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पोस्टिंग के बदले लाखों का जुर्माना भर रहे डॉक्टर्स

देश के शहरी इलाकों में स्वास्थ्य की जितनी अच्छी सुविधाएं हैं वहीं ग्रामीण इलाकों में इसकी स्थिति उतनी बेहतर नहीं है। वो भी तब जब सरकारें कम फीस में एमबीबीस का कोर्स करवाती हैं।

 

बावजूद इसके डॉक्टर्स ग्रामीण इलाकों की पोस्टिंग को कैंसिल कर देते हैं। हाल ही में महाराष्ट्र से चौकाने वाले आंकड़े आए हैं जिसके के अनुसार साल 2015 से 2021 के बीच प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज “ग्रांट मेडिकल कॉलेज” के करीब दो-तिहाई एमबीबीस डिग्री प्राप्त छात्रों ने अपनी एक साल की अनिवार्य ग्रामीण पोस्टिंग नहीं ली है। जिसके बदले इस पोस्टिंग को छोड़ने पर छात्रों ने निमानुसार जुर्माने की राशि जमा की है जो प्रतिव्यक्ति लगभग 10लाख है । आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल अस्पताल को करीब 27 करोड़ रुपये जुर्माना राशि के रूप में मिले हैं जो उन छात्रों ने जमा किये हैं जिन्होंने अपनी ग्रामीण पोस्टिंग को ठुकराया है।

 

क्या है नियम

 

राज्य के ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की मौजूदगी को पूरा करने के लिए कई सालों पहले मेडिकल छात्रों के लिए एक नियम लागू किया था। जिसके अनुसार एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने वाले हर छात्र व छात्रा के लिए एक साल की ग्रामीण पोस्टिंग को अनिवार्य कर दिया गया था। इस नियम को ‘सामाजिक जिम्मेदारी सेवा’ के नाम पर भी जाना जाता है । इस नियम के तहत एक साल के दौरान हर मेडिकल ग्रेजुएट्स को प्राइमरी हेल्थ सेंटर (PHCs) या फिर ग्रामीण अस्पतालों में मरीजों का इलाज करना होता है।

पोस्टिंग ठुकराने का कारण

 

डॉक्टरों द्वारा ग्रामीण इलाकों में पोस्टिंग लेने के बजाए जुर्माना भर देना कोई नई बात नहीं है। देश में कई वर्षों से इस नियम का विरोध हो रहा है। जहा डॉक्टर यह कहते हुए भी नजर आये की करोङों रुपये का जुर्माना भर देंगे लेकिन ग्रामीण इलकों में नहीं जायेंगे। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं की कमी है, यही कारण है कि एक और जहाँ 1000 लोगों पर 1 डॉक्टर होना जरुरी है। वहीं, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार महाराष्ट्र में ये अनुपात 1000 लोगों पर 0.84 डॉक्टरों का है। यह आंकड़ा शहरी इलाकों का है ग्रामीण इलाकों की स्थिति इससे भी खराब मानी जाती है।

 

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