[gtranslate]
Country Uttarakhand

साहित्य से सियासत तक डॉ .निशंक

साहित्य, संस्कृति और राजनीति में समान रूप से पकड़ रखने वाले उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्मयंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ अक्सर चर्चाओं के केंद्र में रहते हैं। दीपावली से ठीक पहले जब प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखण्ड आगमन हुआ तो इससे पहले हरिद्वार में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन का आयोजन हुआ। जिसमें देश ही नहीं बल्कि दुनिया के 35 देशों से आए साहित्यकारों ने निशंक की किताबों का विमोचन करने के साथ ही उनके साहित्य पर चर्चा और समीक्षा की। इस कार्यक्रम के बाद डॉ. निशंक के सियासी सफर को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे हैं

 

‘सफल राजनीति में रहते हुए भी जिस प्रखरता से डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ साहित्य के क्षेत्र में लगातार संघर्षरत हैं वह आम आदमी के बस की बात नहीं है। मुझे डॉ निशंक की संघर्षशीलता और दृढ़ इच्छाशक्ति पर पूर्ण विश्वास है कि वह अपने राजनीतिक जीवन की व्यस्तताओं के उपरांत भी अपनी लेखनी के माध्यम से आम जनमानस की भावनाओं को उभारकर समाज एवं देश के सामने ऐसे प्रश्न खड़े करते रहेंगे, जिनके उत्तर के लिए कभी न कभी जिम्मेदार व्यक्तियों को अपने कर्तव्यों का अहसास जरूर हो जाएगा।’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा उक्त कथन डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के लिए मई 2007 में उस समय कहे थे जब उन्होंने उनकी पुस्तक ‘खड़े हुए प्रश्न’ का विमोचन किया था।

पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे डॉ रमेश पोखरियाल ‘निंशक’ का साहित्य सृजन किसी से छिपा नहीं है। इसी साहित्य सृजन में उनकी वर्षों से चली आ रही साधना की तपिश अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत को न सिर्फ प्रभावित कर रही है बल्कि उनके साहित्य और रचना संसार पर शोध भी किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में निश्ांक की साहित्य रचना संसार की ऑनलाइन पुस्तक वार्ता की 75 शृंखलाएं पूरी होने पर हावर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड लंदन द्वारा निशंक को विश्व कीर्तिमान धारक का प्रमाण पत्र दिया गया। जबकि इससे पूर्व 29 मई 2022 को रविवारीय पुस्तक वार्ता के 50 शृंखलाओं के पूरे होने पर एक ही सात्यिकार की पुस्तकों पर सबसे लंबी चर्चा के लिए निश्ांक को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड द्वारा विश्वकीर्तिमान का प्रमाण दिया जा चुका है। यह भारतीय साहित्य जगत और खासतौर पर उत्तराखण्ड जैसे छोटे पहाड़ी राज्य से एक साहित्य सृजन करने वाले व्यक्ति के नाम दो बार अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान मिलना ही अपने आप में खास है। निशंक को साहित्य के मूल्य निर्माण के साथ-साथ वेद और विश्व शांति अभियान के लिए महर्षि विश्वविद्यालय, स्विटजरलैंड द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि भी प्रदान की गई।

गौरतलब है कि हिमालय विरासत न्यास उत्तराखण्ड और स्याही ब्लू बुक्स नई दिल्ली तथा हिमालय विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में र्स्वाश्रम के परमार्थ निकेतन आश्रम में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया था। छह सत्रों में विभक्त इस संपूर्ण कार्यक्रम में डॉ निशंक की रचना धर्मिता पर विस्तृत रूप से चर्चा की गई। शोध पत्र वाचन सत्र में 60 से अधिक शोध पत्रों का वाचन किया गया। डॉ निशंक का साहित्य ‘मनन एवं मूल्यांकन’ सत्र में डॉ निशंक के साहित्य पर प्रतिभागी विद्वानों द्वारा गहन मंथन किया गया। इस अवसर पर ‘डॉ निशंक रचना संसार’ शृंखला में भाग लेने वाले विद्वतजनों के आलेखों से संकलित पुस्तक ‘डॉ निशंक का साहित्यः मनन एवं मूल्यांकन’ तथा दूसरी पुस्तक ‘डॉ निशंक और राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020’ एवं डॉ निशंक की रचना धर्मिता पर केंद्रित शोध सरिता पत्रिका और डॉ निशंक द्वारा लिखित पुस्तक ‘शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण’ का भी विमोचन किया गया। विदेशों में निशंक साहित्य’ पर आयोजित सत्र में डॉ मीरा सिंह वरिष्ठ साहित्यकार अमेरिका, डॉ राजेंद्र सूरज (लंदन), डॉ मोनाकौशिक (वल्गारिया) डॉ स्वेता दीप्ति (नेपाल), डॉ सविता तिवारी (मॉरीशस), डॉ अर्चना पैन्यूली (डेनमार्क), डॉ राजीव रंजन (चीन), डॉ शिक्षा रस्तोगी (थाइलैंड), डॉ तेजेंद्र शर्मा (लंदन), डॉ रामप्रसाद भटट जर्मनी), डॉ विवेकमणि त्रिपाठी (चीन) सहित अनेक साहित्यकारों ने निशंक साहित्य पर चर्चा एवं समीक्षा की, जबकि आभासी माध्यम से 35 से अधिक देशों के प्रबुद्ध साहित्यकार इस कार्यक्रम में जुड़े रहे।

