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असंतुष्ट विधायक के चलते येदियुरप्पा सरकार की मुश्किलें बढ़ीं

असंतुष्ट विधायक के चलते येदियुरप्पा सरकार की मुश्किलें बढ़ीं

कर्नाटक में मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की मुश्किलें कम नहीं हो पा रही हैं। उनकी नई दिक्कत यह है कि अब कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में आए विधायकों को मंत्री पद दिए जाने पर भाजपा के विधायक खफा हैं। असंतुष्ट विधायकों को लग रहा है कि राज्य कैबिनेट में अधिकतम 34 सदस्य हो सकते हैं। अब शेष छह मंत्री पद ही रिक्त रह गए हैं, ऐसे में यदि उन्हें मौका नहीं मिला तो 2023 में विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा और उनके हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। यही वजह है कि वे येदियुरप्पा को आंख दिखाने की रणनीति में हैं।

हालांकि, कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे येदियुरपा का बड़ा संकट मान रहे हों। लेकिन लगता है कि अपने अनुभव और कौशल का लाभ उठाकर वे इससे पार पा जाएंगे। संभावना है कि असंतुष्ट विधायकों को कैबिनेट स्तर का दर्जा देकर संतुष्ट किया जाएगा। जो विधायक इसके बाद भी नहीं माने तो उन्हें उनके हाल पर छोड़ा जा सकता है।

दरअसल, असंतुष्ट विधायकों में इतना दमखम नहीं कि वे येदियुरप्पा की गद्दी हिला सके। दूसरे भाजपा आलाकमान भी भली भांति जानता है कि ये येदियुरप्पा ही थे जिन्होंने कांग्रेस-जेडीएस की सरकार को बेदखल कर राज्य में भाजपा की सरकार बना डाली। आलाकमान को इस बात का भी अहसास है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा ने देशभर में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया तो दक्षिण में येदियुरप्पा ने भी ‘कर्नाटक मुक्त कांग्रेस’ का नारा बड़े जोर-शोर से उठाया। उनका यह नारा इतना प्रभावशाली रहा कि राज्य में पार्टी उम्मीद से ज्यादा सीटें जीती।

ऐसे में विधायकों के असंतोष को आलाकमान कितनी गंभीरता से लेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। हाल में येदियुरप्पा कैबिनेट में 6 फरवरी को किए गए विस्तार के तहत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए 10 विधायकों को मंत्री बनाया गया है। इस पर पार्टी के वरिष्ठ विधायकों का कहना है कि उनकी वर्षों की सेवा की अनदेखी की गई और उनकी जगह कांग्रेस के बागियों को मंत्री पद से नवाजा गया।

सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए विधायकों को मंत्री बनाने का भारी दबाव था, क्योंकि वे इसी शर्त पर पार्टी में शामिल हुए थे और चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। मार्च में विधानसभा के बजट सत्र से पहले कैबिनेट में एक और विस्तार की संभावना है, लेकिन इस विस्तार में सिर्फ छह विधायकों को मंत्री पद मिल सकता है, क्योंकि नियमानुसार राज्य मंत्रिमंडल में 34 सदस्य ही हो सकते हैं। अब कैबिनेट में बचे इन छह पदों के लिए लामबंदी तेज हो गई है। पार्टी विधायकों का मानना है कि अगर अब मंत्री नहीं बने तो फिर 2023 में इस विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से पहले दोबारा मौका नहीं मिलेगा।

बहरहाल, पार्टी में बगावत की आशंका के मद्देनजर अब इन असंतुष्ट विधायकों को मनाने का जिम्मा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतील को सौंपा गया है। इन विधायकों को मनाने के लिए उन्हें  कैबिनेट रैंक के साथ राज्य के निगमों और बोर्डों के अध्यक्ष पद पर बैठाया जा सकता है। मालूम हो कि कांग्रेस के 13 और जनता दल सेक्युलर के चार विधायकों यानी कुल 17 विधायकों ने अपनी-अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थामा था। इनमें 13 लोगों ने पिछले साल 5 दिसंबर को हुए उपचुनाव में किस्मत आजमाई थी और उनमें से 11 लोगों को जीत मिली थी, जबकि दो हार गए थे।

मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने मंत्रिमंडल में शामिल हुए दस नए मंत्रियों को विभागों का आवंटन भी कर दिया है। एसटी सोमशेखर को सहकारिता मंत्री और शिवराम हेब्बर को श्रम मंत्रालय मिला है। बीसी पाटिल को वन मंत्रालय और रमेश जरकिहोली को जल मंत्रालय दिया गया है। श्रीमंत पाटिल को टेक्सटाइल, डाॅक्टर सुधाकर को मेडिकल, नारायण गौड़ा को बागवानी, ब्यारथी बासवराज को शहरी विकास, गोपालैया को लघु उद्योग, आनंद सिंह को खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय सौंपा गया। रमेश जरकिहोली सिंचाई मंत्री बनाए गए है।

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