भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में युवा महिलाएं अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण समय को घरेलू काम करने में बिताती हैं,जिसका इन महिलाओं कोई वेतन तक नहीं मिलता है। यही आगे चलकर लिंग आधारित वेतन में अंतर का कारण बनता है। ईस्ट एंग्लिया यूनिवर्सिटी,बर्मिंघम और ब्रुनेल के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन से यह बात दुनिया के सामने आई है। इतना ही नहीं यह बात फेमिनिस्ट इकोनॉमिक्स पत्रिका में प्रकाशित पीर रिव्यू अध्ययन विद्वानों से भी सामने आई है। इस अध्ययन के मुताबिक,बचपन से लेकर युवा अवस्था के दौरान किए गए घरेलू काम आगे चलकर काम काज में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित करती हैं।
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने यंग लाइव्स प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में एकत्र किए गए आंकड़ों की भी जांच की है। जिसमे भारत, इथियोपिया, पेरू और वियतनाम के गरीबी में जीवन बिता रहे लगभग 12 हजार बच्चों के जीवन पर एक स्टडी की गई थी। भारत में प्रोजेक्ट के लिए डेटा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से एकत्र किए गए है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि 22 वर्ष की उम्र तक महिलाएं ऐसे कामों में लगी रहती हैं जिनके लिए उन्हें पैसे मिलने की संभावना न के बराबर होती है। कम व मध्यम आय वाले देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाएं काफी कम पैसा कमा पाती है।अध्ययन के मुताबिक, यह असमानता आंशिक रूप से बच्चों के रूप में युवा महिलाओं के कंधों पर घरेलू जिम्मेदारियों के बड़े हिस्से का कारण है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि हम उम्र में लड़के, लड़कियों की तुलना में घर की देखभाल और घरेलू कामों में कम समय बिताते हैं लेकिन बाहर के कामों में अधिक समय देते हैं। 19 वर्ष की उम्र में महिलाओं ने एक दिन में 3.66 घंटे और पुरुषों ने औसतन 1.34 घंटे घर के काम में और परिवार की देखभाल में बिताए है। वंही पुरुषों ने महिलाओं के 0.94 घंटे की तुलना में बाहर के कामों में अधिक समय 1.83 घंटे बिताया, लेकिन यह अवैतनिक घरेलू काम में समग्र असमानता की भरपाई नहीं करता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक,शोधकर्ताओं में शामिल यूईए के एक प्रोफेसर निकोलस वासिलाकोस का कहना है कि भुगतान किए गए काम में लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए एक नीति में महिलाओं द्वारा किए गए अवैतनिक काम को ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसके सस्त यह भी कह लैंगिक समानता से पता चलता है कि घरेलू कामों में असमान भागीदारी छोटे उम्र में शुरू हो जाती है और ये असमानता समय के साथ धीरे -धीरे बढ़ती चली जाती है।
अध्ययन के साथ जुड़ी रहीं बर्मिंघम बिजनेस स्कूल की प्रोफेसर फियोना कारमाइकल का कहना है कि अधिक समय तक बिना भुगतान के घरेलू काम में जुड़े रहने से महिलाओं की पढ़ाई पर असर पड़ता है। क्योंकि इसके वजह से ज्यादा समय नहीं निकल पाती है महिलाएं ,इसलिए आगे भविष्य में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं। इतना ही नहीं यह भी बताते है कि महिलाओं के कंधों पर घरेलू काम का बोझ बचपन से शुरू हो जाता है।
गौरतलब है कि शोधकर्ताओ ने कम उम्र के बच्चों पर अध्ययन करते हुए उनके जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसी भी भुगतान कार्य में उनकी भागीदारी का विश्लेषण किया है। जिसमें के मुताबिक, रोजगार का प्रकार और मजदूरी शामिल है। इसके अनुसार,22 वर्ष की उम्र में, भारत, इथियोपिया, पेरू और वियतनाम में महिलाएं पहले से ही रोजगार भागीदारी में लिंग अंतर का सामना कर रही थीं। यहां 85.72 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में महज 70.64 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही थी। इसके अलावा इन देशों में महिलाओं का औसत प्रति घंटा वेतन 1.46 डॉलर है। जो पुरुषों के वेतन 1.77 डॉलर की तुलना में काफी कम पाया गया है।
महिलाओं के मामले में, बचपन में घरेलू कामों में ज्यादा समय बिताने की वजह से पुरुषों की तुलना में उनके रोजगार के अवसरों पर खासा असर डाला है। पुरुषों के विपरीत इन देशों में महिलाओं के लिए अपनी जरूरत और पसंद के हिसाब से रोजगार के अवसर काफी कम थे। देखा जाए तो उनके सामने अच्छे वेतन और बेहतर नौकरियों के विकल्प ज्यादा नहीं थे।अध्ययन के निष्कर्ष पिछले रिसर्च को जोड़ते हुए सामने आए हैं जिसमें बताया गया था कि महिलाएं को शुरुआती जीवन के अनुभवों के लिए पुरुषों के मुकाबले कम पैसा मिलता है। इस वजह से लिंग असमानताएं बढ़ती हैं। महिलाओं के परिवार और सचुल या अन्य संस्थाओ द्वारा लिए गए निर्णय और ये सामाजिक संरचना में महिलाओं की स्थिति के परिणामस्वरूप कम पैसे या अधिक जोखिम और साथ कैसे जुड़े हुए हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसके लिए और अधिक शोध की जरूरत है।