जगत सिंह भाटी की तीसरी पीढ़ी का पदार्पण हुआ । इस चुनाव में जगत सिंह भाटी के पोत्र और ध्यान सिंह भाटी के पुत्र अंबरीश भाटी निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख चुने गए।
2015 में पूर्व ब्लाक प्रमुख प्रमुख ध्यान सिंह भाटी अपनी पुत्रवधू और बसपा के राज्य मंत्री रहे करतार सिंह नागर की पुत्री रुचि भाटी को ब्लॉक प्रमुख बनाना चाहते थे। लेकिन तब चुनाव ही नहीं हुए। इस बार रुचि भाटी को ब्लॉक प्रमुख पद के लिए चुनाव लड़ाया गया। रुचि भाटी का ससुराल पक्ष बिसरख होने और यहां से पंचायत चुनाव न होने के कारण वह अपने मायके बादलपुर से निर्विरोध क्षेत्र पंचायत सदस्य जीतकर आई। लेकिन ब्लॉक प्रमुख पद पर जीतने में सफल नहीं हो पाई।
बिसरख ब्लॉक प्रमुख पद कभी नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का पद हुआ करता था। इस चुनाव में गाजियाबाद सीमा से सटे कचैड़ा – दुजाना से लेकर नोएडा और ग्रेटर नोएडा के सभी 288 गांव मिलाकर अट्ठासी क्षेत्र पंचायत सदस्य हुआ करते थे। जो ब्लॉक प्रमुख चुना करते थे। नोएडा और ग्रेटर नोएडा के अधिकतर गांवो को ओधोगिक क्षेत्र घोषित कर पंचायत चुनावों से विहीन कर दिया गया है। फिलहाल, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के 50 क्षेत्र पंचायत सदस्य हटा दिए गए हैं। अब यह चुनाव महज 38 क्षेत्र पंचायत सदस्यों तक ही सिमित होकर रह गया है।