निशंक का सहित्य सृजन
काव्य संग्रह – 19 कविता
खण्ड काव्य – प्रतीक्षा, मैं गंगा बोल रही हूं।
कहानी संग्रह – 19 संग्रह
उपन्यास – 12 उपन्यास
व्यक्तिगत विकास जीवनी – 11 पुस्तकें
बाल सहित्य – छह पुस्तकें
पर्यटन, संस्कृति और धर्म – कुल 8 पुस्तकें
डायरी संस्मरण – तीन
यात्रा वृत्तांत – 12 वृत्तांत पुस्तकें
अन्य – दो पुस्तकें
राजनीतिक – 7 पुस्तकें।

राजनीतिक भविष्य पर कयास
पेशे से पत्रकार रहे डॉ रमेश पोखरियाल ‘निश्ांक’ को साहित्यकार से ज्यादा उनको एक मंझा हुआ राजनेता के तौर पर जाना जाता है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही वे प्रदेश की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनाकर कैबिनेट मंत्री के पद तक पहुंच चुके थे। तत्कालीन समय में निशंक भाजपा के दिग्गज नेताओं की श्रेणी में अपने आप को स्थापित कर चुके थे। पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद उनकी राजनीतिक क्षमता और उनकी विश्वसनीयता में तेजी से इजाफा हुआ और पहली अंतरिम सरकार में वे मंत्री बने। 2009 में पहली बार निंशक प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए जो कि उनकी वर्षों से चली आ रही राजनीति का ही परिणाम था कि वे इस बड़े पद पर जा पुहंचे।

2014 में पहली बार हरिद्वार लोकसभा सीट से बड़े भारी अंतर से चुनाव जीत कर सांसद निर्वाचित हुए और 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर से सांसद बने और पहली बार मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भारत के शिक्षा मंत्री बने। यह निश्ांक की राजनीति का चरमकाल माना जा सकता है। शिक्षा मंत्री रहते हुए उनके कार्यकाल में देश में नई शिक्षा नीति का फाइनल ड्राफ्ट तैयार हुआ। हालांकि मोदी सरकार के मंत्रालयों के फेरबदल के दौरान निशंक को शिक्षा मंत्री के पद से हटना पड़ा जिसके चलते निशंक की राजनीति में पहले की अपेक्षा बड़ा अंतर जरूर सामने आया है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो जिस तरह से विगत दो वर्ष में उत्तराखण्ड में भाजपा की अंदरूनी राजनीति ने बड़े-बड़े प्रयोग किए हैं। उन प्रयोगों से अनेक बड़े नेताओं को भी अपनी राजनीति को प्रदेश में मजबूत करने का एक सुनहरा अवसर मिला है जिसके चलते आज तमाम बड़े नेता जो कभी दिल्ली की राजनीति में अपने आप को सुरक्षित महसूस करते थे वे भी अब उत्तराखण्ड की ओर देखने को मजबूर हो चले हैं। यहां तक कि वे नेता जो पूरी तरह से प्रदेश की राजनीति से दूर हो चुके हैं वे भी किसी न किसी बहाने से उत्तराखण्ड की राजनीति में अपना दखल बनाए हुए है जिसमें सबसे बड़ा नाम भगत सिंह कोश्यारी का है। कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल होने के बावजूद आज भी गाहे-बगाहे प्रदेश के दौरे पर आते रहते हैं और उनकी आमद से भाजपा की अंदरूनी राजनीति में खासा गहमागहमी का माहौल बनता हुआ देखा जा सकता है।

इस कड़ी में निशंक का नाम भी लिया जा रहा है। हालांकि निशंक उत्तराखण्ड से ही सांसद हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। बावजूद इसके उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर कयास लगते रहे हैं। मोदी मंत्रिमंडल से निशंक की विदाई हुई तो इन कयासों को ज्यादा बल मिला। इसका सबसे बड़ा प्रमाण इस बात से ही लगाया जा सकता है कि निशंक के केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहते हुए नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार तो हुआ लेकिन देश में नई शिक्षा नीति लागू नहीं हो पाई जबकि इसका श्रेय नए शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को दिया गया जिनके कार्यकाल में नई शिक्षा नीति लागू हुई।

फिलहाल 2024 के लोकसभा चुनाव की राजनीति की बात करें तो निशंक के सामने फिलहाल कोई ऐसी बाधा नहीं है जो उनकी राह रोके लेकिन भाजपा भीतर ऐसे कई अनुमान लगाए जा रहे हैं जिससे हरिद्वार सीट को लेकर कोई बड़ा निर्णय हो सकता है। हालांकि जिस तरह से भाजपा ने हरिद्वार में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में बड़ी जीत हासिल की है और राज्य बनने के बाद पहली बार जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट पर कब्जा किया है। हरिद्वार में भाजपा की जीत का श्रेय डॉ निशंक को ही दिया जा रहा है।

‘स

You may also like

MERA DDDD DDD DD