मद्रास हाई कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय की तलाक प्रक्रिया पर अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं को खुला के जरिये अपनी शादी को खत्म करने का अधिकार तो है लेकिन वो अपने पति को तलाक केवल फैमिली कोर्ट में जाकर ही दे सकती हैं।
क्योंकि शरीयत काउंसिल जैसी सघोषित संस्थाओं द्वारा लिया गया तलाक प्रामाणिक नहीं होता। पीठ का कहना है कि “एक मुस्लिम महिला के लिए यह खुला है कि वह मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत मान्यता प्राप्त ‘खुला’ के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर विवाह को समाप्त करने के अपने अयोग्य अधिकारों का प्रयोग कर सकती है, यह जमात के कुछ सदस्यों की स्व-घोषित शरीयत काउंसिल के समक्ष नहीं हो सकता है।”
क्या है ‘खुला’
खुला इस्लाम धर्म में तलाक की एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से महिला तलाक ले सकती है। पारंपरिक इस्लामी धर्मशास्त्र के आधार पर और कुरान और हदीस में संदर्भित खुला महिला को भी तलाक लेने की अनुमति देता है। खुला के तहत पति-पत्नी की सहमति से या पत्नी के कहने पर तलाक होता है, जिसमें वह पति को शादी के बंधन से मुक्त करने के लिए विचार करने लिए कहती है या तलाक देने के लिए सहमत होती है, पति की सहमति जरूरी नहीं है। यह पत्नी द्वारा अपने पति को उसकी संपत्ति में से भुगतान किए गए मुआवजे के एवज में एक वैवाहिक संबंध को भंग करने के उद्देश्य से की गई व्यवस्था को दर्शाता है। इस प्रकार खुला, वास्तव में, पत्नी द्वारा अपने पति से खरीदे गए तलाक का अधिकार है। इसके बाद इद्दत की अवधि पूरी करने के बाद महिला पुनर्विवाह कर सकती है।
खुला के कुछ महत्वपूर्ण नियम
खुला की प्रक्रिया पूरी करने के कुछ नियम भी होते हैं। पहला नियम यह है कि पत्नी की ओर से ‘खुला’ की घोषणा की जाए। दूसरा नियम कहता है कि अगर पत्नी पति से तलाक लेती है तो उसे शादी में प्राप्त दहेज या किसी अन्य भौतिक लाभ को वापस करने अनिवार्य है, हालांकि साल 2021 में इस फैसले में हुए संशोधन के अनुसार अगर पत्नी ‘खुला’ की घोषणा के समय विवाह के निर्वाह के दौरान प्राप्त दहेज या अन्य किसी भौतिक लाभ को वापस नहीं भी करती है तो भी ‘खुला’ का अधिकार मान्य है। तीसरे नियम के अनुसार पत्नी द्वारा खुला की घोषणा किये जाने के पहले सुलह का एक प्रभावी प्रयास किया गया हो।
क्या है मामला
हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट में मोहम्मद रफीक नाम के शख्स ने याचिका दायर करते हुए अपील की है कि तमिलनाडु सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1975 के तहत रजिस्टर्ड शरीयत काउंसिल के दिए हुए ‘खुला’ सर्टिफिकेट को रद्द किया जाये। काउंसिल ने खुला का सर्टिफिकेट सईदा बेगम को दिया था। सईदा के पति ने हाईकोर्ट से अपील की थी कि उसकी पत्नी को दिया गया सर्टिफिकेट कानूनी रूप से सही नहीं है।