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नागालैंड में फिर से बिकेगा कुत्ते का मांस; क्यों लगा था प्रतिबंध

कुत्ते के मांस की खपत के विषय में चर्चा लगभग हमेशा क्रूरता और बर्बरता के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। चीन में हर साल यूलिन डॉग मीट फेस्टिवल को लेकर अंतरराष्ट्रीय आक्रोश देखने को मिलता है । दक्षिण कोरिया जैसे अन्य देशों में कुत्ते के मांस की खपत पर भी कड़ी आपत्ति जताई जाती है । फिलहाल हालिया समय में उत्तर पूर्व भारत में कुत्ते के मांस को भोजन के रूप में खाने को लेकर पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध और गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले ने पूरी दुनिया को ध्यान अपनी ओर खींचा है।
दरअसल, गुवाहाटी हाईकोर्ट की कोहिमा बेंच ने नागालैंड सरकार द्वारा 2020 में लिए गए एक सरकारी फैसले को रद्द कर दिया है। नागालैंड सरकार ने एक सरकारी आदेश के जरिए कुत्ते के मांस की बिक्री और व्यापार पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब यह प्रतिबंध हाईकोर्ट की एक बेंच ने हटा लिया है।

क्या था राज्य सरकार का फैसला?

नागालैंड के मुख्य सचिव ने 4 जुलाई, 2020 को नागालैंड में कुत्ते के मांस के बाजार, वाणिज्यिक आयात और व्यापार पर प्रतिबंध लगाने का एक सरकारी आदेश जारी किया था। साथ ही रेस्टोरेंट में कुत्ते के मांस के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई।  फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स रेगुलेशंस एक्ट, 2011 के तहत लगाए गए इस बैन के खिलाफ कोहिमा के कुछ व्यापारियों द्वारा याचिका दायर की गई थी।  इन लोगों के पास कोहिमा की नगरपालिका परिषद् की ओर से व्यापार का लाइसेंस भी मिला हुआ था। व्यापारियों द्वारा इस बैन के कानूनी आधार और ज्यूरिस्डिक्शन (बैन के लागू होने के इलाके) को लेकर चुनौती दी गई थी। सरकार इस याचिका का जवाब नहीं दे सकी।  जिसके बाद हाई कोर्ट ने नवंबर 2020 में इस बैन ऑर्डर पर अस्थायी रूप से रोक लगाई थी और अब आदेश ही रद्द कर दिया है।
किन जानवरों को कानून द्वारा वध करने की अनुमति है?
खाद्य सुरक्षा और मानक विनियमन, 2011 अधिनियम की धारा 2.5.1 (ए) के अनुसार, भेड़, बकरी, सूअर, मवेशी, मुर्गी और मछली की जनजातियों से आने वाले जानवरों के वध की अनुमति है।

नागालैंड सरकार के फैसले पर कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यह आश्चर्य की बात नहीं है कि केंद्र सरकार कुत्तों को सूची में शामिल नहीं करती है। पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में कुत्ते का मांस खाना आम बात है। लेकिन भारत के अन्य हिस्से इस विचार को हजम नहीं कर पा रहे हैं। उस सूची में एक कुत्ते को शामिल करना बेतुका हो सकता है। क्योंकि कुत्ते के मांस खाने की अवधारणा को ही अकल्पनीय माना गया है।
हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि आधुनिक दुनिया में आज भी पूर्वोत्तर भारत की नागा जनजाति कुत्ते का मांस खाना पसंद करती है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलील को सही ठहराया। ब्रिटिश लेखक जे. एच हटन द्वारा 1921 में लिखी गई किताब ‘द अंगामी नागाज, विद सम नोट्स ऑन नेबरिंग ट्राइब्स’ में इस बात का जिक्र है कि नागा जनजाति लंबे समय से कुत्ते का मांस खाती आ रही है। लेखक जे.पी. मिल्स द्वारा 1926 और 1937 में लिखी गई किताब ‘द रेंगमा नागाज’ में भी इसका जिक्र है।
इंडिया टुडे नॉर्थ ईस्ट में छपी एक खबर के मुताबिक, हाई कोर्ट द्वारा अपने फैसले में कहा गया कि भले ही बैन का ये आदेश कैबिनेट की मंजूरी के बाद पारित किया गया था, लेकिन कुत्तों के मांस को खाने या उसका व्यापार करने से संबंधित कानून मौजूद नहीं है। साथ ही बैन का आदेश जारी करने वाले नागालैंड के मुख्य सचिव इसके लिए उपयुक्त अधिकारी नहीं थे।
कोर्ट ने यह भी कहा, “ऐसी मान्यता है कि कुत्ते के मांस में औषधीय गुण भी होते हैं। कुत्ते के मांस को आज भी नागाओं (नागालैंड में नागा जाति के लोग) के भोजन के रूप में स्वीकार किया जाता है। और याचिका दायर करने वाले लोग इससे अपनी आजीविका चला रहे थे।”
हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि कुत्ते के मांस को मानव उपभोग के लिए मानक भोजन नहीं माना जाता है और कुत्ते का मांस मानव उपभोग के लिए ‘सुरक्षित पशु’ की परिभाषा में भी नहीं आता है। 2011 के फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स रेगुलेशन एक्ट के तहत इसे इस परिभाषा से बाहर रखा गया था।
क्या भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण किसी भोजन पर प्रतिबंध लगा सकता है?
अदालत ने यह भी कहा कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (FSS अधिनियम) के तहत, मानव उपभोग के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन प्रदान करना भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण की जिम्मेदारी है। प्राधिकरण के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों में किसी खाद्य पदार्थ पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति शामिल नहीं है। कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि अथॉरिटी ने अपने कर्तव्य से परे जाकर बैन लगाने का फैसला किया है।

जानवरों के प्रति क्रूरता पर भी चर्चा हुई?

“पीपल फॉर एनिमल्स एंड ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल/इंडिया” ने अदालत को दिए अपने जवाब में कहा कि मांस के लिए बाजार में बेचे जाने के लिए कुत्तों को नागालैंड में तस्करी कर लाया जा रहा है। संगठन ने कहा कि कुत्तों के पैर और मुंह बांधकर बोरियों में भर दिया जाता है, उन्हें लंबे समय तक भोजन और पानी भी नहीं मिलता है। कुत्तों को व्यापार के लिए अंतहीन यातना दी जा रही है। इसके साथ ही वध के लिए लाए गए कुत्तों की पीड़ा और पीड़ा को दर्शाने वाली कुछ तस्वीरें भी अदालत को दिखाईं। हालांकि, अदालत ने पाया कि ये तस्वीरें प्रतिबंध का समर्थन नहीं कर सकती हैं। दूसरी ओर, न्यायालय ने सुझाव दिया कि भारतीय दंड संहिता और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम इस तरह के गलत कामों से निपटने के लिए रास्ते खोलते हैं।

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